ढोलक की थाप सुनते ही सभी के पैर थिरकने लगते है। इसकी आवाज़ माहौल में एक नई उर्जा का संचार करता है। ढोलक गायन और नृत्य के साथ बजाया जाने वाला एक प्रमुख वाद्य यंत्र है। पुराने समय में ढोलक का प्रयोग पूजा, प्रार्थना और नृत्य गान में ही नहीं, बल्कि दुश्मनों पर प्रहार, खूंखार जानवरों को भगाने, चेतावनी देने के लिए भी किया जाता था।
उत्तर प्रदेश का अमरोहा जिला ढोलक शहर के नाम से जाना जाता है। सभी पर अपना जादू चलाने वाला ढोलक यूपी के अमरोहा के हुनरमंद कारीगरों द्वारा तैयार किया जाता है। अमरोहा में इसका का कारोबार सदियों पुराना है। मशहूर होने के कारण इसे जीआईटैग की सौगात मिली है। यहां के बने ढोलक अलग अलग शहरों में निर्यात किए जाते है। अब जीआईटैग मिलने से दुनियाभर में एक पहचान मिल चुकी है।

मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक अमरोहा में ढोलक उत्पादन से जुड़े करीब 150 बड़े – छोटे कारखाने है। सालाना सात से आठ करोड़ रूपये के कारोबार संग हर महीने करीब 12 लाख ढोलक का उत्पादन इन कारखानों में किया जाता है। कारोबार संग कारखाना संचालक, लकड़ी कारीगर और श्रमिकों समेत करीब तीन हजीर से अधिक लोग सीधा जुड़े हैं। जिले की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाले इऩ लोगों की आजीविका भी सीधा इसी कारोबार की तरक्की पर निर्भर है।
कैसे बनाया जाता है
रियाजुउद्दीन करीब 25 सालों से ढोलक के कारोबार से जुड़े हुए है। DNN 24 से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया है कि इसे बनाने के लिए सबसे पहले जगंलों से लकड़ियो को काट कर लाया जाता है। इसके बाद उसकी छिलाई की जाती है। छिलाई के बाद मशीन में डालकर, उसकी सतह को समतल किया जाता है। फिर उसे को पोला करके उसे संपूर्ण ढांचे का रूप दिया जाता है। लकड़ी के दोनों खोखले सिरों पर बकरे की खाल डोरियों से कसी जाती है। इस डोरी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं। ढांचे में डालने के बाद इसके रंगाई-पुताई से लेकर सुर-ताल के लिए फाइनल टच दिया जाता है।

ढोलक बनाने में किस लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है
ढोलक बनाने में आम, पोपलर, पापड़ी और शीशम की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है। जो लोग संगीत क्षेत्र से होते है वो ज्यादातर शीशम की लकड़ी से बने ढोलक की डिमांड करते है। क्योंकि शीशम की लकड़ी की ख़ास बात ये है कि उसमें जल्दी कीड़े नहीं लगते है। मशीनों के आने से पहले हाथों से ही इसे पूरा तैयार किया जाता था। लेकिन अब मशीनों के आने से काम में आसानी आ गई। लेकिन फिनिशिंग का काम अभी भी हाथों से ही किया जाता है। अमरोहा तकरीबन दो से ढाई हजार लोग इस कारोबार से जुड़े हुए है। यहां से ढोलक मुंबई, गुजरात, हैदराबाद, अजमेर, राजस्थान हिंदुस्तान के हर कोने में भेजे जाते है।
रियाजुउद्दीन के कारोबार में काम करने वाले कारीगर को उसके हुनर के आधार पर उन्हें दिहाड़ी दी जाती है। अमरोहा में ढ़ोलक के बाद लकड़ी फ्लावर पॉट भी बनाए जाते है और अब इनकी भी मांग बढ़ने लगी है। हिंदुस्तान में शादी हो या फिर कोई तीज-त्योहार में इसका इस्बितेमाल किया जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि खुशियों में जब तक ढोलक की थाप सुनाई नहीं दे, तब तक यह खुशी अधूरी सी रहती है।
ये भी पढ़ें: मोहम्मद आशिक और मर्लिन: एक अनोखी कहानी जिसने बदल दिया शिक्षा का परिपेक्ष्य
आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।