27-Aug-2025
HomeArtकुल्लू की पहाड़ियों में गूंजी 'गणपति बप्पा मोरया' की धुन, एक परिवार...

कुल्लू की पहाड़ियों में गूंजी ‘गणपति बप्पा मोरया’ की धुन, एक परिवार की Eco-Friendly गणेश उत्सव की नई परंपरा

डूंगा राम और उनका परिवार पिछले 35 सालों से गणपति मूर्तियां बना रहा है। इस साल परिवार ने 180 मूर्तियां तैयार की हैं, जो सिर्फ़ मिट्टी से नहीं बल्कि आस्था और पर्यावरण के प्यार से बनी हैं।

देवभूमि की नीली पहाड़ियों और साफ़ हवा में एक नया रंग घुल रहा है। कुल्लू की वादी, जो दशहरे की धूम के लिए मशहूर है, अब गणपति बप्पा की जय जयकार से गूंज रही है। इस बार कुल्लू घाटी के माहौल में गणपति उत्सव की धूम में रंगने लगी है। और इस जश्न की असली जड़ें हैं यहां के एक जुनूनी परिवार 
डूंगा राम और उनका परिवार।

राजस्थान से आए इस परिवार ने पिछले 35 सालों से यहां मिट्टी और आस्था से एक नई परंपरा की नींव रखी है। एक ज़माना था जब यहां गणपति उत्सव अनजाना था, लेकिन आज? आज कुल्लू में बप्पा की धूम मुंबई-पुणे को टक्कर देती है।

डूंगा राम बताते हैं, शुरुआत में लोग गणपति उत्सव के बारे में ज़्यादा नहीं जानते थे, लेकिन 2001 से कुल्लू में भी लोग बप्पा की स्थापना करने लगे। इस साल उनके परिवार ने बनाई है 180 अनोखी मूर्तियां। हर मूर्ति सिर्फ़ मिट्टी की नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति प्यार और सच्ची आस्था की मूर्त प्रतिमा है। पिछले साल से 30 ज़्यादा। ये सिर्फ़ एक नंबर ही नहीं, बल्कि बढ़ते प्यार और जुनून का सबूत भी है। कुल्लू अब सिर्फ़ देवताओं की नहीं, बल्कि गणपति बप्पा की भी भूमि बन गई है। 

इको-फ्रेंडली मुहिम: प्रकृति के साथ भक्ति

जब कई जगह प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल से बनी मूर्तियों से नदियां और तालाब प्रदूषित हो रहे हैं, तब डूंगा राम ने अपने हुनर को इको-फ्रेंडली दिशा दी है। उनकी मूर्तियां मिट्टी, नारियल, घास और वॉटर कलर से तैयार की जाती हैं, ताकि विसर्जन के वक्त ये आसानी से घुल जाएं और प्रकृति को नुकसान न पहुंचे।

डूंगा राम कहते हैं, बप्पा हमारे घरों में सुख-समृद्धि लाते हैं। जब वे विदा हों तो प्रकृति को दर्द क्यों मिले? हमारी कोशिश है कि भक्त और धरती दोनों खुश रहें।”

डूंगा राम की बेटी सीता बताती हैं, हमारी फैमली की तीन पीढ़ियां इस काम में जुड़ी हैं। हर साल जब हम देखते हैं कि लोग बप्पा को हमारे हाथों बनी मूर्तियों के रूप में अपने घर ले जाते हैं, तो हमें लगता है हमारी मेहनत सफल हुई।

कुल्लू का बदलता रंग

कुल्लू घाटी हमेशा से अपने देव परंपरा और दशहरा के लिए जानी जाती रही है। लेकिन पिछले 25 सालों में यहां गणपति उत्सव की भी धूम बढ़ी है। ढोल-नगाड़ों और भक्तिमय गीतों के बीच बप्पा की आरती गूंजती है। छोटे-छोटे बच्चे रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर जुलूस में शामिल होते हैं।

स्थानीय निवासी रवि ठाकुर बताते हैं कि पहले हम टीवी पर ही देखते थे कि मुंबई में कैसे गणपति उत्सव मनाया जाता है। लेकिन अब कुल्लू में भी बप्पा आते हैं और ये देखकर अच्छा लगता है कि हमारी घाटी भी विविधता को अपना रही है।

कला, आस्था और संघर्ष का संगम

डूंगा राम और उनके जैसे कारीगर सिर्फ़ मूर्तियां ही नहीं गढ़ते, बल्कि वे समाज को एक नई सोच भी देते हैं। उनके लिए हर मूर्ति बनाना साधना की तरह है। महंगाई, मौसम की मार और बाज़ार की तबदीली के बीच भी उन्होंने अपने हुनर को ज़िंदा रखा है।

डूंगा राम का सपना है कि आने वाले सालों में कुल्लू ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सिर्फ़ इको-फ्रेंडली मूर्तियां ही तैयार की जाएं। वो कहते हैं कि अगर हर भक्त प्रकृति को ध्यान में रखकर मूर्तियां ख़रीदे, तो बप्पा की पूजा का असली मतलब पूरा होगा।

कुल्लू की हसीन वादियों में इस साल गणपति बप्पा का उत्सव सिर्फ़ भक्ति का नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी लेकर आया है।

राजस्थान से आए डूंगा राम और उनका परिवार हमें यह सिखाता है कि जब आस्था और प्रकृति साथ चलें, तभी पूजा का असली अर्थ निकलता है।

ये भी पढ़ें: अज़ीज़ बानो: लफ़्ज़ों की ताज़गी और दिल की तन्हाई, मैं ने ये सोच के बोये नहीं ख़्वाबों के दरख़्त…

आप हमें FacebookInstagramTwitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं

RELATED ARTICLES
ALSO READ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular