17-Sep-2025
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Pankaj Kumar की कहानी: फुटपाथ से ‘Oxygen Man’ बनने तक का सफ़र

Pankaj Kumar और उनकी टीम अब तक 12 राज्यों में काम कर चुकी है। उन्होंने करीब 300 से ज़्यादा STPs का निरीक्षण किया।

भीड़भाड़ वाली सड़कों पर जब लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में व्यस्त थे, तब एक शख़्स ऑक्सीजन मास्क लगाकर चुपचाप खड़ा था। चेहरे पर मास्क, पीठ पर पानी की बोतल और हाथ में एक संदेश, ‘हवा अब सांस लेने लायक नहीं बची।’ लोग हैरान थे, कोई उसे बीमार समझ बैठा, तो किसी ने सोचा शायद पागल है। लेकिन सच ये था कि वो हम सबको हमारे ही भविष्य का आईना दिखा रहा था। यही शख़्स हैं Pankaj Kumar, जिन्हें आज लोग ‘ऑक्सीजन मैन’ और ‘अर्थ वॉरियर’ के नाम से जानते हैं। उनका सफ़र गरीबी से शुरू होकर आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बन चुका है।

फुटपाथ पर गुज़रा बचपन

Pankaj Kumar की पहचान आज पूरे देश में Oxygen Man और Earth Warrior नाम से होती है। लेकिन उनका ये सफ़र आसान नहीं था। बिहार के छोटे से गांव से निकले Pankaj का बचपन फुटपाथ पर गुज़रा। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी कि सब्ज़ी बेचकर गुज़ारा किया। किताबों और खेलों से दूर, उनका बचपन ज़िम्मेदारियों के बोझ तले बीता।

Pankaj Kumar का सपना था IAS बनने का। वो मानते हैं कि अगर थोड़ी और मेहनत, परिवार का सपोर्ट और आर्थिक हालात ठीक होते तो ये सपना पूरा हो सकता था। लेकिन हालात ने उन्हें दूसरी राह चुनने पर मजबूर कर दिया। भले ही वो IAS अफसर न बन पाए हों, लेकिन समाज के लिए कुछ बड़ा करने की चाह उनके दिल में हमेशा ज़िंदा रही।

दिल्ली की गलियों से शुरू हुआ नया अध्याय

2015 में उन्हें अमेरिकन बैंक (क्रेडिट वन) में नौकरी मिल गई। सात साल (2015–2022) तक वो नौकरी करते रहे। उस समय Pankaj Kumar रात में नौकरी करते थे। रात 9 बजे से सुबह 5:30 तक ऑफ़िस और दिन में कैंपेन। सुबह 6 से 11 बजे तक वो सड़कों पर अभियान चलाते, फिर थोड़ी नींद और शाम को वापस ऑफ़िस ये रूटीन बहुत कठिन था, लेकिन Pankaj को इसमें मज़ा आने लगा।

धीरे-धीरे वो समय को मैनेज करने लगे और अभियान लगातार बढ़ता गया। धीरे-धीरे उनके भीतर ये एहसास गहराता गया कि नौकरी छोड़कर पूरी तरह समाज के लिए काम करना ही उनका असली मक़सद है।

दिल्ली का प्रदूषण और एक अनोखा कैंपेन

2017 का नवंबर–दिसंबर। दिल्ली में प्रदूषण इतना बढ़ गया कि स्कूल बंद करने पड़े। Pankaj के मन में सवाल उठे अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाली पीढ़ी कैसे जिएगी? यहीं से उन्होंने एक अनोखा अभियान शुरू किया। पीठ पर 20 लीटर की बोतल और चेहरे पर ऑक्सीजन मास्क लगाकर वो सड़कों पर खड़े हो गए। उनका ये अंदाज़ बिना बोले ही सबको संदेश देता था “हवा अब इतनी खराब हो चुकी है कि जीने के लिए ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है।”

शुरुआत आसान नहीं थी। मास्क पहनकर पब्लिक में खड़ा होना अजीब और डरावना लगता था। लेकिन Pankaj Kumar ने सोचा, “अगर मैं अपने ही इलाके नोएडा में ये कर सकता हूं, तो दुनिया के किसी भी कोने में कर सकता हूं।” और फिर डर पर जीत हासिल करते हुए उन्होंने पहला कैंपेन अपने ही घर से शुरू किया। यही से उनकी पहचान Oxygen Man के तौर पर हुई।

नदियों से जुड़ा सफ़र – हिंडन से यमुना तक

2019 में छठ पूजा के दौरान Pankaj गाज़ियाबाद की हिंडन नदी पहुंचे। वहां की गंदगी देखकर वो दंग रह गए। उन्हें अपने बिहार के साफ़-सुथरे नदियों की याद आई। इस घटना ने उन्हें और गहराई से प्रभावित किया। हिंडन के बाद वो यमुना पहुंचे। किताबों और धार्मिक ग्रंथों में जिस पवित्र यमुना का वर्णन पढ़ा था, असलियत में वो झाग और गंदगी से भरी मिली। ये देखकर उन्होंने “नाला मुक्त यमुना क्रांति” अभियान शुरू किया। अब उनका फोकस नदियों में गिरने वाले गंदे पानी को रोकना और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) पर नज़र रखना है।

बक्सवाहा जंगल आंदोलन– ढाई लाख पेड़ बचाए

Pankaj Kumar और उनकी टीम अब तक 12 राज्यों में काम कर चुकी है। उन्होंने करीब 300 से ज़्यादा STPs का निरीक्षण किया। ख़ास बात ये रही कि इनमें से लगभग 100 जगहों पर सुधार देखने को मिला। यानी उनकी आवाज़ का असर सीधे ज़मीन पर दिखा। गंदा पानी कम हुआ और नदियों में साफ पानी पहुंचने लगा।

Pankaj का संघर्ष सिर्फ़ हवा और पानी तक ही सीमित नहीं रहा। मध्य प्रदेश का बक्सवाहा जंगल हीरे की खदान के लिए काटा जा रहा था। किसी ने Pankaj को इसकी ख़बर दी और उन्होंने सोशल मीडिया पर इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई। धीरे-धीरे ये इतना बड़ा आंदोलन बना कि डेढ़-दो साल चला। नतीजा ये हुआ कि ढाई लाख पेड़ कटने से बच गए। हजारों लोग इस अभियान से जुड़े और बक्सवाहा जंगल को विनाश से बचा लिया गया। पंकज इसे अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण अभियानों में गिनते हैं।

लोगों की प्रतिक्रिया – सराहना और प्रेरणा

जब Pankaj Kumar ऑक्सीजन मास्क लगाकर सड़क पर खड़े होते, तो लोगों की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती। कुछ लोग सोचते कि वो बीमार हैं, कुछ हैरानी से पूछते कि ये बोतल में पेड़ कैसे रखा है। लेकिन ज़्यादातर लोग उनकी बात समझते और कहते अगर हम अब नहीं संभले तो आने वाला समय और भी खतरनाक होगा। उनके दूसरे अभियानों जैसे थैले वाला भारत और रिवर पॉल्यूशन ड्राइव को भी लोगों ने खूब सराहा। सरकार और सामाजिक संस्थानों से भी उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स मिला।

टीम और यमुना क्लीनिंग ड्राइव

आज Pankaj Kumar के साथ एक बड़ी टीम जुड़ी हुई है। हर रविवार वो यमुना क्लीनिंग ड्राइव आयोजित करते हैं। दिल्ली और एनसीआर के बच्चे घाटों पर आकर सफाई करते हैं। टीम न सिर्फ़ सॉलिड वेस्ट इकट्ठा करती है, बल्कि लिक्विड वेस्ट की समस्या पर सरकार से सवाल भी उठाती है। जब भी वो किसी दूसरे राज्य जाते हैं जैसे बनारस, प्रयागराज या उत्तराखंड, तो वहां के युवा भी उनसे जुड़ जाते हैं। सोशल मीडिया पर जैसे ही कैंपेन की जानकारी दी जाती है, लोग खुद आकर सहयोग करते हैं।

रिसाइकलिंग की कोशिशें और नाकामी

टीम ने यमुना से निकाले गए कचरे को रिसाइकल करने की भी कोशिश की। उन्होंने “कार्बन फ्यूजन” नामक ग्रुप के साथ मिलकर ये प्रयोग किया, लेकिन यमुना का कचरा इतना गंदा होता है कि तीन बार धोने के बाद भी उसे किसी प्रोडक्ट में बदलना नामुमकिन साबित हुआ। इसलिए फिलहाल सारा कचरा नगर निगम को सौंपा जाता है।

Pankaj Kumar बताते हैं कि उनके एक लाख से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं और ये सब उनके सबसे बड़े सहायक हैं। 2022 में जब उन्होंने नौकरी छोड़ी, तो उनके सभी अभियान जनता के सहयोग से ही संभव हो पाए। लोग बिना मांगे सहयोग भेजते हैं ताकि वो अलग-अलग राज्यों में जाकर काम कर सकें। वो मानते हैं कि अगर ये भरोसा और समर्थन न होता तो इतने बड़े स्तर पर कैंपेन चलाना संभव नहीं होता।

STPs की पारदर्शिता और भविष्य की योजनाएं

आज उनकी टीम का फोकस STPs की पारदर्शिता पर है। अभी तक जो रिपोर्ट आती है, वो प्लांट के अंदर से भेजी जाती है। लेकिन Pankaj का सुझाव है कि नालों और नदियों में जहां से ट्रीटेड पानी छोड़ा जाता है, वहां सेंसर लगाए जाएं। तभी असली डेटा सामने आएगा और STPs बेहतर काम करेंगे। साथ ही उनका ज़ोर है कि देशभर के STPs को CPCB गाइडलाइन्स 2015 के अनुसार अपग्रेड किया जाए ताकि पानी की गुणवत्ता 10 BOD और 10 TSS स्तर पर लाई जा सके।

प्रदूषण से निपटने के छोटे-छोटे कदम

Pankaj Kumarकहते हैं कि बदलाव के लिए हमेशा बड़े कदम ज़रूरी नहीं होते। छोटे-छोटे काम भी बड़ा असर डालते हैं। जैसे सड़कों पर झाड़ू लगाने से पहले पानी छिड़कना चाहिए ताकि धूल हवा में न उड़े, वेस्ट बर्निंग पर रोक लगनी चाहिए, वाहनों और इंडस्ट्रीज से होने वाले उत्सर्जन पर सख्ती से नियंत्रण होना चाहिए, सबसे अहम बात—मौजूदा पेड़ों को बचाना चाहिए। वो चेतावनी देते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में हर दिन पेड़ काटे जा रहे हैं। “अगर हम नए पेड़ लगाएंगे और पुराने काटेंगे तो कोई फायदा नहीं। आज के पेड़ ही हमें तुरंत बचा सकते हैं, नए पेड़ 10–20 साल बाद असर दिखाएंगे।”

Pankaj का मानना है कि समाज में बदलाव लाने के लिए हमें सिर्फ़ नारे नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे। चाहे नदी प्रदूषण हो, वायु प्रदूषण हो या मिट्टी की समस्या हमें ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों से जुड़ना होगा। अगर आप भी बदलाव लाना चाहते हैं, तो अपने अंदर के हीरो को पहचानिए, पहला कदम उठाइए और अपने शहर के Earth Warrior बन जाइए।

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