भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन की ख़बर ने भारत और पाकिस्तान दोनों जगह शोक की लहर पैदा कर दी। डॉ. सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित ‘गाह’ गांव में हुआ था, जहां उनका बचपन बीता। 1947 के विभाजन के समय उनका परिवार भारत आकर अमृतसर में बस गया। विभाजन से पहले उन्होंने ‘गाह’ के प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। स्कूल के रिकॉर्ड और वहां के बुजुर्ग आज भी उनकी सादगी और विनम्रता को याद करते हैं।
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी डॉ. सिंह ने अपने गांव से संबंध बनाए रखा। उन्होंने गांव के लोगों को दिल्ली बुलाकर मुलाकात की और उनकी पहल पर गाह में कई विकास कार्य करवाएं। गांव में सोलर लाइट, वॉटर हीटर और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। पाकिस्तान सरकार ने उनके सम्मान में गाह को “आदर्श गांव” घोषित किया और गांव के सरकारी स्कूल का नाम बदलकर “मनमोहन सिंह गवर्नमेंट बॉयज़ स्कूल” कर दिया। 2012 में भारत के टेरी संस्थान ने वहां सौर ऊर्जा ग्रिड स्थापित किया, जिससे 51 परिवारों और तीन मस्जिदों को बिजली की आपूर्ति हुई।
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन सीमाओं को पार कर दो देशों को जोड़ने वाली कड़ी बन गया। उनकी दूरदर्शिता, सरलता और राष्ट्र निर्माण में योगदान को आने वाली पीढ़ियां याद रखेंगी। गाह गांव के लोग उनकी विरासत को सहेजने और उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी कहानी भारत और पाकिस्तान के बीच साझा इतिहास और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।
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