गंगा-जमुनी तहज़ीब और सांप्रदायिक सद्भाव हमारे देश की पहचान है और आज भी इसके उदाहरण सैकड़ों स्थानों में देखने को मिल जाते हैं। ऐसी ही एक जगह है गुवाहाटी से 40 किलोमीटर दूर रंगमहल गांव जो कामरूप ज़िले में है, जहां एक शिव थान की देखरेख 500 सालों से भी अधिक समय से एक मुस्लिम परिवार करता आ रहा है। परिवार की सातवीं पीढ़ी आज के वक्त में इस थान की देख रेख कर रही है। ये शिव थान दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इस थान में जिस किसी ने भी भगवान शिव से सच्चे मन से जो भी मांगा उसे ज़रूर मिला है। आज भी लोग अपनी मन्नतें लेकर इस थान में आते हैं।
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80 साल के मतिबुर रहमान अपने परिवार के सातवीं पीढ़ी के ऐसे सदस्य हैं जो इस शिव थान की देख-रेख करते हैं। “थान” ऐसे मंदिर को कहते हैं जहां कोई पुजारी नहीं होता और न ही कोई भव्य इमारत होती है। पिछले 500 सालों से भी ज़्यादा समय से रहमान परिवार इस शिव थान की देखरेख करता आ रहा है। ये शिव थान मतिबुर रहमान के घर के पास में ही है। हर दिन सुबह-शाम की नमाज़ के बाद वो इस शिव मंदिर की साफ़-सफ़ाई करते हैं। मतिबुर से पहले उनके पिता ये काम किया करते थे। अब इस समय ये ज़िम्मेदारी मतिबुर रहमान निभा रहे हैं और उनके बाद उनका बेटा इस परंपरा को आगे लेकर जाएगा।
कैसे हुई इस थान की स्थापना
मतिबुर रहमान बताते हैं कि सदियों पहले यहां एक बाबा आए और इस बरगद के पेड़ के नीचे उन्होंने अपना डेरा जमा लिया। बाबा शिव भक्त थे इसलिए उन्होंने पेड़ के नीचे एक छोटा सा शिवलिंग भी स्थापित किया, जो आज भी यहां पर मौजूद है। बाबा खूब भांग खाते थे, स्थानीय लोग उन्हें भांगड़ी बाबा” कहा करते थे। मतिबुर रहमान के दादा के दादा के परदादा और भांगड़ी बाबा की खूब बनती थी।
एक दिन दोनों में किसी बात को लेकर कहासुनी हो गयी। लेकिन फिर कुछ देर बाद दोनों एक दूसरे से गले मिल लिए। तब भांगड़ी बाबा ने मतिबुर रहमान के परदादा से कहा कि मैं हमेशा के लिए इसी जगह में रहना चाहता हूं। बस तुम इस शिवलिंग और स्थान की देख रेख करना। फिर कुछ दिन बाद भांगड़ी बाबा किसी को कुछ बताए बिना कहीं चले गए। उसके बाद से आज तक इस थान की देखरेख रहमान परिवार करता आ रहा है। यहां आप को बता दें कि स्थानीय लोग ‘’दादा’’ को भी ‘नाना’ कहते हैं।
हिंदू मुस्लिम मिलकर शिव थान आते हैं
मतिबुर रहमान को स्थानीय लोग प्यार से नाना कहते हैं। गांव के सौहार्दपूर्ण इस वातावरण को देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। ये वाकई में अपने आप में बेहद अनूठा है। इस थान की दूसरी सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग आते हैं और आपस में मिलकर प्रार्थना करते हैं। मतिबुर रहमान कहते हैं कि “ हमारे परिवार को 500 से 600 साल हो गए हैं, हमारे पिता का देहांत 1977 में हो गया। 1977 से आज तक हम यहां देख रेख करते हैं। बाबा ने जैसा बोला था मैं वैसा ही कर रहा हूं।”
स्थानीय पूनम बोरा बोरकाकाते कहती हैं कि इसका बहुत महत्व है हिंदू मुस्लिम का यहां कोई भेदभाव नहीं होता है। स्थानीय निवासी विकास बोरा ने बताया कि ये थान बहुत सालों से है, उन्होंने बचपन से ये थान देखा हुआ है, लेकिन दुख की बात यह है कि उन्होंने इसका विकास नहीं किया है आजतक ऐसे ही रखा हुआ है।
मन्नत पूरी होने पर चढ़ाया जाता है त्रिशूल
ये शिव थान भले ही छोटा सा है लेकिन इसकी चर्चा दूर-दूर तक होती है। यहां आने वाले शिव भक्त बताते हैं कि यहां हर किसी की मन्नत पूरी हो जाती है। इनकी इस बात को सच साबित करते हैं थान परिसर में चढ़ाए गए सैकड़ों त्रिशूल। मतिबुर रहमान बताते हैं कि जिसकी मन्नत पूरी होती है वो थान में कुछ न कुछ काम करवा जाता है। ऐसे ही किसी ने एक बड़ा सा शिवलिंग स्थापित करवा दिया तो किसी ने भक्तों के विश्राम के लिए शेड बनवा दिया।
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धीरज जो पास के गांव में रहते हैं, उनकी इस थान में अपार श्रद्धा है। मन्नत पूरी होने बाद से वो कम से कम महीने में एक दिन इस थान में ज़रूर हाज़री देते हैं। उन्होंने बताया कि जब वे छोटे थे तब अपनी मां और रिश्तेदारों के साथ यहां आया करते थे। उसके बाद कई सालों तक वो यहां नहीं आये। उन्होंने आगे बताया कि उनको एक सपना दिखा जिसमें एक ऐसा मंदिर था, सपना उनको पूरा याद नहीं लेकिन एक खेत में मंदिर है फिर उन्होंने घर में पूछा कि एक ऐसा कोई मंदिर है। उन्होंने कहा कि हां एक मंदिर है बचपन में हम गए थे, उसके बाद वो यहां आए और उनकी मन्नत भी पूरी हुई।
बकरी, भैंस या गाय के पहली बार दिए दूध को शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है।
रंगमहल में करीब 40-50 मुस्लिम परिवार रहते हैं। बड़ी बात ये है कि सभी की इस शिव थान से गहरी आस्था है, जो कोई भी थान के करीब से गुज़रता है वो थान की साफ़-सफ़ाई कर के आगे बढ़ता है। गांव वालों की इस थान के प्रति आस्था का एक और उद्धारण है। स्थानीय लोग बताते हैं कि उनके घरों में पाली हुई बकरी, भैंस या गाय जब कभी भी दूध देना शुरू करती है तो पहला दूध वो थान में आकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
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मतिबुर रहमान साल 2001 में हज करने के लिए मक्का गए थे तब उनकी ग़ैर-हाज़री में उन के दो बेटों में से एक ने इस जगह की देखभाल की थी। मतिबुर रहमान का मानना हैं कि उनके बाद भी भांगड़ी बाबा के इस थान की देखभाल उनके परिवार के सदस्य करते रहेंगे।
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