15वीं सदी के महान संत कवि कबीर दास न सिर्फ एक संत थे बल्कि एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। बनारस में एक बुनकर परिवार में जन्मे संत कबीर का आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार पर गहरा प्रभाव रहा।
कबीर की शिक्षाओं ने भारत में अलग-अलग सामाजिक सुधार आंदोलनों को प्रेरित किया। महात्मा गांधी ने सामाजिक समानता की वकालत की और छुआ-छूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उन्होंने जाति व्यवस्था की कबीर की आलोचना और अधिक समावेशी समाज के लिए उनके दृष्टिकोण को अपनाया।
कबीर दास के विचारों ने भक्ति आंदोलन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक भक्ति प्रवृत्ति, जो उनकी मृत्यु के बाद भी विकसित होती रही। इस आंदोलन में मीरा बाई, तुलसीदास और सूरदास जैसे उल्लेखनीय कवियों और संतों का उदय हुआ, जो कबीर के व्यक्तिगत भक्ति और कर्मकांड की आलोचना से प्रभावित थे। उनके कामों ने कबीर के प्रेम, भक्ति और सामाजिक सुधार के संदेशों को और आगे बढ़ाया। आगा शाहिद अली जैसे शायरों सहित आधुनिक साहित्यिक हस्तियों ने कबीर की रचनाओं से प्रेरणा ली है, उनकी कविता के तत्वों को अपने लेखन में जोड़ा।
उनका मानना था कि धर्म का सार आंतरिक भक्ति और ईमानदारी में निहित है। नमाज के बिना मस्जिद, मस्जिद नहीं है, भक्ति के बिना मंदिर, मंदिर नहीं है, पूजा का स्थान दिल में है और सच्चा साधक वही है, जो भीतर देखता है। सच्ची आध्यात्मिकता बाहरी प्रदर्शन के बजाय आंतरिक यात्रा है।
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