20-May-2025
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Lucknow का पानदान (Pandan): नवाबी तहज़ीब की महक और कारीगरी की बेजोड़ मिसाल

पानदान (Pandan) सिर्फ़ एक बर्तन नहीं था, बल्कि ये लखनऊ की औरतों के शौक़ और तख़लीक़ी सलाहियत का भी हिस्सा था।

पानदान (Pandan) किसी लड़की के लिए अपनी मां की यादें हैं, तो किसी के लिए शादी में मिला सबसे महबूब तोहफ़ा। सिर्फ़ पान रखने का रवायती बर्तन नहीं..आज भी घर के किसी कोने में रखा Pandan बहुत-सी पुरानी यादों को ताज़ा करता है। पान का रिश्ता हिंदुस्तान की सख़ावत से बेहद पुराना है। लेकिन जब बात लखनऊ की हो, तो पान सिर्फ़ ज़ायके के लिए नहीं, बल्कि नवाबी तहज़ीब का एक अहम हिस्सा बन जाता है।

पान का रिश्ता नवाबी तहज़ीब से

लखनऊ के पानदान (Pandan) की कहानी 18वीं सदी के नवाबी दौर से शुरू होती है। लखनऊ के नवाबों की हवेलियों में पान और पानदान (Pandan) की बहुत ही ख़ास अहमियत थी। पानदान (Pandan) उनकी मेहमाननवाज़ी का आईना था। महफिलों में पान परोसना उनकी अज़्म रस्म थी। नवाब खुद अपने मेहमानों के लिए पान लगाकर देते थे।

लखनऊ के नवाब अपनी शायरी के साथ-साथ पान के भी दीवाने थे। शहर-ए-अदब में आज भी कहा जाता है कि अगर महफिल में पान न हो, तो महफिल अधूरी-सी लगती है। Amir UD daula public library की former librarian नुसरत नाहीद ने DNN24 को बताया कि “पान लगाने के बाद ख़ासदान में रखे जाते थे। ख़ासदान में चेन लगी होती थी, पान को बनाकर उसी चेन में फसा दिए जाता था और खाना खाने के बाद उसे खाया जाता था।”

पानदान (Pandan) की नक़्क़ाशी और ख़ास पान सामग्री

लखनऊ में तांबे के बर्तन बनाए जाते हैं उन्हीं तांबे के बर्तनों में पानदान (Pandan) की अपनी ख़ासियत है। लखनऊ के पानदानों पर बारीक नक़्क़ाशी होती है। ये नक़्क़ाशी अक्सर मुग़ल कला और फूल-पत्तियों के डिज़ाइन से इंस्पायर होती है। ख़ासतौर पर चांदी के पानदान (Pandan) अपनी चमक और बारीकी के लिए मशहूर हैं। पानदान (Pandan) बनाने वाले कारीगर इसे एक आम बर्तन नहीं, बल्कि एक फन के तौर पर बनाते थे। हर पानदान (Pandan) की अपनी कहानी होती थी।

पानदान (Pandan) में पान में डाले जाने वाली सभी सामग्री चूना, कत्था, सुपारी, इलायची और कई तरह की अलग-अलग चीजें स्वादनुसार रखी जाती है। नुसरत नाहीद बताती हैं कि “किसी अंग्रेज़ ने खूब कहा है कि भारत में लोग खाने के बाद एक चीज़ खाते है। एक पत्ते के ऊपर लाल, सफेद पत्थर डालकर, वो एक ऐसी चीज़ है जिससे खाना हज़म हो जाता है।”

पानदान और महिलाओं का शौक़

पानदान (Pandan) सिर्फ़ एक बर्तन नहीं था, बल्कि ये लखनऊ की औरतों के शौक़ और तख़लीक़ी सलाहियत का भी हिस्सा था। वो इसे अपने हाथों से सजाती, इसमें सुंदर नक़्क़ाशी करवातीं, और इसे बड़े फ़ख़र से दिखातीं। ये उनके बनाव-श्रृंगार का हिस्सा था। वो अपने पानदान में ख़ास मसाले रखती थीं, जिनसे उनका पान अलग स्वाद देता था। वो अक्सर अपने पानदान के ज़रिए अपनी ख़ूबसूरती का राज़ भी छुपाती थीं। कहते हैं, पानदान में रखी सुपारी और गुलकंद उनके चेहरे की चमक का राज था।

कहा जाता है कि मुस्लिम परिवारों के मर्द अपनी औरतों को खर्चा-ए-पानदान दिया करते थे। उनकी बीवियां अपने शौहरों और घर के मेहमानों के लिए पान तैयार करने के लिए ज़िम्मेदार थीं। नुसरत नाहीद ने DNN24 को बताया कि नवाबी समय में वो औरतें पान की दुकानों पर बैठती थी, जो बहुत बूढ़ी हो जाती थी। उनकी ज़बान बहुत अच्छी होती थी। लोग उनसे तहज़ीब सीखते थे। वो उस तहज़ीब को भी आगे चलाने के लिए आख़िरी वक़्त तक हिम्मत करती थी।”

पानदान: लखनऊ की शादियों का मोहब्बत भरा तोहफ़ा

वक़्त के साथ पानदान (Pandan) की परंपरा बदल गई, लेकिन आज भी लखनऊ के मुस्लिम घरों में इसकी झलक मिलती है। कई लोग इसे अपने घरों में सजावटी सामान के तौर पर जमालियाती रौनक बनाकर रखते हैं। लखनऊ की नवाबी तहज़ीब में गुथे हुए पानदान पीतल, चांदी या सोने से भी बने होते थे। अवध की सख़ावत में पानदान को शादी-ब्याह की रस्मों से भी जोड़ा गया है। आज भी शादी में कोई दुल्हन बिना पानदान, रक़ाबी या तांबे की देगचियों के बिना अपने ससुराल नहीं जाती।

ख़ासतौर पर लड़कियों को शादी में पानदान देने की परंपरा गहरे अहसासात से जुड़ी हुई है। पानदान शादी के तोहफों का सबसे ख़ास हिस्सा होता है, जिसे सजावट और ज़ाति अंदाज़ के मुताबिक तैयार किया जाता है। ये लखनऊ की शानदार सक़ाफ़ती वारिसाह और नवाबी रिवायत की झलक पेश करता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। आज भी लखनऊ के लोग पान और पानदान की परंपरा को ज़िंदा रखे हुए हैं।

कारीगरों के सामने चुनौतियां

इन पानदानों को तैयार करने वाले कारीगरों के हुनर में बेजोड़ महारत है, लेकिन वक़्त के साथ इनके सामने कई चुनौतियां आ गई हैं। आज के वक़्त में मशीनों के चलन और मांग में कमी ने इन कारीगरों के रवायती कारोबार को प्रभावित किया है। सरकार और फैक्ट्री मालिकों की हिस्सेदारी बेहद अहम हो जाती है। सरकार की ओर से अगर इन कारीगरों को माली अमदाद मिले, तो उनकी सूरतेहाल में सुधार लाया जा सकता है।

फैक्ट्री मालिक भी इन कारीगरों की मदद कर सकते हैं। वो अच्छी सैलरी, काम के लिए महफ़ूज़ माहौल, और वक़्त पर अदायगी देकर उनकी कंडीशन में सुधार सकते हैं। अगर आप लखनऊ जाएं और पान खाएं, तो पान के साथ पानदान ख़ूबसूरती को ज़रूर याद करें।

ये भी पढ़ें: लखनऊ के तांबे और पीतल के बर्तनों की नायाब विरासत की कहानी

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