शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी को गुज़रे करीब चार साल हो गए, लेकिन उनकी यादें और उनका साहित्यिक योगदान आज भी ताज़ा हैं। मीर तकी मीर पर उनके अध्ययन और विश्लेषण ने उर्दू साहित्य को एक नई दिशा दी। उनकी बेजोड़ याददाश्त और पढ़ने की अद्भुत गति ने उन्हें एक अलग पहचान दी। फारूक़ी साहब का व्यक्तित्व साहित्यिक गुणों से भरपूर था। उन्होंने न सिर्फ़ साहित्य को समझा, बल्कि उसे अपने अनोखे अंदाज़ में प्रस्तुत भी किया। वह किताबों में छिपी गलतियों को मिनटों में पकड़ लेते थे। एक बार उन्होंने एक शायर के दीवान को चंद मिनटों में पढ़कर उसमें मौजूद अच्छाई और कमियों को उजागर किया था।
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी का लेखन में नया आयाम
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उर्दू विभाग में उनके व्याख्यान आज भी याद किए जाते हैं। उनके द्वारा “कसीदा” और “ग़ज़ल” पर दी गई अनमोल जानकारी ने विद्यार्थियों और विद्वानों को नई सोच दी थी। उन्होंने “दास्तान” को मौखिक कथा के रूप में परिभाषित किया और इसकी गहराई को उजागर किया। फारूक़ी साहब का लेखन और उनके साहित्यिक दृष्टिकोण कई लेखकों और कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। उन्होंने न केवल नए लेखकों को प्रोत्साहित किया बल्कि उनके कार्यों को एक नई पहचान भी दी।
उनकी मृत्यु से पहले भी, उनका साहित्य के प्रति जुनून कायम था। आखिरी दिनों में भी उन्होंने मीर और मोमिन जैसे महान कवियों की रचनाओं पर चर्चा की। उनके साहित्यिक योगदान और व्यक्तित्व को भुला पाना संभव नहीं। वह उर्दू साहित्य के अनमोल सितारे थे, जिनकी रोशनी हमेशा बनी रहेगी।
इस ख़बर को आगे पढ़ने के लिए hindi.awazthevoice.in पर जाएं
ये भी पढ़ें: ग़ज़लों की जान, मुशायरों की शान और उर्दू अदब राहत इंदौरी के नाम
आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं