साल 1973, जब देश में महसूस किया गया कि बाघों की आबादी करीब 40 हजार से घटकर 268 रह गई है। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए एक मुहिम चलाई, जिसको नाम दिया ‘प्रोजेक्ट टाइगर’। आज टाइगर प्रोजेक्ट को पचास साल पूरे हो चुके है। 9 अप्रैल 2023 को प्रधानमंत्री मोदी ने टाइगर रिपोर्ट जारी की जिसमे दावा किया गया कि देश में बाघों की संख्या 3,167 हैं। यह संख्या लगातार 6 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रही है। यह बड़ी कामयाबी थी, जो सरकार और जनजातीय सामुदाय (Tribal Communitis) के बदौलत मिल पाई। इन बाघों और ट्राइबल कम्युनिटिस को बढ़ावा देने के लिए इंडियन हैबिटेट सेंटर में ट्राइबल कम्युनिटिस की कला को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
संकला फाउंडेशन और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority) के सहयोग से इसका आयोजन किया गया। यह प्रदर्शनी लगाई गई सभी पेंटिंग देश भर के 54 टाइगर रिजर्व के आदिवासी कलाकारों (Tribal Artists) द्वारा बनाई गई, जो टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) में या उसके आस पास रहते है। इस प्रदर्शनी में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) भी शामिल हुई।
आर्टिस्टस ने ट्राइबल कम्युनिटिस कल्चर और टाइगर के महत्व को अपनी पेटिंग में उकेरा
संकला फाउंडेशन दिल्ली स्थित एक नीति और अनुसंधान संगठन है जो जलवायु परिवर्तन, वन और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहा है और कमजोर समुदायों के जीवन में सुधार के लिए प्रतिबद्ध है। DNN24 से बात करते हुए आर्टिस्ट रमेशवर प्रसाद ने बताया कि “हमने टाइगर की जिंदगी को दर्शाने की कोशिश की है। हमारे यहां कुल छह कुलदेवता है जिनमे से एक बाघ है। चूंकि यह कल्चर आर्ट है गोंड कल्चर को पेटिंग के माध्यम से दर्शाया गया है।”
आर्टिस्ट रोहित शुक्ला एक फॉरेस्ट गार्ड हैं वह जगंलों की सुरक्षा करते है उनका मानना है कि “सुरक्षा के लिए जागरूकता भी बहुत जरूरी है। हमारे आसपास ज्यादातर ट्राइबल कम्युनिटिस है हम उनके रीति रिवाज़ वनों और वन प्राणियों के महत्व को समझते है और उनके महत्व को बताने के लिए मैंने एक पेटिंग बनाकर बैगा ट्राइब के बारे में बताया है। ट्राइबल कम्युनिटिस मानते है कि जगंलों में टाइगर होने से वह लोग सुरक्षित रहते है। बैगा ट्राइब का खेती, पशुपालन और पानी पर निर्भर है अगर बाघ रहेंगे तो वो भी रहेंगे।
जनजातियों की कला को स्थायी बाजार और पहचान देने का प्रयास
एस पी यादव कहते है कि “हमारे देश में 54 टाइगर रिजर्व है, इसके अंदर और बाहर भी बहुत ज्यादा ट्राइबल कम्युनिटिस है। करीब 46 हजार परिवार में रहते है। हमने यह देखा कि टाइगर रिजर्व के आसपास ऐसे बहुत से आर्टिस्ट है जो बाहरी प्रोत्साहन के बगैर स्व प्रेरणा से बहुत अच्छी पेटिंग बनाते है लेकिन इनका राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचान नहीं है इसलिए हमने यह इवेंट हर साल प्लान करने का सोचा है जिससे इनको राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले। आर्ट में नई तकनीकी है और जो गाइडेंस को बढ़ावा दिया जाएगा। जिससे पेटिंग की क्वालिटी सुधरे और उसे मार्केट में अच्छा रिसपोंस मिले।”
इस प्रदर्शनी का उद्देश्य इन कलाकृतियों के लिए एक स्थायी बाजार स्थापित करना है, जिससे इन हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए वैकल्पिक आजीविका प्रदान की जा सके, उनकी विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संरक्षित हो सके और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके। सदियों से, भारत के आदिवासी समुदाय प्रकृति और उसमें रहने वाले अन्य लोगों के साथ सहजीवी रूप से सह-अस्तित्व में रहे हैं। यह सह-अस्तित्व विशेष रूप से उनकी कलाकृति और चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति हो पाता है।
इस प्रदर्शनी ने इस कला और चित्रों को वन क्षेत्रों की सीमाओं से परे उन्नत करने और उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में लाने का प्रयास किया। प्रदर्शनी ने भारत के बाघ अभ्यारण्यों के निकट रहने वाले जनजातीय समुदायों के बीच जटिल संबंधों और जंगल तथा वन्य जीवन के साथ उनके गहरे संबंधों पर प्रकाश डाला।
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