20-May-2025
HomeDNN24 SPECIALक़व्वाली: सूफ़ी रिवायत और रूहानी मौसिक़ी की ख़ास सिन्फ़ 

क़व्वाली: सूफ़ी रिवायत और रूहानी मौसिक़ी की ख़ास सिन्फ़ 

क़व्वाली सूफ़ी अक़ीदत की एक मुनफ़रीद और मौसिक़ी की शक्ल है, जो सूफ़ी रिवायत में एक अहम मक़ाम रखती है।

क़व्वाली सूफ़ी अक़ीदत की एक मुनफ़रीद और मौसिक़ी की शक्ल है, जो सूफ़ी रिवायत में एक अहम मक़ाम रखती है। इसकी शुरुआत फ़ारसी सूफ़ी रिवायत से हुई और इसे समाख़्वानी के तौर पर पेश किया जाता था। समाख़्वानी एक ऐसी रस्म थी जिसमें हम्द, नात, मन्क़बत और कसीदे जैसे अशआर और गीत पेश किए जाते थे। ये कलाम सूफ़ी संतों और इस्लामी मज़हब की तारीफ़ और अक़ीदत में होते थे। 

भारत में क़व्वाली का आग़ाज़ और तरक़्क़ी 

क़व्वाली भारत में 13वीं सदी के दौरान सूफ़ी संतों के साथ पहुंची। हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया और उनके मुरीद अमीर ख़ुसरो ने क़व्वाली को रिवाज दिया। ख़ुसरो ने फ़ारसी, अरबी और तुर्की ज़ुबानों के साथ भारतीय लोक संगीत का अनूठा मेल कर क़व्वाली को नई पहचान दी। इसके ज़रिए अमन, मोहब्बत और रूहानी पैग़ाम लोगों तक पहुंचाए गए।  मुग़ल दौर में क़व्वाली का और भी ज़्यादा फ़रोग़ हुआ। दहली और उसके इर्द-गिर्द सूफ़ी दरगाहों पर क़व्वाली को एक इबादत की शक्ल दी गई। धीरे-धीरे यह मौसिक़ी की एक मक़बूल सिन्फ़ बन गई, जो सिर्फ़ मज़हबी तक़रीबात तक महदूद नहीं रही, बल्कि शादियों और समाजी तक़रीबात में भी अपनी जगह बनाने लगी।  

क़व्वाली की ख़ासियत और उसके औज़ार 

क़व्वाली की असल ख़ासियत उसके अल्फ़ाज़ और उन्हें पेश करने के अनोखे अंदाज़ में है। शब्दों का ऐसा तिलिस्म जो बार-बार दोहराए जाने के बावजूद नए एहसासात और रूहानी असर पैदा करता है। ये सुनने वालों को एक ऐसे आलम में ले जाता है जहां वह रूहानी सुकून और आध्यात्मिक समाधि का तजुर्बा करते हैं।  

शुरुआत में क़व्वाली में ढोलक, तानपुरा और हारमोनियम का इस्तेमाल होता था। वक्त के साथ-साथ तबला, सितार और सारंगी जैसे साज़ शामिल किए गए। आज के दौर में इलेक्ट्रॉनिक साज़ भी क़व्वाली में जगह बना चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद इसका असल रूहानी असर क़ायम है।  

क़व्वाली के मशहूर नाम और असर 

हज़रत अमीर ख़ुसरो, बुल्ले शाह, बाबा फ़रीद, वारिस शाह और हज़रत सुल्तान बाहू जैसे सूफ़ीयां कराम ने क़व्वाली को जो मक़बूलियत दी, वो आज तक बरक़रार है। 20वीं सदी में उस्ताद नुसरत फतेह अली ख़ान, अजीज़ नाज़ां और राशिदा ख़ातून जैसे क़व्वालों ने इसे दुनिया भर में मक़बूल बना दिया। इनकी क़व्वाली ने मज़हब, मुल्क़ और ज़बान की सरहदों को पार करते हुए रूहानी पैग़ाम हर शख़्स तक पहुंचाया।

क़व्वाली का रूहानी मक़सद

क़व्वाली सिर्फ़ एक मौसिक़ी नहीं, बल्कि सूफ़ीयाना तहज़ीब और अमन-ओ-मोहब्बत का दीन है। यह महज़ लोगों का दिल बहलाने के लिए नहीं, बल्कि रूहानी तरबियत और सूफ़ीयाना अक़ीदत के इज़हार का ज़रिया है। मंच पर बैठने का सलीक़ा और हर क़व्वाल की जगह उसकी बुज़ुर्गी के मुताबिक़ तय की जाती है।  

क़व्वाली का असल मक़सद सुनने वालों को मोहब्बत और ख़ुदा की याद में डूबा देना है। इसके कलाम, अंदाज़ और मौसिक़ी का यही जादू है कि यह सात समंदर पार भी मक़बूलियत हासिल कर चुकी है।  

क़व्वाली सिर्फ़ एक सिन्फ़-ए-मौसिक़ी नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पुरानी एक रिवायत है, जो सूफ़ी अक़ीदत, रूहानी सुकून और अमन के पैग़ाम का नायाब संगम है। इसकी गूंज मज़ारों, दरगाहों से निकलकर हर उस दिल तक पहुंची है जो मोहब्बत और रूहानियत की तलाश में है।

ये भी पढ़ें:ग़ज़लों की जान, मुशायरों की शान और उर्दू अदब राहत इंदौरी के नाम

आप हमें FacebookInstagramTwitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।

RELATED ARTICLES
ALSO READ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular