05-Jul-2025
Homeहिन्दीAsgar Ali की KalaBhumi: जहां पला हुनर, बना रिकॉर्ड और रची गई...

Asgar Ali की KalaBhumi: जहां पला हुनर, बना रिकॉर्ड और रची गई राम मंदिर की पेंटिंग

इंटरनेशनल फ़ेयर में तिहाड़ जेल के एक कैदी की पेंटिंग 75,000 रुपये में बिकी।

नई दिल्ली के द्वारका में एक ऐसी जगह है, जहां बच्चों को सिर्फ़ पेंटिंग नहीं सिखाई जाती, बल्कि उन्हें ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने का सपना भी दिखाया जाता है। इस जगह का नाम है- KalaBhumi Institute of Fine Arts। इसे शुरू किया Asgar Ali ने, जो ख़ुद एक अच्छे कलाकार हैं और हज़ारों लोगों को कला सिखा चुके हैं और सीखा रहे हैं।

एक साधारण बच्चा, जिसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था

Asgar Ali एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक़ रखते हैं। बचपन में उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था। वो हमेशा स्कूल में पिछली बेंच पर बैठते थे और अक्सर पढ़ाई से दूर ही रहते। लेकिन उनके बड़े भाई की पेंटिंग ने उनके अंदर भी एक दिलचस्पी जगा दी। जब उन्होंने देखा कि उनके भाई किस तरह रंगों से सुंदर चित्र बनाते हैं, तो उनके अंदर भी कला की चिंगारी जाग उठी।

Asgar Ali की कला के प्रति लगन को देखकर उनके पिता ने उन्हें अपने एक मित्र की गुड़गांव (अब गुरुग्राम) स्थित दुकान पर काम करने की सलाह दी। ये सलाह उनकी ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुई। वहीं पर उनकी मुलाकात रामबाबू जी से हुई, जो राजस्थान की पारंपरिक कला सिखाते थे। यहीं से असगर की कला यात्रा ने नई दिशा पकड़ी।

असगर रोज़ गुड़गांव से दिल्ली साइकिल से आते-जाते थे। ये सफ़र बहुत थकाने वाला था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वो दिन-रात मेहनत करते रहे। Asgar Ali ने दो साल तक लगातार उनसे सीखा। यहां उन्होंने पेंटिंग की बारीकियां, रंगों का संतुलन और धैर्य जैसे गुण सीखे। यहीं Asgar Ali ने पहली बार जाना कि कला सिर्फ़ एक शौक नहीं, बल्कि करियर भी बन सकती है। उन्हें ये एहसास हुआ कि अगर उन्होंने ये कला नहीं सीखी होती, तो शायद उन्हें ड्राइवर या होटल में बर्तन धोने का काम करना पड़ता।

घर से ट्यूशन क्लास, फिर बना कलाभूमि का सपना

Asgar Ali ने आर्ट में ग्रेजुएशन किया और फिर जामिया मिल्लिया इस्लामिया से आगे की पढ़ाई की। तभी उन्होंने तय किया कि सिर्फ़ ख़ुद आर्ट बनाना नहीं है, दूसरों को भी सिखाना है। अपने हुनर को दूसरों में भी बांटने की इच्छा से उन्होंने अपने घर से ही ट्यूशन क्लासेस देना शुरू कर दीं। जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ी, उन्हें ये समझ में आया कि इसे एक व्यवस्थित रूप देना ज़रूरी है। उन्होंने फिर ‘कलाभूमि’ की कल्पना की- एक ऐसी संस्थान, जो न सिर्फ़ कला सिखाए बल्कि कलाकारों को आत्मनिर्भर भी बनाए। और यहीं से कलाभूमि की नींव पड़ी।

समाज से टकराव और सवाल- “आर्ट करके क्या करोगे?”

जब Asgar Ali ने कला को करियर बनाने की बात की, तो समाज के बहुत से लोगों ने सवाल खड़े किए। गांव के लोग कहते थे, “कला से क्या कमाओगे? आगे चलकर क्या करोगे?” लेकिन असगर ने कभी हार नहीं मानी। वो कहते हैं, “उनके गुरु ने सवाल किया था कि असगर, तुम एक बड़े आर्टिस्ट बनना चाहते हो या कुछ अलग करना चाहते हो?” असगर ने कहा था, “एक बड़ा आर्टिस्ट बनकर मैं कितनी ही पेंटिंग बना लूंगा। लेकिन अगर दूसरे लोगों को भी सिखाकर जाऊं, तो मेरी कला दुनियाभर में फैल जाएगी।”

संघर्ष के दिन और टूटने का दौर

Asgar Ali ने सबसे पहले उत्तम नगर में एक कला केंद्र शुरू किया था, लेकिन 2014-15 के दौरान जब दिल्ली में दुकानों को सील किया जा रहा था, तब उनका कोचिंग सेंटर भी बंद कर दिया गया। वो बिल्कुल टूट गए थे। किराया देने के पैसे भी नहीं थे। वो दौर ऐसा था जब उन्होंने ख़ुद को ख़त्म करने तक का सोच लिया था। लेकिन तभी उनका एक पुराना स्टूडेंट, जो कई महीनों बाद वापस लौटा था, एक नई उम्मीद लेकर आया। उसने असगर को प्रोत्साहित किया, उन्हें द्वारका में नई जगह दिलवाई और आर्थिक मदद भी दी। इस स्टूडेंट की वजह से असगर दोबारा खड़े हुए और कलाभूमि का नया अध्याय शुरू हुआ।

जब तिहाड़ के कैदी की पेंटिंग 75,000 रुपए में बिकी

इस दौरान असगर ने तिहाड़ जेल में कैदियों को आर्ट की वर्कशॉप देना शुरू किया। वहां उन्होंने देखा कि कैसे एक 7 फ़ीट लंबा कैदी, जो पहले थोड़ा-बहुत ही पेंटिंग करता था, 6 महीने बाद ख़ूबसूरत पेंटिंग्स बनाने लगा। इंटरनेशनल फ़ेयर में जब उस कैदी की बनाई पेंटिंग लगाई गई, तो वो 75,000 रुपये में बिकी। ये तिहाड़ और कलाभूमि, दोनों के लिए एक ऐतिहासिक पल था। ये बदलाव देखकर असगर को लगा कि कला सिर्फ़ करियर नहीं, बल्कि सुधार का एक ज़रिया भी बन सकती है।

रिकॉर्ड्स और उपलब्धियां

कलाभूमि ने अपने क़रीब 16 साल के सफ़र में कई रिकॉर्ड बनाए हैं।

नोटबंदी के दौरान 500 रुपये का सबसे बड़ा नोट बनाया गया, जिसे 43 स्टूडेंट्स ने मिलकर तैयार किया था।

डॉ. अब्दुल कलाम की एक टाइपोग्राफ़िक पेंटिंग बनाई गई, जिसमें उनका पूरा नाम ही चित्र बन गया।

राम मंदिर की सबसे बड़ी पेंटिंग बनाई, जिसमें राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और नरेंद्र मोदी भी थे। ये पेंटिंग प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंची।

असगर अली को इन उपलब्धियों के लिए लिमका बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स, एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स, वर्ल्ड वाइड रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में जगह भी मिली।

इंटरनेशनल लेवल पर भारत को दिलाई पहचान

असगर ने दुबई, सिंगापुर और मलेशिया जैसे देशों में भी अपने आर्ट फ़ेयर किए। वहां उन्होंने देखा कि Abstract और Conceptual Art को बहुत सराहा जाता है, जबकि भारत में अब भी Realistic और पारंपरिक कला को ज़्यादा महत्व दिया जाता है। लेकिन वो मानते हैं कि भारत में भी बदलाव आ रहा है और कलाकारों के लिए समाज में सम्मान बढ़ रहा है।

अध्यात्म और श्रीकृष्ण की छाया

असगर की कई पेंटिंग्स में श्रीकृष्ण की झलक मिलती है। वो बताते हैं कि उनके गुरु ने कहा था कि कला को अध्यात्म से जोड़ना चाहिए। बचपन में रामायण और महाभारत देखने के अनुभव ने उनके मन में धर्म और संस्कृति के लिए गहरा सम्मान पैदा किया। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अपार श्रद्धा है। इसलिए उन्होंने कृष्ण की कई paintings बनाई हैं।

स्टूडेंट्स की कहानियां

यहां बच्चों को केवल पेंटिंग करना नहीं सिखाया जाता, बल्कि ये भी सिखाया जाता है कि स्टेज पर आत्मविश्वास के साथ कैसे बोलें, लोगों के सामने कैसे खड़े हों, और अपनी कला को दुनिया तक कैसे पहुंचाया जाए। अब तक यहां से 7000 से ज़्यादा स्टूडेंट्स सीख चुके हैं, जिनमें से कई ने अपनी खुद की आर्ट अकादमी शुरू कर दी है। असगर अली का मानना है कि सिर्फ़ कला ही नहीं, बल्कि एक कलाकार का पूरा व्यक्तित्व भी तैयार होना चाहिए।

प्रेरणा कोलकाता से आई हैं और कलाभूमि में डिप्लोमा कोर्स कर रही हैं। उन्होंने DNN24 को बताया कि उन्हें भाषा के कारण कभी कोई भेदभाव महसूस नहीं हुआ और कलाभूमि से कई सारी चीज़ें सीखने को मिली हैं। ऐसे ही प्रभात कुमार, बिहार से हैं। पहले पंजाब नेशनल बैंक में चीफ़ मैनेजर थे। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अकेलेपन को दूर करने के लिए कलाभूमि में एडमिशन लिया। आज बेहद ख़ूबसूरत पेंटिंग बनाते हैं। साथ ही बिहार की संस्कृति को अपनी पेंटिंग्स में जगह देते हैं।

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर असगर अली की सोच

Asgar Ali कहते हैं कि आजकल के समय में भले ही आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) तेज़ी से बढ़ रहा है, लेकिन ये इंसान की जगह नहीं ले सकता। AI को इंसान ही डेटा देता है, लेकिन क्रिएटिविटी और इमोशन सिर्फ़ इंसान दे सकता है। कला का असली रूप तभी सामने आता है जब उसमें कलाकार की आत्मा जुड़ी हो।

कलाभूमि सिर्फ़ एक संस्थान नहीं, एक सोच है। ये वो ज़मीन है जहां कला को इबादत माना जाता है। जहां हर स्टूडेंट को सिखाया जाता है कि वो सिर्फ़ रंग नहीं भर रहे, बल्कि किसी की ज़िंदगी भी बदल सकते हैं। अगर आप भी कला से प्यार करते हैं या फिर कुछ नया सीखना चाहते हैं, तो कलाभूमि आपके लिए एक सही शुरुआत हो सकती है।

ये भी पढ़ें: मिनिएचर गोल्ड वर्क आर्टिस्ट इकबाल सक्का ने 43 सालों में बनाए 110 विश्व रिकॉर्ड

आप हमें FacebookInstagramTwitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।

RELATED ARTICLES
ALSO READ

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular