कश्मीर की पारंपरिक कला का गौरव और उसकी महिमा को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने वाले फारूक अहमद मीर को पद्मश्री से नवाज़ा जाएगा। श्रीनगर के प्रसिद्ध कारीगर फारूक अहमद ने कानी शॉल और पश्मीना बुनाई जैसी ऐतिहासिक कश्मीर हस्तशिल्प कला को ना सिर्फ संरक्षित किया, बल्कि उन्हें वैश्विक मंच पर एक नई पहचान भी दिलाई।
फारूक अहमद मीर ने इस कला को महज़ 10 साल की उम्र में अपने पिता से सीखा था। परिवार में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तशिल्प का यह ज्ञान ट्रांसफर हुआ। उन्होंने अपनी कला को न केवल खुद सीखा, बल्कि अपने बेटों को भी इसे सिखाकर इस कला को जीवित रखा। फारूक अहमद का मानना है कि यह पद्म श्री सम्मान उनके परिवार की कड़ी मेहनत और प्रयासों का परिणाम है।
फारूक अहमद मीर प्रेरणा और सम्मान
इससे पहले, 2014 में उन्हें संत कबीर पुरस्कार और 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनके योगदान को कश्मीर के हस्तशिल्प और हथकरघा विभाग ने भी सराहा। विभाग के निदेशक मुसरत इस्लाम ने कहा, “यह सम्मान कानी बुनाई और पश्मीना कपड़ों को नई पहचान देगा। ये शिल्प वैश्विक बाजार में बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं।”
कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर
कानी शॉल और पश्मीना बुनाई की कला को शुद्ध पश्मीना ऊन और जटिल डिज़ाइनों के साथ तैयार किया जाता है, जो महीनों का समय लेते हैं। इस कला में परंपरागत पैटर्न बनाए जाते हैं, जो उसे पूरी दुनिया में ख़ास बनाते हैं। फारूक अहमद का यह सम्मान कश्मीर की कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के उनके प्रयासों को और मज़बूत करेगा। इस सम्मान से न केवल उनका, बल्कि कश्मीर की अनमोल हस्तशिल्प कला का भी दुनिया में नया स्थान बनेगा।
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