21-May-2025
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गरीब बच्चों को नई ज़िंदगी दे रहीं ‘थान सिंह की पाठशाला’

गरीबी को दरकिनार कर और अपने सपनों को साकार करने वाले लोगों की कहानियां आपने ज़रूर सुनी होगी। ऐसे ही एक की कहानी है थान सिंह की.. जो दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल हैं। उन्होंने पुरानी दिल्ली के लाल किले की पार्किंग में बने मंदिर में एक पाठशाला की शुरुआत की। ये पाठशाला उन मज़दूरों की हैं जिनके बच्चे कभी स्कूल नहीं जा पाते।

साल 2016 में सिर्फ चार बच्चों के साथ शुरू हुई इस पाठशाला में आज करीब 105 बच्चे पढ़ते हैं। इस पाठशाला को शुरू करने का उनका उद्देश्य बच्चों को गलत आदतों और क्राइम से रोकने का था।

कौन हैं थान सिंह

थान सिंह पीएस कोतवाली दिल्ली नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट में तैनात हैं। उनकी पैदाइश राजस्थान के भरतपुर में हुई। जब वो छोटे थे तभी उनके मां-बाप दिल्ली आकर बस गए। जैसे तैसे एक झुग्गी में अपना गुजर बसर किया। थान सिंह ने अपने मां बाप का संघर्ष करीब से देखा था। जब वो सुबह चार बजे उठकर काम पर जाते थे। फिर वहां से आकर कपड़ों पर प्रेस करने के लिए जाते।

उन्होंने बताया कि “मैं कई सालों से अपने मां बाप का यही संघर्ष देखता रहा। जब मैं छठी क्लास में आया तो मैं भी उनके साथ जाने लगा। मेरे पिता जी का सपना था दिल्ली पुलिस में भर्ती होने का था, लेकिन उनका सपना पूरा नहीं हो सका, इसलिए वो मुझे दिल्ली पुलिस में भर्ती कराना चाहते थे। उन्होंने मेरा नाम भी कुछ हटकर रखा, लोग मुझे थाना के नाम से बुलाते थे।’’

घर का बड़ा बेटा होने के नाते घर की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर थी। उनकी तमन्ना थी कि वो अपने पिताजी का सपना पूरा करें। अब उनके पिता का सपना थान सिंह का सपना भी बन गया था।

थान सिंह ने दिल्ली पुलिस के लिए एग्जाम दिया और दो बार फेल हो गए। तब लोग उनका मज़ाक उड़ाने लगे थे। जब लगातार मेहनत करने के बाद उनका सिलेक्शन हुआ तो तो उन्होंने ठान लिया था कि अब वर्दी पहनी है तो लोगों की सेवा करेंगे।

कैसे शुरू हुई ‘थान सिंह की पाठशाला’

जब थान सिंह की ड्यूटी लाल किले के आस पास लगी। तो उन्होंने देखा कि लाल किले के आस-पास मजदूरों के बच्चे कूड़ा बीन रहे हैं, कोई भीख मांग रहा हैं, कोई गुटखा खा रहा हैं। जब थान सिंह ने इन बच्चों से पूछा कि आप पढ़ना चाहते हो तो उन्होंने कहा कि हम पढ़ना चाहते हैं। तब थान सिंह ने लाल किले के पार्किंग में बने एक मंदिर में पाठशाला की शुरुआत की और नाम रखा ‘थान सिंह की पाठशाला।’

शुरुआत में काफी कम बच्चे पढ़ने आते थे। थान सिंह ने बच्चों के मां बाप से बात की। उन्होंने देखा कि लोग पुलिस वालों पर जल्दी विश्वास नहीं करते हैं इसलिए उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि हम आपके बच्चों को सच में पढ़ाना चाहते हैं। जब उन्हें विश्वास हो गया तो उन्होंने बच्चों को भेजना शुरू किया। 2015 में महज़ पांच से सात बच्चों के साथ शुरू हुई इस पाठशाला में आज 105 बच्चे पढ़ने आते हैं। करीब 150 बच्चे ऐसे हैं जिनको प्राथमिक शिक्षा मिल गई हैं और अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं।

थान सिंह ने DNN24 को बताया कि शुरुआत में जब पाठशाला शुरू हुई तो उनके बच्चे काफी छोटे थे। तब वह सोचते थे कि थोड़ा बहुत पैसा वो अपने जेब से बचा कर गरीब बच्चों की पढ़ाई में लगाएं उनकी कुछ मदद कर सकें। उन्होंने कुछ पैसे बचाकर बच्चों की मदद की।बच्चों को पाठशाला में बुलाने के लिए उन्होंने बच्चों को खेलकूद और खाने पीने की लालच दी। थान सिंह का मानना हैं कि इन सभी चीज़ों को मुकम्मल करने के लिए उनके सीनियर ऑफिसर्स ने बहुत मदद की। ये काम वो अकेले नहीं कर सकते थे।

जब पाठशाला से जुड़ने लगे लोग

जब बच्चे पहली बार स्कूल गए तो 9 बच्चे फर्स्ट, सेकंड, थर्ड आए। जब बाकी लोगों को इस पाठशाला के बारे में पता चला तो वो भी अपने बच्चों को यहां भेजने लगे। थान सिंह कहते हैं कि कोई भी मां बाप दिहाड़ी नहीं छोड़ना चाहता। उनके लिए एक दिन की कीमत बहुत होती है। एक दिन की कीमत से उनके घर का चूल्हा जलता है।

उन्होंने बताया कि “मैं ये काम अकेले नहीं कर सकता था। मेरी इस पहल के साथ माता सुंदरी कॉलेज की लड़कियां वॉलिंटियर के तौर पर इस पाठशाला के साथ जुड़ी।”

पाठशाला की वॉलिंटियर अंकिता बताती हैं कि उन्होंने 2016 में पढ़ाना शुरू किया था। पहले अंकिता पार्क में बच्चों को पढ़ाया करती थी। वो कहती हैं कि अंकल बच्चों को काफी सपोर्ट करते थे उन्हें खाने पीने की सामान, स्टेशनरी का सामान देते थे जिससे बच्चे गलत संगत में न पड़े। यहां बच्चों के बड़े-बड़े सपने हैं। कोई पुलिस ऑफिसर बनना चाहता हैं, कोई आईपीएस बनना चाहता हैं।

दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा सीरत बताती हैं कि उन्हें पाठशाला में आते हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। जब उन्हें घर की याद आती है तो वो पाठशाला आ जाती हैं। बच्चों के साथ हर एक त्यौहार मनाती हैं।

जब जर्मनी से आए लोग पहुंचे थान सिंह पाठशाला में

थान सिंह ने DNN24 को बताया कि इस पाठशाला में कठिनाइयां बहुत हैं। शुरुआत में लोगों ने इसका बहुत मज़ाक उड़ाया था। धीरे धीरे जब लोग पाठशाला पर विश्वास करने लगे और लोगों कर पाठशाला के बारे में पता चलने लगा तो कई लोगों ने उनका साथ भी दिया। एक दिन पाठशाला में जर्मनी से 40 लोगों का एक ग्रुप आया। उन्होंने बच्चों से मिलने का आधे घंटे का प्रोग्राम रखा था लेकिन जब वो यहां आए तो उन्होंने करीब दो से ढाई घंटे बच्चों के साथ बिताए। उन्होंने थान सिंह को पैसे देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने पैसे लेने के लिए मना कर दिया। जब वो यहां से चले गए तो उन्होंने बच्चों के लिए कम्प्यूटर, लैपटॉप, प्रोजेक्टर और स्पीकर वगैरह भेजे।

बच्चों के साथ थान सिंह का रिश्ता

थान सिंह कहते हैं कि बच्चों के साथ उनका रिश्ता उनके खुद के बच्चों की तरह हैं। सबसे ज्यादा समय वह इन बच्चों के साथ निकलते हैं। और इन बच्चों ने उन्हें बाप का दर्जा दिया है। वह इन बच्चों के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। पाठशाला में अगर किसी बच्चे का जन्मदिन होता हैं। तो वो तब तक केक नहीं काटते जब तक थान सिंह उनके पास नहीं पहुंचते।

छात्रा नीलू बताती हैं कि “मैं यही पास में ही रहती हूं। मेरे पापा नहीं है और मेरी मां मजदूरी करती हैं। मैं इस पाठशाला में करीब तीन, चार सालों से पढ़ रही हूं। मुझे सबसे अच्छा विषय इतिहास लगता है और मैं बड़े होकर आईपीएस ऑफिसर बनना चाहती हूं। मैं अंकल को मेरे लिए पापा की तरह हैं।”

छात्र अजेय बताते हैं कि “मैं सड़कों पर कूड़ा बीनता था फिर इस पाठशाला के बारे में पता चला और मैं यहां आया। इस पाठशाला की वजह से मेरा अब छठी क्लास में एडमिशन होगा।”

थान सिंह कहते हैं कि पाठशाला में हर इंसान आता है उससे जितनी मदद हो सकती हैं वह करता है। वो चाहते हैं कि बच्चे वर्दी की इज़्ज़त करें। और ये इतना पढ़ ले कि आने वाली पीढ़ी को पढ़ाए सकें।

ई रिक्शा चालक सलीम बच्चों को देते हैं फ्री सेवा

सलीम लाल किले के आस पास ई रिक्शा चलाते हैं। जब उन्हें थान सिंह की पाठशाला के बारे में पता चला तो वह बच्चों को फ्री सेवा देने लगे। वह रोज़ शाम को समय पर बच्चों को लेने आते हैं। सलीम का मानना हैं कि “जब तक मेरी गाड़ी चल रही हैं तब तक मैं बच्चों की सेवा करता रहूंगा। आज के समय में शिक्षा बहुत ज़रूरी हैं। मैं एक शायरी कहना चाहूगां।”

“इस तरह हौसले आजमाया करो

मुश्किलों में भी सदा मुस्कुराया करो

दो निवाले ही भला कम खाया करो

मगर अपने बच्चों को पढ़ाया करो”

थान सिंह कहते हैं कि आज जैसे ये एक थान सिंह की पाठशाला है। ऐसे ही और लोगों की भी पाठशाला बने। जो बच्चे पढ़ना चाहते हैं वो पढ़ सकें और अपनी आने वाली पीढ़ी को पढ़ा सकें।

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