हर सुबह उसके घर से एक सपना निकलता है। क्रिकेट खेलने का जुनून और कुछ कर दिखाने की लगन… कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के छोटे से गांव अरिगोहल में रहने वाले Hilal Ahmad Wani की यही रोज़मर्रा की शुरुआत होती है। अपने क्रिकेट किट बैग को लेकर जब वो मैदान की ओर बढ़ते हैं, तो उनकी खामोशी खुद बोलने लगती है। उनके हाथों में ग्लव्स, पैरों में पैड, सिर पर हेलमेट और हाथों में बल्ला होता है और जब वो बल्ला चलता है, तो उनकी चुप्पी भी बोल उठती है।
दुबई की जीत
Hilal Ahmad Wani सुन और बोल नहीं सकते, लेकिन क्रिकेट मैदान पर वो अपने खेल से दुनिया को अपनी धमक दिखाते हैं। एक छोटे से गांव से उठकर दुबई में आयोजित वर्ल्ड डेफ़ क्रिकेट लीग तक का उनका सफ़र मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास की मिसाल है। भारत की तरफ़ से खेलते हुए उन्होंने टीम को जीत दिलाई और साबित कर दिया कि इच्छाशक्ति और लगन से कोई भी मंज़िल हासिल की जा सकती है। वर्ल्ड डेफ़ क्रिकेट लीग में हिलाल ने ऐसा प्रदर्शन किया कि सब देख कर हैरान रह गए। उन्होंने 29 गेंदों में 70 रन बनाए और 3 विकेट लिए। उन्हें मैन ऑफ़ द मैच और मैन ऑफ़ द सीरीज़ का खिताब मिला।
परिवार का साथ: सपनों की सबसे बड़ी ताकत
हिलाल की बहन नीलम जान बताती हैं कि उन्हें बचपन से क्रिकेट का बहुत शौक था। लेकिन 2014 में जब वो रणजी ट्रायल्स से बाहर हो गए, तो उनका हौसला टूट गया। उस वक़्त परिवार ने उनका हौसला बढ़ाया और डेफ़ क्रिकेट में आगे बढ़ने के लिए सपोर्ट किया। परिवार का यही साथ उनके सफ़र में सबसे बड़ी ताकत बनी।

Hilal Ahmad Wani को जन्म से सुनने और बोलने की दिक्कत नहीं थी। टाइफॉइड की वजह उन्होंने सुनने और बोलने क्षमता खो दी। लेकिन उनका दिमाग तेज और इरादे मज़बूत रहे। उन्होंने आम बच्चों के साथ पढ़ाई की, और खेल में भी आगे रहे। अमृतसर के खालसा कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट भी खेला। वो इतने शानदार खिलाड़ी थे कि लगभग हर टूर्नामेंट में मैन ऑफ़ द मैच या मैन ऑफ़ द सीरीज़ जीतते थे।
देशभर में खेला, युवाओं के लिए बनें प्रेरणा
हिलाल ने गुजरात, यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब जैसे राज्यों में क्रिकेट टूर्नामेंट खेले और अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने दिखाया कि शारीरिक कमज़ोरी कभी भी सपनों के बीच दीवार नहीं बन सकती। Hilal Ahmad Wani की बहन कहती हैं कि “अब हम अथॉरिटीज़ से ये अपील करते हैं कि आप हिलाल को अच्छा प्लेटफ़ॉर्म दीजिए। वो नेशनल लेवल खेलना चाहते हैं, आईपीएल खेलना चाहते हैं। जहां तक हम सपोर्ट कर सकते थे हमने किया।”

जब Hilal Ahmad Wani ट्रॉफ़ी लेकर घर लौटते हैं, तो मां उन्हें सीने से लगाकर चूमती हैं और पिता गर्व से गले लगाते हैं। ये वो पल होता है जब एक बेटे की मेहनत, माता-पिता की आंखों की चमक बन जाती है। हिलाल अहमद वानी की कहानी सिर्फ़ क्रिकेट की नहीं, हिम्मत, जुनून और आत्मविश्वास की कहानी है। उन्होंने जो मुक़ाम हासिल किया है, वो हर उस युवा को प्रेरित करता है, जो मुश्किलों से लड़कर कुछ बड़ा करना चाहता है। हिलाल की ख़ामोशी, आज लाखों लोगों की आवाज़ बन चुकी है।
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