05-Dec-2023
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असम के माँ कामाख्या मंदिर में नवरात्रि के दौरान चण्डीपाठ का क्या है महत्व?

भक्त कहते है कि अगर आप संकल्प लेकर इस चण्डीपाठ को करते है तो उससे आपको कई सारी चीजों के लाभ होते है

नीलांचल की पहाड़ियों पर स्थित कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) में दुर्गा पूजा आयोजन (Durga Puja) का इतिहास करीब हज़ार साल पुराना है। दुर्गा पूजा के मौके पर नवरात्रि के दौरान लोग चण्‍डीपाठ करते हैं। चण्डीपाठ शक्ति की देवी माता दुर्गा के राक्षस महिषासुर पर जीत की कहानी कहता है। नवरात्रि में इसे विशेष तौर पर कई घरों में पढ़ा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि चण्डीपाठ करने से भय और पापों का नाश होता है। साथ ही हर प्रकार के संकट से निवारण, शुभ फल मिलते हैं और शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है। लेकिन माँ दुर्गा के कुछ ऐसे भक्त भी हैं जो चण्डीपाठ करने के लिए सिद्ध पीठों की ओर चल पड़ते हैं। 51 सिद्ध पीठों में सबसे महत्वपूर्ण सिद्ध पीठ असम का कामाख्या मंदिर है, जहां नवरात्रि की धूम होती है लेकिन और जगहों से अलग। 

चंडीपाठ करने से हर मनोकामना होती है पूरी

नवरात्रि के दौरान यहाँ दूर-दूर से सैकड़ों की संख्या में भक्त और साधक पहुंचते हैं और मंदिर परिसर में बैठ कर चण्‍डीपाठ करते हैं। भक्तों का मानना है कि नवरात्रि के दौरान यहाँ चण्‍डीपाठ करने से माँ हर मनोकामना पूरी करती है। यही कारण है कि एक बार जो साधक यहाँ आकर साधना करता है वो हर साल यहाँ खिंचा चला आता है।

नवरात्री के दौरान पूरा मंदिर चण्डीपाठ से गूंजने लगता है। जिसको जो स्थान मिल गया वह वहीं चण्‍डीपाठ करने लगता है। आपकों सैकड़ों साधक ऐसे मिल जाएगें जो एक या दो नहीं बल्कि कई दशकों से नवरात्र के दौरान चंडीपाठ करने कामाख्या मंदिर आते है। ऐसे ही साधकों में से एक है बिहार के 60 वर्षीय चंदेश्वर पाठक 40 सालों से वह नवरात्र के दौरान कामाख्या आए और बस यूहीं पाठ करने लगे। मां ने उनके जीवन में ऐसा चमत्कार दिखाया कि वह गत 40 सालों से हर साल कामाख्या आते है। कहते है कि “मां की नजरों से कोई भक्त बच नहीं सकता चाहे वह संसार के किसी भी कोने में हो”।

कामाख्या मंदिर
चंदेश्वर पाठक. Image Source by DNN24

ऐसे ही भक्तों में दूसरा नाम है मध्य प्रदेश के छगनलाल नागर का, छगनलाल को कामाख्या और मां की महिमा के बारे में काफी कुछ सुन रखा था लेकिन कभी मंदिर आने का मौका नहीं मिला लेकिन मां के प्रति उनकी भक्ति कभी कम नहीं हुई। आखिरकार मां ने उनकी मनोकामना सुन ली और साल 2011 में छगनलाल एक मंडली के साथ कामाख्या आए। और इसके बाद से छगनलाल के कदम हर साल मंदिर की ओर चल पड़ते है। वह कहते है कि “मंदिर में बैठकर चंडीपाठ करने से  इस पाठ का महत्व हजारगुना बढ़ जाता है जब हम नवरात्री के दौरान मां भगवती की अराधना करते है तो विकट से विकट स्थिति मां उस स्थिति का निवारण कर देती है”। 

कामाख्या मंदिर
छगनलाल नागर. Image Source by DNN24

पूजा उत्सव में ‘कुमारी पूजा’ का महत्व

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कामाख्या मंदिर में आस्था रखनेवालों का कहना है कि नारी शक्ति की याद में कुमारी पूजा की जाती है, जिसमें एक युवती को नई लाल साड़ी, माला, सिंदूर, आभूषण, इत्र आदि से ख़ूबसूरती से सजाकर देवी कामाख्या के रूप में पूजा जाता है। युवती को सृजन, स्थिरता और विनाश को नियंत्रित करनेवाली शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। पूजा उत्सव में ‘कुमारी पूजा’ के अनुष्ठान का बड़ा महत्व है। कामाख्या को विश्व का सर्वोच्च कुमारी तीर्थ भी माना जाता है। यह उत्सव कृष्ण नवमी से शुरू होता है और अश्विन माह की शुक्ल नवमी के दिन समाप्त होता है। इसलिए इसे ‘पखुआ पूजा’ भी कहा जाता है। कामाख्या में दुर्गा पूजा अनोखे तरीके से की जाती है। यहां देवता (पीठ स्थान) का आनुष्ठानिक स्नान किया जाता है, भैंस, बकरी, कबूतर, मछली की बलि दी जाती है, साथ ही साथ लौकी, कद्दू और गन्ने भी चढ़ाए जाते हैं।

कामाख्या मंदिर
कामाख्या मंदिर में चंण्डीपाठ करते भक्त. Image Source by DNN24

मां के कुछ भक्त ऐसे भी है जिनकी भक्ति अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए नहीं बल्कि वो सारे संसार की खुशहाली और विश्वभर में शांति की मनोकामना लिए मां के दरबार में चले आते है। ऐसे लोग अकेले नहीं बल्कि उनका पूरा दल होता है। यह पूरा दल मंदिर के किसी कोने में चंडीपाठ करने में व्यस्त होते है। भक्त कहते है कि “कीमती वस्तुओं की प्राप्ति की जा सकती है अगर आप संकल्प लेकर इस चंडीपाठ को करते है तो उससे आपको कई सारी चीजों के लाभ होते है”।

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