क्या आपने कभी सोचा है कि अगर पहाड़ों की हवा में कोई सुर घुल जाए, तो वो कैसा महसूस होगा? आभा हंजूरा की आवाज़ कुछ वैसी ही है जिसमें कश्मीर की रूह, लोकगीतों की मिठास और आज के दौर की ताज़गी मिलती है। वो सिर्फ़ कश्मीरी या हिंदी तक महदूद नहीं, बल्कि पंजाबी, डोगरी और कई ज़बानों में गाती हैं। सूफ़ियाना अंदाज़ से लेकर इंडी पॉप तक उनका सफ़र एक मिसाल है।
आवाज़ की बुनियाद: घर से मिला साज़
आभा का ताल्लुक़ एक मिडिल क्लास कश्मीरी पंडित घराने से है, जहां फ़न और फ़नकारी विरासत में मिलती है। उनकी वालिदा ख़ुद एक तरबियत-याफ़्ता शास्त्रीय गायिका थीं और उन्होंने ही सबसे पहले आभा की आवाज़ में कुछ ख़ास महसूस किया। बचपन में ही आभा ने रियाज़ शुरू कर दिया और जम्मू में रहकर बाक़ायदा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखा।
शुरू में संगीत उनका सिर्फ़ शौक़ था, लेकिन वक़्त के साथ वो जुनून में तब्दील हो गया। इंडियन आइडल में उन्होंने भाई और दोस्तों के कहने पर ऑडिशन दिया, लेकिन जब वो टॉप फाइनलिस्ट में पहुंचीं, तो पहली बार उन्हें अपनी आवाज़ की असली क़द्र महसूस हुई।
कॉर्पोरेट की दुनिया से सुरों की सदा तक
इंडियन आइडल के बाद शोहरत तो मिली, मगर आभा को एहसास हुआ कि बॉलीवुड उनका रास्ता नहीं है। उन्होंने एक कॉर्पोरेट नौकरी की, लेकिन दिल तो कहीं और था। आख़िरकार उन्होंने उसी राह को चुना जो दिल को राहत देता था संगीत। उन्होंने अपना Band Sufistication शुरू किया और फिर रुख़ किया वादी-ए-कश्मीर की जानिब।
कश्मीर से रूहानी रिश्ता
कश्मीर उनके लिए सिर्फ़ एक जगह नहीं, एक एहसास और एक पहचान है। जब उन्होंने “Aabha Hanjura and the Sounds of Kashmir” नाम से अपनी पहली एल्बम बनाई, तो मक़सद था कश्मीर की कहानी दुनिया तक पहुंचाना। उसमें शामिल गाना “Hukus Bukus” एक तहलका बन गया एक औरत जो कश्मीरी में गा रही थी, वो भी ऐसे वक़्त में जब बहुत कम लोग ऐसा कर रहे थे।
आभा कहती हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें कश्मीर की तहज़ीब से कभी जुदा नहीं होने दिया। वो भले ही जम्मू में पली-बढ़ीं, मगर दिल हमेशा वादी से जुड़ा रहा।
स्टेज से इश्क़ और बर्फ़ में सुरों की परवाज़
जनवरी की एक सर्द रात थी जब पहलगाम बर्फ़ से ढका था और पारा -7 डिग्री पर था। आभा की तबीयत ठीक नहीं थी, मगर फिर भी उन्होंने स्टेज पर जाकर परफॉर्म किया। वो कहती हैं, “स्टेज मेरा पहला इश्क़ है।”
गुलमर्ग, श्रीनगर का SKICC हो या सिंगापुर और थाईलैंड के मंच हर जगह उन्होंने अपनी आवाज़ से दिल जीता। उनका मानना है कि अगर कोई उनके शो में आया है, तो वो उस एक घंटे के लिए अपनी तकलीफ़ें भूल जाए।
Hukus Bukus से Dilbaro तक: फोक और फ़्यूज़न का संगम
“हुकुस बुकुस” की कामयाबी के बाद उन्होंने “दिलबरो” पेश किया। जिसमें लोक की रूह है और पॉप का रंगीन लिबास। उन्होंने वीडियो में कश्मीर को एक कहानी की तरह पेश किया, जहां हर फ्रेम एक एहसास बन जाए। वो मानती हैं कि किसी भी गाने की कामयाबी का अंदाज़ा पहले से नहीं लगाया जा सकता। हर गाना एक दुआ है कब क़बूल हो जाए, पता नहीं।
‘Mere Makan’ मेरे मकान उनका सबसे ज़्यादा निजी गीत है एक शरणार्थी के जज़्बातों की दास्तान, मगर ये सिर्फ़ उनकी कहानी नहीं, उन सबकी है जो जंग, सियासत या कुदरती आफ़ात के चलते अपने घरों से उजड़ गए। यह गाना सिर्फ़ 7 मिनट का नहीं, बल्कि सैकड़ों कहानियों की आवाज़ है। उनका शो “Songs of Home” घर के फ़लसफ़े पर आधारित है क्या घर एक जगह है, एक रिश्ता है या एक एहसास? “मेरे मकान” उसी सफ़र का अंजाम है।
रबाब: वो साज़, जो आभा की आवाज़ में बसता है
अगर आभा कोई साज़ होतीं, तो रबाब होतीं। यही वो साज़ है जिसकी ख़ामोशी भी बोलती है और जिसकी नर्मी उनकी आवाज़ का हिस्सा बन चुकी है। “दिलबरो”, “मेरे मकान” या “हुकुस बुकुस” हर धुन में रबाब की रूह मौजूद रहती है।
आज़ाद फ़नकार की मुश्किल राह
आज भी आभा किसी बड़े म्यूज़िक लेबल से नहीं जुड़ी हैं। उन्होंने अपने हर गाने को खुद लिखा, गाया, रिकॉर्ड किया और दुनिया तक पहुंचाया। सोशल मीडिया के इस दौर में डिस्कवरी सबसे बड़ी चुनौती है। वो कहती हैं, “अगर आप किसी चीज़ को बिना वाहवाही के भी कर सकते हैं, तो समझिए आप सच्चे फ़नकार हैं।”
नौजवानों के लिए आभा का पैग़ाम
आभा का मानना है कि दुनिया आपको समझे या नहीं, मगर आपको ख़ुद को समझना ज़रूरी है। “दुनिया सराहे या नहीं ख़ुद को सराहो। मन हो या न हो गाओ। तारीफ़ की उम्मीद मत रखो बस सच्चाई से निभाओ। क्यूंकि जब आप अपनी आवाज़ के लिए जीते हैं, तभी असल में ज़िंदा होते हैं।”
आभा हंजूरा सिर्फ़ एक गायिका नहीं हैं वो एक मिसाल हैं। वो कश्मीर की रूह को सुरों में ढालकर पूरी दुनिया तक पहुंचाती हैं। उनका संगीत सिर्फ़ कानों से नहीं, दिल से सुना जाता है। यही उनकी सबसे बड़ी कामयाबी है।
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