केसर (Saffron) दुनिया का सबसे महंगा मसाला है, जिसकी खेती अफ़गानिस्तान, चीन, पुर्तगाल और ईरान आदि देशों में की जाती है। भारत भी इसका प्रमुख उत्पादक देश है। यहां का कश्मीरी केसर (Kashmiri Saffron) पूरी दुनिया में मशहूर है। इसका इस्तेमाल मिठाइयों से लेकर खानपान के दूसरे व्यंजनों में भी किया जाता है। केसर के खेत कश्मीरी घाटी के पंपोर की पहचान है।
अक्टूबर और नवंबर के महीनों में खिलते फूल किसानों के चेहरों पर मुस्कान लेकर आए है। किसान इस साल इसे बंपर फसल बता रहे है क्योंकि एक दशक के बाद इस साल केसर की पैदावार अच्छी हुई हैं। वे इसे पिछले दस वर्षों के उत्पादन रिकॉर्ड को पार करते हुए बंपर फसल के रूप में देख रहे हैं। घाटी में केसर के खेत एक विशाल बैंगनी कैनवास में बदल गए है।
अच्छी फसल होने का कारण
खेती करने वाले किसान और उनका परिवार दक्षिण कश्मीर के पंपोर के गांव चंद्रहारा में कुछ दिनों से बैंगनी फूलों को तोड़ रहे हैं। इस काम को करने के लिए क्या युवा, क्या बुजुर्ग सभी एक साथ नजर आते है। किसान आकिब बशीर (Aaqib Bashir) ने DNN24 को बताया कि इस साल केसर की पैदावार (Saffron Production) अच्छी हुई है। वह वजह बताते है कि अगस्त के बाद एक बार इस खेती के लिए बारिश होना जरूरी होता है और इस साल अक्टूबर के महीने में बारिश हुई। फूलों के खिलने का महीना नवंबर का पहला हफ्ता होता है और इस बार भी वैसा ही हुआ अगर सूरज की रौशन सूरज की रोशनी (Sunlight ‘धूप’) रहती भी है तो तापमान 18 डिग्री सेल्सियस रहा इसलिए प्रोडक्शन में बेहतर इजाफा हुआ है।
किसान भट्ट अफताब बताते है कि इस साल फसल अच्छी हुई है। हम अपने पापा और मां को खेत पर नहीं बुलाते है हम खुद केसर के फूलों को तोड़ने आते है और हमें बहुत खुशी होती है। अफताब की निजी कंपनी भी है जिसका नाम है नूर केसर कंपनी।
केसर की खेती में चुनौतियां
जम्मू-कश्मीर के पांच जिलों के 562 गांवों में केसर उगता है, लेकिन दुनिया का सबसे बेहतरीन केसर पंपोर में ही उगाया जाता है। इस इलाके को इस साल कुदरत ने अपने हसीन तोहफे से नवाजा है पर शहर का बैंगनी रंग हर साल जामुनी नहीं रहता है। इसमे कुछ चुनौतियां भी आती है। आकिब बशीर बताते है कि “इसकी सबसे बड़ी दिक्कत क्लाइमेट चेंज है। फूलों के खिलने का समय नवंबर महीने का पहला हफ्ता हुआ करता था, लेकिन पिछले कुछ समय से अब अक्टूबर के आखिर में हो रहा है। इसकी खेती में जरूरी है कि फूलों के खिलने के समय सूरज की रौशनी होनी चाहिए लेकिन सूरज की रौशनी के बावजूद तापमान 18 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। लेकिन अक्टूबर के आखिर में सूरज की रौशनी होने पर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है जिसकी वजह से ब्लूमिंग पर असर पड़ता है। नवंबर महीने के दूसरे हफ्ते में हो जाए और तब सूरज की रौशनी भी रहे और तापमान 18 डिग्री सेल्सियस रहे तब भी इसके प्रोडक्शन पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
आकिब बशीर कहते है कि “केसर के हमारे 80 कनाल है और 20 कनाल में खेती हुई है यहां पर ऐसे बहुत सारे खेत है जो खाली पड़े है।” किसानों को उम्मीद है कि आने वाले समय में इसकी खेती को प्रोत्साहन मिले तो जो खेत कभी जामुनी रंग से लहराया करते थे एक बार फूलों से सदाबहार होंगे। बता दें कि कश्मीरी केसर को लाल सोना कहा जाता है। बाजार में 1 किलोग्राम केसर कीमत 3 से 5 लाख रूपये है में बिकता है। कश्मीरी केसर दुनिया का एकमात्र GI टैग वाला केसर है , साल 2020 में इसे को GI टैग मिला। बता दें कि अमेरिका, यूरोप और कनाडा में इसकी की डिमाण्ड बड़ गई है
नकली केसर की पहचान कैसे करे
भारत में केसर लाखों रुपये में बिकता है बावजूद इसके कई बार मोटी रकम चुकाने के बाद भी लोग असली केसर पहचानने में धोखा खा जाते हैं। पंपोर के किसान बताते है कि यह स्वाद में थोड़ा कड़वा होता है और पीला रंग देता है दिखने में यह लाल रंग का होता है लेकिन बाद में इसका रंग पीला हो जाता है, जो केसर गल जाता है वह नकली होता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केसर को पानी के गिलास में डालकर देखना होता है। अगर यह असली होता है तो आहिस्ता-आहिस्ता रंग देना शुरू करता है और जो नकली होगा वो एकदम रंग देना शुरू करेगा। इसके अलावा ईरानी केसर भी कश्मीरी केसर के इंटरनेशनल बाजार में दिक्कते खड़ी करता है। क्योंकि इसे कश्मीर का बता कर बेचा जाता है। किसानों का कहना है कि जाफरान ईरान से भी आता है जिससे कश्मीरी जाफरान (JK Kashmiri Saffron) की डिमाण्ड कम हो गई है। ईरानी जाफरान लाते है और कश्मीरी जाफरान के नाम पर बेचा जाता है लेकिन असल में वो कश्मीरी नहीं होता है। कई लोग ऐसे भी है जिन्हें जाफरान के बारे में पता नहीं है। कश्मीरी केसर को जीआई टैग मिलने से ईरानी केसर को भारतीय केसर के रूप में बेचने से रोकने में काफी हद तक सफलता मिली है।
जानकार बताते हैं कि दिल्ली के खारी बावली में बिकने वाला ईरानी केसर ही इन दिनों कश्मीरी केसर/जाफरान (Kashmiri Zafran) से आधे दामों पर बिक रहा है। यहां फर्क सिर्फ रेट का नहीं, गुणवत्ता (Quality) का भी है। एक्सपर्ट बताते हैं कि दोनों की क्वालिटी में काफी अंतर होता है। और दोनों को उगाने का तरीका भी एकदम अलग है। साथ ही खेती के क्षेत्रफल में भी काफी अंतर है, जिसका सीधा असर इसके दामों पर दिखाई दे रहा है।
साल 2020 में जम्मू-कश्मीर के कृषि विभाग ने इंडिया इंटरनेशनल कश्मीर सैफ्रॉन ट्रेडिंग सेटर (India International Kashmir Saffron Trading Centre “IIKSTC”) की शुरुआत की गई। इसका उद्देश्य किसानों को प्रोत्साहित करना और उन्हें बेहतर क़ीमत दिलाना था। सरकार इस क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए कई कदम उठा रही है। घाटी में दुनिया के सबसे महंगे मसाले के प्रोडक्शन को पुनर्स्थापित (Restore) करने के लिए 2010 में नेशनल सेफरॉन मिशन (National Saffron Mission) की शुरूआत की गई। जिससे कश्मीर और किसानों की स्थिति में काफी सुधार देखने को मिला है लेकिन अब भी कश्मीर में केसर के उत्पादन (Production) और बाजार (Market) को बढ़ाने के लिए कई काम किए जाने बाकी हैं।
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