05-Oct-2024
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जानिए कैसे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता वहीदा रहमान ने पारंपरिक असमिया आभूषण को फिर से संजोया है

करीब 3 दशक पहले जब पारंपरिक असमिया आभूषण विलुप्त होने की कगार पर थे तब वहीदा रहमान ने असम के खत्म होते आभूषण डिज़ाइनों की खोज शुरू की.

हर क्षेत्र अपनी एक ख़ास पहचान रखता है। चाहे वो परंपरागत कपड़े हो, खानपान हो, रहन-सहन हो या फिर आभूषण। लेकिन समय के साथ-साथ इन सभी परंपरागत चीजों को लोग भूलते जा रहे हैं। इनमें से एक है पारंपरिक असमिया आभूषण। 

पारंपरिक असमिया आभूषण असमिया संस्कृति का गौरव हैं। लेकिन धीरे-धीरे इनकी लोकप्रियता कम हो गई। करीब तीन दशक पहले जब असमिया आभूषण विलुप्त होने की कगार पर थे तब राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता वहीदा रहमान ने असम के खोए हुए और खत्म होते आभूषण डिज़ाइनों की खोज में एक सफर तय किया। 

वहीदा रहमान ने पूरे असम की यात्रा की। सत्रों, पांडुलिपियों, ताई-फेक संग्रहालय से डिज़ाइन इकट्ठा किए तब उन्हें पता बाज़ार में सिर्फ़ 12 डिज़ाइन ही प्रचलित हैं. बाकी विलुप्त हो गए है। बाद में वो उन सभी पुराने पारंपरिक आभूषणों को एक बार फिर से बाज़ार में ले आई। अच्छी गुणवत्ता के लिए वहीदा ने जो तकनीक अपनाई वो नई और अलग थी लेकिन डिज़ाइन बरकरार रहे।

वहीदा ने न केवल पारंपरिक असमिया आभूषणों को पुनर्जीवित किया, बल्कि 500 से ज़्यादा नए डिज़ाइन भी बनाए। उनके कुछ मूल डिज़ाइनों में नांगोल, जकोई, खलोई, विभिन्न जनजातियों के रूपांकनों से बने डिज़ाइन, चाय की पत्तियों की कलियां, सोहरा (चेरापूंजी) में धुंध, कोपो फुल और कई अन्य शामिल हैं। वहीदा अब ‘वहीदा लाइफ़स्टाइल स्टूडियो’ नाम से एक बुटीक चलाती हैं।

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