- ना दौलत से, ना शोहरत से,
- ना बंगला-गाड़ी रखने से,
- मिलता है सुकून दिल को,
- किसी की मदद करने से
बिहार के पूर्णिया में एक ऐसी ही टीम लोगों के लिए मसीहा बन कर उभरी है। जिन्होंने सड़क पर रहने को मजबूर लोगों के खाने की समस्या को न सिर्फ़ पहचाना बल्कि उसका समाधान भी निकाला। पूर्णिया के नौजवानों की एक टीम जो ज़रूरतमंदों के लिए एक कम्युनिटी किचन (Community Kitchen) चला रही हैं। इस किचन की ख़ास बात ये है कि ये घर या ऑफिस से नहीं चलता है बल्कि, ये चलता है सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप ग्रुप से। इस ग्रुप से करीब 800 लोग जुड़े हुए है। जो बस-ऑटो स्टैंड, रेलवे स्टेशन और ऐसी ही कई दूसरी जगह पर रोज़ाना 100 लोगों को खाना बांटते हैं।
क्या है कम्युनिटी किचन टीम मेंबर का कहना
इस ग्रुप में 40 युवा है। ये ग्रुप सूरज के ढलने के साथ ही खाना बनाने की तैयारी शुरू कर देते है। हर दिन खाने का मेन्यू अलग होता है। खाने को अलग डिब्बों में पैक करके ये टीम बाइक पर सवार होकर निकल पड़ती है।
टीम मेंबर आदित्य बताते है कि “हम उन लोगों की मदद करते है जो मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग है, जिनके पास रहने की जगह नहीं है, जिनका अपना कोई नहीं है। वो लोग जो सड़क के किनारे चलते है और डस्टबीन से खाना उठा कर खा रहे है। उन लोगों को हम खाना उपलब्ध करा रहे है।”
टीम पूर्णिया की सोच का असर है कि अब चारों तरफ़ उनके काम की सराहना की जा रही है। युवा शिक्षक रुपेश चौधरी बताते हैं कि मौसम चाहे जो भी हो टीम पूर्णिया के लोग ज़रूरतमंदों को खाना देने ज़रूर आते हैं। रूपेश चौधरी पेशे से एक शिक्षक है वह कहते है कि कम्यूनिटी किचन यहां के युवाओं द्वारा चलाया जा रहा है और सभी लोगों इसके बारे में पता है। मैं यह कहना चाहता हूं कि यह बेहतरीन से बेहतरीन कार्यों में से एक है इन लोगों ने एक ऐसी मुहिम की शुरूआत की है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। कम्यूनिटी किचन के यह युवा हर दिन खाना बांटने आते है। इन युवाओं के लिए पर्व त्योहार कुछ मायने नहीं रखता है इनके लिए मायने रखता कि कोई भी भूखा नहीं सोए।
रविश पौद्दार कहते है कि कम्यूनिटी किचन इस पहल में कई लोग सहयोग कर रहे है कभी समाजसेवी संस्था के लोग सहयोग कर रहे है जिसमे मुख्य रूप से योगी प्रीतम जी, शशी, पीयूष। रूपेश चौधरी, निहाल अख्तर जैसे कई लोग है जो इन काम में मदद कर रहे है। यह लोग दिन में अपना काम करते है और रात में कम्यूनिटी किचन पूर्णिया को सहयोग करते है।
व्हाट्सएप ग्रुप से चलाया जा रहा कम्यूनिटी किचन
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के व्हाट्सएप पर इस ग्रुप को चलाया जा रहा है, व्हाट्सएप ग्रुप में 800 लोग जुड़े हुए है ये 800 लोग वो है जो महीने में एक दिन कम्यूनिटी किचन को सहयोग कर रहे है। करीब एक दिन का खर्च तीन हजार रूपये आता है। अब हमने यह तय किया है कि साल के 365 दिन होते है हर दिन हम हर इंसान से एक दिन का भोजन लेंगे। ऐसे कम्यूनिटी किचन साल भर चलता रहेगा।
- कहते हैं कि, खुदा भी अपने रहमतों को उन पर बरसाता है,
- जो मदद करने के लिए अपने हाथ को आगे बढ़ाता है…
निहाल अख़्तर कहते है कि लोग इस खाने का बेसब्री के साथ इंतज़ार करते हैं, जब हम खाना देने जाते है तो कभी कभी देर हो जाती है पहुंचने में, जिनकों हम खाना देते है तो वो लोग हमसे पूछते है कि बाबू देर कैसे हो गई। वो लोग हमेशा हमारा इंतजार करते है।
कम्युनिटी किचन की टीम ने DNN24 से बात करते हुए बताया कि इन्हें काम करते हुए 100 दिन से ज़्यादा हो गये हैं। 100 दिन पूरे होने पर एक कम्युनिटी किचन के नाम से केक भी काटा गया। इन्हें खाना बांटकर इतनी खुशी होती है कि उसे अल्फ़ाज़ में बयां नहीं कर सकते। युवाओं की इस टोली का ये प्रयास यकीनन सराहनीय है और लोगों का इन्हें सहयोग और प्यार दोनों मिल रहा है।
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