21-May-2025
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रससुंदरी देवी: महिला शिक्षा की अलख जगाने वाली बंगाल की पहली लेखिका

रससुंदरी देवी ने अपनी आत्मकथा "अमर जीवन" में अपने संघर्षों के बारे में बताया है

19वीं सदी का बंगाल, जहां महिलाओं को शिक्षा और लेखन का अधिकार नहीं था, उस समाज में एक महिला ने शिक्षा की ऐसी मशाल जलाई कि आने वाली पीढ़ियां उससे रोशन हुई। वह महिला थी रससुंदरी देवी, जो आत्मकथा लिखने वाली पहली बंगाली महिला मानी जाती हैं।

रससुंदरी देवी ने अपनी आत्मकथा “अमर जीवन” में अपने संघर्षों के बारे में बताया है। साथ ही “अमर जीवन” 19वीं सदी के बंगाल में महिलाओं की स्थिति को समझने का महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। यदि किसी लड़की के पास कागज़ या कलम होती, तो उसे सज़ा भी मिल सकती थी। शिक्षा की चाह में रससुंदरी ने अपने पति की धार्मिक पुस्तक से एक पन्ना फाड़ा और अपने बेटे से लिखने की सामग्री चुपचाप ले ली।

पितृसत्ता की बेड़ियों को तोड़ने वाली रससुंदरी देवी

रसोई में छिपकर, वह उस पन्ने पर लिखे शब्दों को किताबों से मिलाकर पढ़ने की कोशिश करती थी। यह सब इतने गुप्त तरीके से किया जाता था कि घर की कोई महिला या बच्चा उन्हें पढ़ते हुए न देख सके। रससुंदरी का यह संघर्ष उस समय की कई महिलाओं की कहानी थी, जिन्हें शिक्षा और आत्मनिर्भरता से दूर रखा जाता था। 1868 में “अमर जीवन” का पहला भाग प्रकाशित हुआ और दूसरा भाग 1906 में प्रकाशित हुआ । उनकी आत्मकथा उस दौर की सामाजिक संरचना पर चोट करती है, जहां महिलाओं की दुनिया रसोई तक सीमित थी और उनके लिए शिक्षा और स्वतंत्रता की कोई जगह नहीं थी।

रससुंदरी देवी का जीवन संघर्ष और आत्मनिर्भरता की मिसाल है। उनकी मेहनत और साहस ने महिलाओं के लिए शिक्षा का मार्ग खोला। आज महिलाएं जो शिक्षा और स्वतंत्रता से रूबरू हैं, वह उनकी और उन जैसी दूसरी संघर्षशील महिलाओं की देन है, जिन्होंने पितृसत्ता और परंपराओं की बेड़ियों को तोड़ा।

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