06-Jul-2025
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सुहैल: पुलवामा का वो ख़ामोश कलाकार जिसकी कला ने दुनिया में बजाई भारत की धूम

‘ख़ामोशी भी कभी-कभी इतना कुछ कह जाती है कि अल्फ़ाज़ भी शरमा जाएं…’

ये लाइन्स पुलवामा, साउथ कश्मीर के एक ख़ास कलाकार सुहैल मोहम्मद खान (Suhail Mohammad Khan) पर सटीक बैठती हैं। जो न सुन सकते हैं, न बोल सकते हैं, लेकिन उनकी कला की आवाज़ दुनिया भर में गूंज रही है (The silent artist from Pulwama whose art speaks)। पेंटिंग, स्केचिंग और बर्फ़ की मूर्तियों के ज़रिए सुहैल ने साबित किया है कि प्रतिभा किसी भी शारीरिक सीमा से ऊपर होती है।

कौन हैं सुहैल?

सुहैल मोहम्मद ख़ान कश्मीर यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट ऑफ़ म्यूज़िक एंड फाइन आर्ट्स (Institute of Music and Fine Arts, University of Kashmir)के स्टूडेंट हैं। पैदाइश से ही ना बोल सकते हैं और ना ही सुन सकते हैं। इसके बावजूद, उन्होंने कला को अपनी भाषा बनाया। उनके हाथों में ब्रश, पेंसिल या बर्फ़ का टुकड़ा जब भी उठता है, वो एक नई कहानी गढ़ देता है।

बर्फ़ से बनाया इतिहास: अमेरिका में जीता तीसरा स्थान

जनवरी 2025 में अमेरिका के कोलोराडो में आयोजित ‘इंटरनेशनल स्नो स्कल्पचर कॉम्पिटिशन’ में सुहैल ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी टीम ने ‘माइंड इन मेडिटेशन’ नामक एक अद्भुत बर्फ़ की मूर्ति बनाई, जिसने जजों को हैरान कर दिया। इस कृति के लिए उन्हें तीसरा स्थान मिला और भारत का नाम रोशन किया।

 कैसे शुरू हुआ सुहैल का सफ़र? बर्फ़ से खेलते बचपन से लेकर इंटरनेशनल स्टेज तक

सुहैल का जन्म पुलवामा के एक साधारण परिवार में हुआ। बचपन से ही उन्हें बर्फ़ से खेलना पसंद था। वो बर्फ़ के गोले बनाते और उन्हें धीरे-धीरे आकृतियों में ढालते। शुरुआत में उनके मॉडल्स टूट जाते थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उनकी कला निखरती गई और एक दिन वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गए।

मोमिन मुर्तज़ा: वो दोस्त जो सुहैल की ख़ामोशी को समझता है

सुहैल की इस यात्रा में उनके दोस्त मोमिन मुर्तज़ा का बहुत बड़ा योगदान है। मोमिन साइन लैंग्वेज के ज़रिए सुहैल की इमोशन्स को समझते हैं और दुनिया के सामने उनकी कहानी पेश करते हैं।

‘पहले मुझे भी बहुत मुश्किलें आईं, लेकिन वक़्त के साथ मैंने सीख लिया कि कैसे सुहैल की ख़ामोशी को आवाज़ देनी है।’– मोमिन मुर्तज़ा

कला जो बोलती है: सुहैल की पेंटिंग्स और स्कल्प्चर्स

सुहैल की कला सिर्फ़ बर्फ़ तक महदूद नहीं है। उनकी पेंटिंग्स और स्केचेज़ में कश्मीर की सुंदरता, संघर्ष और जीवन के रंग देखने को मिलते हैं। उनके हर काम के पीछे कोई न कोई गहरी कहानी होती है।

‘माइंड इन मेडिटेशन’ – बर्फ़ से बनी वो मूर्ति जिसने अमेरिका में धूम मचाई।

कश्मीर की वादियां- उनकी पेंटिंग्स में कश्मीर की खूबसूरती झलकती है।

मूक भावनाएं- उनके स्केचेज़ में चेहरों के भाव बिना लफ़्जों के बोलते हैं।

स्टेट लेवल से इंटरनेशनल लेवल तक का सफ़र

सुहैल ने अपनी कला की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के स्थानीय प्रदर्शनियों से की। धीरे-धीरे उनका नाम राज्य स्तर पर छा गया। फिर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में चयन हुआ और उन्होंने भारत को प्राउड फील करवाया।  

कला में लफ्ज़ों की नहीं, जुनून की ज़रूरत होती है

सुहैल मोहम्मद ख़ान ने दिखा दिया कि कला की कोई भाषा नहीं होती। वो सिर्फ़ दिल से निकलती है और दिलों तक पहुंचती है। उनकी ख़ामोशी आज हज़ारों लोगों के लिए एक मिसाल बन चुकी है।

‘सुहैल की कला साबित करती है कि अगर जुनून हो, तो ख़ामोशी भी दुनिया को बदल सकती है।’ 

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