शायरी के महान शहंशाह… जिनके शब्द बने मोहब्बत की पहचान… जिनकी शायरी ने मोहब्बत को दी नई भाषा… मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) वो मोहब्बत को जीने वाले शख्स थे। अगर ये कहा जाए कि प्यार की शुरुआत गालिब से होती है तो इसमें कुछ गलत नहीं है।
अगर आप उर्दू शायरी के शहंशाह मिर्ज़ा ग़ालिब को जानना और समझना चाहते हैं तो ग़ालिब की हवेली (Ghalib ki Haveli) ज़रूर देखें, जो अब ग़ालिब संग्रहालय (Ghalib Museum) बन चुका है। चांदनी चौक स्थित बल्लीमारान की इस हवेली में मिर्जा असदुल्लाह बेग खान गालिब ने अपने जीवन के आखिरी पल गुजारे। इस हवेली में जहां बसती हैं यादें, उनकी शायरी भी।
ग़ालिब की शायरी में प्रेम का रस, उर्दू शब्दों का तड़का उन्हें एक अलग पहचान देता है। उनके काव्यात्मक शब्द इस हवेली की संकरी गली में देखे जा सकते हैं। अगर आप भी ग़ालिब की शायरी के दीवाने हैं और उन्हें करीब से महसूस करना चाहते हैं तो दिल्ली की इस ग़ालिब की हवेली में आपको सुकून के पल ज़रूर महसूस होंगे। साहित्य और कला प्रेमी भी इस जगह को बेहद पसंद करते हैं। इस हवेली की बनावट और रख-रखाव को देखकर आप निश्चित तौर पर मिर्जा गालिब के जमाने में चले जाएंगे।