गुवाहाटी से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही पामोही क्षेत्र के घने जंगलों और डाकिनी पर्वत की गोद में बहता है एक शांत और ठंडा झरना। इस झरने की धाराओं के बीच विराजमान हैं भगवान शिव, एक अद्भुत और रहस्यमयी शिवलिंग के रूप मे जिसे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) कहते हैं।
ये जगह इतनी अनोखी है कि यहां कोई पारंपरिक मंदिर नहीं है न कोई दीवारें, न छत, न घंटियां और न ही कोई विशाल आरती का मंच। बस बहता हुआ झरना, खुले आकाश के नीचे और उसी की गोद में विराजमान हैं भोलेनाथ। आज ये हज़ारों श्रद्धालुओं और कांवड़ियों की आस्था का केंद्र बन चुका है, लेकिन कुछ दशक पहले तक ये जगह लगभग अनजान थी।
कैसे खुला इस स्थान का रहस्य
करीब दो दशक पहले तक इस शिवलिंग के बारे में बहुत कम लोग जानते थे। बस कुछ स्थानीय लोग ही कभी-कभी जल चढ़ाने या पूजा करने आ जाते थे। एक पत्रकार और उनके साथी पहली बार जब इस रहस्यमय स्थान पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि झरने के बीच एक प्राकृतिक शिवलिंग बना हुआ है। इस दृश्य को उन्होंने टेलीविज़न पर दिखाया, और देखते ही देखते लोगों की नज़रें इस पवित्र जगह की ओर मुड़ गई।

इसके बाद श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी। लोगों की आस्था और विश्वास ने इस जगह को एक पवित्र तीर्थ में बदल दिया। धीरे-धीरे असम सरकार ने भी भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) को एक टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित करना शुरू किया। आज सावन के महीने में यहां हज़ारों नहीं, लाखों की संख्या में श्रद्धालु और कांवड़िए पहुंचते हैं।
भक्तों की नज़रों में भोलेनाथ
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) आने वाले हर भक्त के लिए ये यात्रा भक्ति, थकान और अनुभव का संगम है। भक्त शीला कहती हैं, “यहां बहुत भीड़ रहती है, लेकिन इस भीड़ में भी शांति महसूस होती है। भगवान तो हर जगह हैं, पर यहां जो भक्ति का अहसास है, वो कहीं और नहीं मिलता।” भक्त कौशिक बताते हैं “हम सुबह 6 बजे से लाइन में लगे हैं। करीब 40 किलोमीटर पैदल चले हैं। पैर साथ नहीं दे रहे, लेकिन बाबा की भक्ति और शक्ति से ही इतनी ताकत मिली है।”
दीपशिखा नाम की एक श्रद्धालु कहती हैं, “मैं दूसरी बार यहां आई हूं। सुबह 5 बजे से लाइन में हूं। बस जल चढ़ाने और पूजा करने आई हूं। यहां का माहौल इतना शांत है कि मन को सुकून मिल जाता है।”
पौराणिक कथा भीमासुर का अंत
पंडितों के अनुसार, ये वही स्थान है जहां भगवान शिव ने भीमासुर नामक राक्षस का वध किया था। शिवपुराण में इसका पता चलता है, “दक्षिणी पहाड़ों में भीम नामक असुर ने ब्रह्मा से वरदान लेकर अत्याचार करना शुरू किया था। जब भक्तों ने शिव से मदद मांगी, तो उन्होंने स्वयं अवतार लेकर इस राक्षस का अंत किया। उसी के बाद यहां भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) की स्थापना हुई।” कहा जाता है कि इसी वजह से ये पर्वत “डाकिनी पर्वत” कहलाता है।

झरने का रहस्य जो कभी सूखता नहीं
डाकिनी पर्वत पर बहने वाला ये झरना खुद में एक रहस्य है। किसी को नहीं पता कि ये कहां से शुरू होता है और कहां जाकर ख़त्म होता है। इसका पानी कभी सूखता नहीं चाहे गर्मी हो या सर्दी। ये झरना न सिर्फ़ धार्मिक दृष्टि से अच्छा है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य का ख़ूबसूरत मिसाल है। भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (Bhimashankar Jyotirlinga) तक पहुंचने का रास्ता भी किसी तीर्थयात्रा से कम नहीं।
पहाड़, नाले, बांस के जंगल और हरियाली से घिरा ये रास्ता मन को सुख देता है। जो भी इस रास्ते से गुज़रता है, वो सिर्फ़ एक सफ़र नहीं करता, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव से होकर गुज़रता है। यहां न तो मंदिर की घंटियों की आवाज़ है, न ही कोई भव्य आरती, फिर भी इस जगह पर खड़े होकर हर व्यक्ति को भगवान की उपस्थिति का एहसास होता है।
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