कश्मीर में कई पेपर-मेशी कलाकार हैं,लेकिन रियाज़ अहमद ख़ान की पेपर-मेशी आर्ट में कश्मीर घाटी की ख़ूबसूरती नज़र आती है। वो सभी पेपर-मेशी कलाकारों के बीच सबसे ऊंचे स्थान पर हैं। श्रीनगर के रहने वाले रियाज़ अहमद ख़ान पेपर मेशी आर्ट से कई तरह की ख़ूबसूरत चीजों को तैयार करते हैं। वो पिछले 40 सालों से इस आर्ट से जुड़े हुए हैं। जब आप उनकी बनाई गई चीज़ों को अपने हाथों से पकड़ेंगे तो आप कश्मीर को महसूस कर पाएंगे।

रियाज़ अहमद ख़ान ने कैसे इस कला को सीखा और आज भी उसे कायम करके रखा हुआ है इसके बारे में वो बताते है कि जब वो आठवीं क्लास में थे तब उन्होंने इस कला को बनाना सीखा। पढ़ाई के साथ साथ वो पेपर मेशी कला को भी सीखते थे। आज ये कला न सिर्फ कश्मीर में फेमस है बल्कि दुनियाभर में इसकी काफी डिमांड भी है, लेकिन पेपर मेशी से कैसे तैयार की जाती हैं ये नायाब चीज़े, और इसे बनाने में किन चीज़ों का ख्याल रखना होता है DNN24 की टीम ने उनसे बात की।
कैसे तैयार की जाती पेपर मेशी से नायाब चीजें
पेपरमेशी को मूल रूप से जम्मू-कश्मीर की कला के रूप में जाना जाता है। पेपर मेशी को रीसायकल पेपर और चावल के आटे से बनाया जाता है और उससे कलाकृतियां तैयार करना पेपरमेशी आर्ट कहलाता है। रियाज़ अहमद कहते हैं कि “हम इसके डिजाइन पर काफी ध्यान देते है। एक जगह फूल जिस तरह से बनाया गया है हूबहू वैसा ही फूल दूसरी जगह पर बनाना होता है। डिजाइन एक ही आकार में होना चाहिए। हम हमेशा से कोशिश करते रहें कि पेपर मेशी में कैसे जान डाल सकते हैं।
कई अवॉर्ड से किया गया है सम्मानित
इस साल 2024 में गणतंत्र दिवस पर रियाज़ अहमद ख़ान को कला और शिल्प में उत्कृष्टता पुरस्कार (Arts And Crafts Awards) की श्रेणी में नवाज़ा गया है। बता दें कि इस अवॉर्ड से सम्मानित कलाकार को 51,000 रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाता है। रियाज़ अहमद ख़ान को इसके अलावा उन्हें 2005, 2006, 2012 और 2016 में कई अवॉर्ड से नवाज़ा जा चुका है। रियाज़ अहमद ख़ान को विदेशों से भी पेपर मेशी बनाने के प्रोजेक्ट मिलते हैं। अपने देश की आने वाली पीढ़ी को भी इस कला से रूबरू करवाने के लिए रियाज़ कश्मीर समेत भारत की दूसरे सूबों के स्टूडेंट्स को पेपर मेशी कला को सिखा रहे हैं।

उन्होंने DNN24 को बताया कि “मैं कभी खाली नहीं बैठा, मेरी हमेशा से कोशिश रही है कि इस काम को मैं कैसे बढ़ावा दे सकता हूं। हम दिल्ली, आईआईटी कानपुर, मुंबई, गुजरात के अलावा भी मैंने कई सारी यूनिवर्सिटीज में वर्कशॉप की है। फ्रांस, क्यूबा, स्वीडन गया हूं हाल ही में हांगकांग गया जहां मुझे एक प्रोजेक्ट पर काम करने का मौका मिला।’’ रियाज़ अहमद का पूरा परिवार और कुछ कारीगर उनके साथ जुड़े हुए हैं। कारीगरों को रियाज़ पहले ट्रेन करते हैं।
रियाज़ अहमद की पेपर मेशी कला में मुगल चित्रकारों की है झलक
रियाज़ अहमद ख़ान के लिए ये आर्ट सिर्फ एक रचनात्मक अभिव्यक्ति (creative expression) ही नहीं बल्कि उनके लिए सूकून का तअस्सुब भी है। उनकी बनाये गये स्कल्पचर कश्मीर की कुदरती ख़ूबसूरती को दिखाती हैं। वो मुगल चित्रकारों और इस्लामी कला परंपरा के प्रभाव में रमें हुए हैं। रियाज़ अहमद ख़ान अपने काम के ज़रिए कश्मीर की शानदार संस्कृति और इतिहास को बचाने और उसे बढ़ावा देना चाहते हैं।

वह कहते है कि वो डिज़ाइन में बदलाव करते रहते हैं, ऐसा नहीं है कि एक ही डिज़ाइन को बार बार बनाएं। 2019 – 20 में श्रीनगर से हमारे पास एक प्रोजेक्ट आया इस प्रोजेक्ट को बनाने के लिए उन्होंने तीन साल तक काम किया। हमारे काम की लोगों ने बहुत तारीफें की। इस कला को सीख कर नई जनरेशन को रोजगार मिल सकता है।
लोगों को आर्ट को प्रमोट करने के लिए खुद आगे आना होगा
रियाज़ अहमद ख़ान से जब पूछा गया कि उनको इस आर्ट को दोबारा प्रमोट करने के लिए हैंडीक्राफ्ट डिपार्टमेंट की तरफ से मदद लेनी चाहिए तो उन्होंने कहा कि ‘’जब हम डिपार्टमेंट के पास जाएंगे वो तब हमारे पास आएगा। अगर हम उनके पास नहीं जाएंगे तो उन्हें हमारा काम और काबिलियत कैसे पता चलेगी। हमें इसमें खुद से कोशिश करनी चाहिए।’’
रियाज़ अहमद अलग अलग जगह से ऑर्डर्स भी लेते है। उनका मानना है कि इस कला को बनाने वाले लोग कम है, लेकिन खरीदने वाले ज़्यादा। रियाज़ अहमद बाकी लोगों को इस आर्ट को लेकर जागरूक करते हैं और उनका मानना है कि जब तक किसी भी चीज़ को करने के लिए शौक पैदा ना हो तब तक उस काम में जुनून नहीं हो सकता है।
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