13-Aug-2025
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साहिर होशियारपुरी: एक शायर, एक फ़लसफ़ा और एक अहसास

जब भी हम उर्दू अदब के उस दौर की बात करते हैं, जिसमें तरक़्क़ी-पसंद तहरीक का असर था एक तरफ़ इश्क़-ओ-मुहब्बत की शायरी थी, तो साहिर होशियारपुरी का नाम एक अलग ही चमक के साथ उभरता है।

उर्दू शायरी की महफ़िलें हमेशा से बड़ी-बड़ी हस्तियों से गुलज़ार रही हैं। मीर, ग़ालिब, इकबाल, फ़ैज़… इन नामों के बीच कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी ख़ास पहचान बनाई, मगर उनकी शोहरत वैसी नहीं हुई जैसी होनी चाहिए थी। इन्हीं में से एक नाम है साहिर होशियारपुरी का। जब भी हम उर्दू अदब के उस दौर की बात करते हैं, जिसमें तरक़्क़ी-पसंद तहरीक का असर था और एक तरफ़ इश्क़-ओ-मुहब्बत की शायरी थी, तो साहिर का नाम एक अलग ही चमक के साथ उभरता है। वो शायर जो बहुत ज़्यादा मशहूर नहीं हुए, मगर जिनकी शायरी में एक गहरी सादगी, एक सच्चा दर्द और एक बेमिसाल फ़लसफ़ा छुपा था। उनकी शायरी सिर्फ़ अलफ़ाज़ का खेल नहीं थी, बल्कि वो एक ऐसी दिल की आवाज़ थी जो सीधे पढ़ने वालों की रूह में उतर जाती थी।

आइए, हम सब मिलकर इस अज़ीम शायर की ज़िंदगी और शायरी के सफ़र पर चलते हैं, जहां दर्द भी है, उम्मीद भी है और वो ‘अहसास’ भी जो शायरी को हमेशा के लिए ज़िंदा रखता है।

बचपन की गलियां और शायरी की पहली किरण

साहिर होशियारपुरी का असली नाम राम प्रकाश शर्मा था। उनका जन्म 5 मार्च 1913 को पंजाब के मशहूर शहर होशियारपुर में हुआ था। कहते हैं कि जगह का नाम इंसान के मिज़ाज पर असर डालता है, और साहिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। होशियारपुर की सरज़मीन, जहां उर्दू और पंजाबी की तहज़ीब आपस में घुल-मिलकर एक ख़ास रंग बनाती थी, उसी माहौल में साहिर का बचपन गुज़रा। उनके घर का माहौल इल्मी था और उन्हें बचपन से ही शेर-ओ-शायरी का शौक लग गया था। वो उस वक़्त के बड़े शायरों, जैसे मीर, ग़ालिब, दाग़ और अमीर मीनाई को पढ़ते थे और उन्हीं की तरह अपनी बात कहने का हुनर सीखने लगे थे।

साहिर के ज़हन में शायरी का पहला ख़्याल कब आया, ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन ये सच है कि उनका अंदाज़-ए-बयां बहुत कम उम्र से ही साफ़ होने लगा था। वो अपनी बात कहने के लिए मुश्किल अलफ़ाज़ का सहारा नहीं लेते थे। उनकी शायरी में एक ऐसी सादगी थी जो सुनने वाले को फौरन अपनी तरफ़ खींच लेती थी। उनके उस्ताद नवाब ज़ैनुल आबेदीन ख़ान ‘आरिफ़’ थे, जिनसे उन्होंने शायरी की बारीक़ियां सीखीं। साहिर ने उनसे ही सीखा कि शेर सिर्फ़ तुकबंदी नहीं है, बल्कि वो दिल का एक गहरा अहसास है जिसे कागज़ पर उतारना एक फ़न है।

इश्क़ का दर्द और ज़िंदगी का फ़लसफ़ा

साहिर की शायरी का सबसे अहम हिस्सा इश्क़ और जुदाई है। उनकी ग़ज़लों में इश्क़ की वो तासीर मिलती है जो सिर्फ़ दिल के टूटने से पैदा होती है। वो इश्क़ को सिर्फ़ एक मोहब्बत नहीं मानते थे, बल्कि उसे ज़िंदगी का एक बड़ा फ़लसफ़ा मानते थे। उनकी शायरी में जुदाई का वो दर्द है जो कभी कड़वा नहीं लगता, बल्कि एक मीठी कसक की तरह दिल में उतर जाता है। वो इश्क़ को एक ऐसी रौशनी मानते थे जो ज़िंदगी के अंधेरे में भी रास्ता दिखाती है।

हम को अग़्यार का गिला क्या है
ज़ख़्म खाएं हैं हम ने यारों से

साहिर होशियारपुरी

आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
दिल को सुकून मिल ही गया इज़्तिराब में

साहिर होशियारपुरी

शायरी का अनूठा अंदाज़ और हुनर

साहिर होशियारपुरी की शायरी की एक और ख़ास बात उनका गहरा फ़लसफ़ा था। वो सिर्फ़ इश्क़ पर ही नहीं लिखते थे, बल्कि ज़िंदगी, वक़्त, मौत और इंसान के वजूद पर भी लिखते थे। उनकी शायरी में एक सूफ़ियाना रंग भी था, जहां वो ख़ुद को और दुनिया को एक नई नज़र से देखते थे। उनकी ज़बान साफ़-सुथरी और बहुत ही सरल थी। वो भारी-भरकम अलफ़ाज़ का इस्तेमाल नहीं करते थे, इसलिए उनकी शायरी आम लोगों के दिलों में आसानी से जगह बना लेती थी।

हम क़रीब आ कर और दूर हुए
अपने अपने नसीब होते हैं

साहिर होशियारपुरी

तरक़्क़ी-पसंद तहरीक के दौर में जब कई शायर अपने शेरों में समाजी इंसाफ़ और इंक़लाब की बातें कर रहे थे, तो साहिर की शायरी ने एक अलग राह चुनी। उन्होंने समाजी मुद्दों पर भी लिखा, लेकिन उनका तरीक़ा अलग था। वो इश्क़ और ज़िंदगी के दर्द के ज़रिए ही समाजी और फ़लसफ़ाना बातें कहते थे। उनकी शायरी में एक नर्म बगावत थी, एक शांत इंक़लाब था।

उनके कुछ महत्वपूर्ण काव्य संग्रहों में ‘ग़ज़ल’, ‘शायद’ और ‘शब-ए-ग़ज़ल’ शामिल हैं, जिनसे उनके अदबी सफ़र की गहराई का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उर्दू अदब में उनका मक़ाम

साहिर होशियारपुरी ने अपनी ज़िंदगी का ज़्यादातर हिस्सा शायरी को ही दिया। उन्होंने कई बड़े शायरों के साथ अपनी ग़ज़लें पढ़ीं। वो अपने दौर के बड़े-बड़े शायरों से दोस्ती रखते थे, लेकिन उन्होंने कभी अपनी पहचान को खोने नहीं दिया। उनकी शायरी में एक ख़ास मौसिक़ी (संगीत) थी, एक ऐसी लय थी जो आज भी उनके पढ़ने वालों को अपनी तरफ़ खींचती है।

साहिर ने अपनी पूरी ज़िंदगी होशियारपुर में ही गुज़ारी और 1994 में उनका इंतकाल हुआ। उनकी मौत के बाद उनकी शायरी की क़द्र और भी ज़्यादा होने लगी। आज भी जब उर्दू शायरी की बात होती है, तो उनके शेर मिसाल के तौर पर पढ़े जाते हैं। वो एक ऐसे शायर थे जो सिर्फ़ अपनी मुहब्बत का इज़हार नहीं करते थे, बल्कि ज़िंदगी की हर छोटी-बड़ी बात को अपनी शायरी में पिरो देते थे।

दिल वो सहरा है कि जिस में रात दिन
फूल खिलते हैं बहार आती नहीं

साहिर होशियारपुरी

साहिर होशियारपुरी की विरासत सिर्फ़ उनकी किताबों में ही नहीं, बल्कि उन लाखों दिलों में ज़िंदा है जिन्होंने उनकी शायरी को महसूस किया है। वो हमें ये सिखा गए कि शायरी सिर्फ़ हुस्न (ख़ूबसूरती) और इश्क़ की बातें नहीं है, बल्कि वो ज़िंदगी का एक सच्चा आईना है। वो एक ऐसे शायर थे जिन्होंने सादगी में ही शायरी का सबसे बड़ा जादू छुपा दिया था। उनका नाम हमेशा उर्दू अदब की दुनिया में एक चमकते सितारे की तरह याद किया जाएगा।

हुई थी ख़्वाब में ख़ुशबू सी महसूस
तुम आए ख़्वाब की ताबीर देखी

साहिर होशियारपुरी

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