आज के वक्त में प्लास्टिक के बिना जैसे कुछ होना नामुमकिन सा होता जा रहा है। घर में दूध के पैकेट से लेकर पानी की बोतल तक प्लास्टिक की है। लेकिन इससे होने वाला प्रदूषण हमारी और आपकी ज़िंदगी और आने वाली नई पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए असम के निवासी धीरज बिकास गोगोई ने एक मुहिम शुरू की है। जिसे जानना हम सभी के लिए ज़रूरी है।

डिब्रूगढ़ के रहने वाले 38 साल के धीरज बिकास गोगोई ने अपने तीन साथियों के साथ 530 किलोमीटर की लंबी नदी यात्रा एक छोटी सी नौका से की है। डिब्रूगढ़ से गुवाहाटी तक की ये यात्रा 13 दिनों की रही। इस नौका की ख़ास बात ये है कि इसे बेकार पड़ी प्लास्टिक की बोतलों से बनाया गया। जिसे बनाने में करीब 3300 बेकार प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल उन्होंने किया है। इन बोतलों को धीरज बिकास गोगोई ने ब्रह्मपुत्र नदी से इकट्ठा किया था। नौका को बनाने में तीन महीने का वक्त लगा और कुल खर्च महज 1200 रुपए आया। जिसमें 800 रुपये की रस्सी और 400 रुपये के बैंबू थे।
क्या था बिकास की इस यात्रा का मकसद
बिकास ने DNN24 को अपने इस अनूठे अभियान के बारें बताया। उन्होंने बताया कि जब वो 2019 में टूरिज़्म सेक्टर से जुड़े तो देखा कि आईलैंड में कई जानवर थे लेकिन वहां प्लास्टिक पड़ी से उनको नुकसान हो रहा था। ये सब देखकर उन्हें काफी बुरा लगा। तभी से उन्होंने ठान लिया कि हमें नदी के लिए कुछ करना है। उनका मानना था कि नदी हमारा घर है इसे साफ करने की ज़िम्मेदारी भी हमारी है।
कम से कम एक साल में एक बार हम इसे साफ ज़रूर करेंगे। इसके बाद बिकास ने 2020 में आइलैंड की सफाई की। वहां से सारी प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठी की और ये नौका बनाई।
बिकास ने सोचा कि साफ-सफाई को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए नये तरीके अपनाने होंगे। सिर्फ बोलकर जागरूक नहीं करना है। इसके लिए उन्होंने नौका बनाई जिससे लोग नौका को देखकर समझे और प्लास्टिक का इस्तेमाल करना कम करें।
साल 2021 में 530 किलोमीटर की थी यात्रा
साल 2021 में लोगों को मैसेज देने के लिए बिकास ने 530 किलोमीटर डिब्रूगढ़ से गुवाहाटी तक यात्रा की। जिसे पूरा करने में करीब 30 दिनों का वक्त लगा। बिकास ने DNN24 को बताया कि यात्रा के दौरान रास्ते में काजीरंगा नेशनल पार्क पड़ता है। वहां खड़े गार्ड ने आगे जाने के लिए उन्हें मना कर दिया था। उनका कहना था कि बिकास के पास आगे जाने के लिए परमिशन नहीं है।
दरअसल पार्क से बीस किलोमीटर दूर ब्रह्मपुत्र नदी मिलती है। बिकास ने उनसे रिक्वेस्ट की तब उन्हें आगे जाने की इजाज़त दी गई। बिकास कहते हैं कि “हम जहां भी जाते हैं, हमें लोगों का बहुत प्यार मिलता है। नौका के बगल से हमने एक डस्टबिन बनाया जिसमें हम प्लास्टिक बोतलें इकट्ठा करते हैं। हमारा मानना हैं कि अगर हम नदी से कुछ प्लास्टिक साफ कर सकते हैं तो कही हद तक गंदगी कम कर सकते हैं।”

बिकास कहते हैं कि हमारे असम में कहावत है कि बारिश के बूंद-बूंद पानी से समुद्र बन सकता है तो हम नदी से थोड़ा-थोड़ा कचरा उठाकर उसे साफ किया जा सकता हैं। ‘हम लोगों से अपील कर सकते हैं इसे साफ रखने के लिए हमारा साथ दें।’
एक साधारण नौका बनाने में करीब 50 से 60 हज़ार रुपये का आता है खर्च
बिकास का मानना है कि नदी के किनारे जो लोग रह रहें है। उनसे वो कहते हैं कि एक बोट बनाने में करीब 50 से 60 हज़ार रुपये का खर्च आता है। गांव के लोग जो रोज काम करके दिहाड़ी कमाते हैं, उनके लिए नौका बनाना आसान नहीं है। “हम उन लोगों को बताने की कोशिश कर रहें है कि बाढ़ वाले इलाकों में अगर आप प्लास्टिक से बनी नौका इस्तेमाल करेंगे तो आपको कुछ राहत मिल सकती है।
बिकास अब तक 70 से 80 लोगों को प्लास्टिक की बोट बनाना सीखा चुके हैं। वो लोगों से कहना चाहते हैं कि अगर हम लोग एकजुट होकर अगर नदी को साफ करें तो शायद आज वो साफ ना हो लेकिन अगर दस साल भी लगे तो तब भी प्लास्टिक खत्म किया जा सकता है। वो अपील करना चाहते हैं कि प्लास्टिक से बना जो भी समान हम इस्तेमाल करते हैं उसे इस्तेमाल करने के बाद नदी में ना फेंके।
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