हर देश मे आज भी ऐसे बहुत से लोग मौजूद है जो दो वक़्त की रोटी के लिए तरसते है. भूख क्या होती है ये वही आदमी बता सकता है जिसे दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं होती हैं. भूख मिटाने के लिए आदमी क्या-क्या जतन करता है यह किसी से छुपा नहीं हैं. इसी जद्दोजहद में एक बेबस और लाचार आदमी को अगर दो रोटी का सहारा मिल जाए तो शायद भूख से उस इंसान की जान नहीं जाएगी.
आज हम आपको एक ऐसी ही संगठन की कहानी बताने जा रहे है जिन्होंने न जाने कितने लोगों की भूख मिटा कर उन्हे 2 वक़्त का पेटभर खाना मूहिया करवाया हैं. आज के समय मे जब महंगाई आसमान छू रही हो 10 रुपए मे एक रोटी की उम्मीद करना भी मुश्किल है तो आपको यह सुन कर बहुत अचंभा हो सकता है कि कोई संगठन मात्र 10 रूपये मे भरपेट खाना जन-जन तक पहुचा रहा हैं.
सब की रसोई का मकसद
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर मे स्थित है यह संगठन जिसका नाम है “सब की रसोई”. यह रसोई प्रतिदिन लगभग 150 से लेकर 300 लोगों को सिर्फ 10 में भरपेट खाना देती हैं. इस 10 रुपए की प्लेट मे दाल, चावल, रोटी, सब्जी और मिठाई होती हैं. रसोईया चलाने वाले ‘सुंदर सिंह अनेजा’ जी बताते हैं कि गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और सिख गुरु परंपरा में पहले गुरु थे, गुरु नानक कहते हैं कि भूखे को खाना और प्यासे को पानी जरूर देना चाहिए. भूखे को भरपेट खाना खिला कर संगठन के लोग काफी खुश और संतुष्ट होते हैं. इस रसोई से सभी समुदाय के लोग एक साथ खाना खाते है, जिससे समाज मे मोहब्बत और सेवा का संदेश जाता हैं.
सुंदर सिंह ने 5 साल पहले बारादरी थाना क्षेत्र के मॉडल टाउन के पास ‘सबकी रसोईया’ के नाम से यह रसोई खोली थी. जी हा, सही सोचा आपने, जैसा नाम-वैसा काम. ये रसोई सचमुच मे सभी के लिए हैं. इस रसोई का एकमात्र मकसद सेवा करना हैं. यहा आए लोग सिर्फ 10 रुपए मे अपना पेट भर सकते है. यही नहीं, अगर किसी के पास 10 रुपए भी न हो तो उन्हे फ्री मे खाना दिया जाता हैं. इस रसोई को चलाने के लिए उन्होंने एक ग्रुप बनाया, जिससे लोग जुड़ कर पैसा देते है. वो और उनके साथी इस पैसे को इकट्ठा कर के रसोई मे लगाते हैं.
संगठन के प्रेरणा का स्रोत
संगठन के सदस्यों को यह प्रेरणा कैसे मिली यह भी बड़ी दिलचस्प कहानी हैं. महंगे कपड़े और आलीशान जिंदगी होने के बावजूद इस संगठन के लोगों ने जिंदगी की असल खुशी तलाश करने के लिए इस रसोई की शुरुआत की. सब की रसोई के चलाने वाली ‘रीता भाटिया’ DNN24 से बात करते हुए कहती है कि पंजाबी महासभा ने अपने गुरु से प्रेरणा ली की अपने से नीचे के लोगों की मदद करनी चाहिए. वह बताती है कि उन्होंने एक ग्रुप बनाया है और उस ग्रुप का सिर्फ एक सन्देश है कि फिज़ूल पैसा खर्च करने के बजाय, उन पैसों को इकट्ठा कर सेवा करनी हैं. उनके ग्रुप से लगातार लोग जुड़ रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मदद देने वालों की कोई कमी नहीं है, बल्कि लेने वालों की कमी हो गई हैं.
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