फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम उर्दू शायरी में उस बुलंदी पर है जहां उनकी तुलना ग़ालिब और इक़बाल जैसे महान शायरों से होती है। उनकी शायरी ने न सिर्फ़ उनकी ज़िंदगी में बल्कि उनके बाद भी सरहदों, ज़बानों, और नज़रियात की सीमाओं से परे पहचान बनाई। फ़ैज़ की शायरी ने जदीद उर्दू अदब को एक आयाम दिया। उनकी आवाज़ इंक़लाबी नग़मों, हुस्न-ओ-इश्क़ के दिलकश तरानों को गीतों में पिरोकर इंसानियत की गहरी एहसासात को बयान करती है।
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे
शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने
फ़ैज़ की शायरी की सबसे बड़ी ख़ूबी है कि, उनके ख़्वाब और हक़ीक़त, उम्मीद और नामुरादी की कशमकश ने कलाम को गहराई और एक अनूठी तासीर बख़्शी। उनका इश्क़ इंसानियत से मोहब्बत में ढलता है और एक बेहतर दुनिया का ख़्वाब पेश करता है। उनके लफ़्ज़ इतने दिलकश और गहरे हैं कि उन्होंने शायरी का एक नया अंदाज़ तसव्वुर किया।
एक इक कर के हुए जाते हैं तारे रौशन
मेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं

ज़िंदगी का सफ़र और अदबी मुक़ाम
फ़ैज़ की पैदाइश 13 फरवरी 1911 को पंजाब के नारोवाल ज़िले की एक बस्ती काला क़ादिर (अब फ़ैज़ नगर) में हुई। उनके वालिद मुहम्मद सुलतान ख़ां एक बैरिस्टर थे। फ़ैज़ ने अपनी इब्तिदाई तालीम में अरबी-फ़ारसी और अंग्रेज़ी की पढ़ाई की। उन्होंने मास्टर्स अरबी और अंग्रेज़ी में किया। लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में उनकी मुलाक़ात अहमद शाह पतरस बुख़ारी और सूफ़ी तबस्सुम जैसे उस्तादों से हुई।1935 में फ़ैज़ ने अमृतसर के मोहमडन ओरिएंटल कॉलेज में लेक्चरर की हैसियत से तालीम देना शुरू किया। इसी दौरान उनकी संगत अदब के बड़े नामों से हुई, जैसे सज्जाद ज़हीर और रशीद जहां। 1941 में उन्होंने एलिस कैथरीन जॉर्ज से शादी की।
सियासी जद्दोजहद और जेल का सफ़र
फ़ैज़ की ज़िंदगी में सबसे मुश्किल दौर 1951 में आया जब उन्हें रावलपिंडी साज़िश केस में गिरफ़्तार किया गया। इस आरोप में उन्हें पांच साल जेल में गुज़ारने पड़े। जेल के इस तजुर्बे ने उनकी शायरी को और भी निखारा। उनकी मशहूर किताब ज़िंदां नामा इसी दौरान लिखी गई। इसके बाद भी उनका सियासी संघर्ष जारी रहा। 1962 में सोवियत यूनियन के लेनिन शांति अवार्ड से नवाज़ा गया। ये उनकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान का बड़ा सबूत था।
शायरी और विरासत
फ़ैज़ की शायरी इंसानी जज़्बात और संघर्ष का आइना है। उनकी किताबें जैसे नक़्श-ए-फ़र्यादी, दस्त-ए-सबा, और ज़िंदां नामा उर्दू अदब के लिए अनमोल विरासत हैं। उन्होंने फ़िल्मी गीत भी लिखे, जैसे जागो सवेरा।
फ़ैज़ की ज़िंदगी और शायरी इंसानी जज़्बात, इन्साफ़ और मोहब्बत की बेमिसाल मिसाल है। उनकी याद और उनके लफ़्ज़ हमेशा इंसानियत की राह को रौशन करते रहेंगे।
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं
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