मुहर्रम का महीना (Month of Muharram) शुरू हो चुका है। इस महीने के साथ ही हिजरी कैलेंडर के नये साल 1445 का भी आग़ाज़ हो गया है। ये महीना कर्बला (Karbala) का वाक़िया याद दिलाता है और मुहर्रम की दस तारीख़ को ताज़िये (Tajiya) निकाले जाते हैं। हिन्दुस्तान में ताज़िये निकालने की बहुत पुरानी रिवायत है। ताज़ियादारी किसने और कब शुरू की, इतिहासकार इस विषय पर अपनी अलग-अलग राय रखते हैं।
कई लेखक मानते है कि ताज़िये निकालने की शुरुआत मुग़ल बादशाह बाबर ने की थी। जाफ़र रज़ा लिखते हैं- “उत्तरी भारत में इमाम हुसैन की याद मनाने का क्रम प्रसिद्ध सूफ़ी संत ख़्वाजा सैयद मुहम्मद अशरफ़ जहांगीर शमनानी द्वारा शोक निकालने से प्रारम्भ होता है। उन्होंने मुहर्रम के मौक़े पर इमाम हुसैन का अलम (शोक) निकाला और उसकी छाया में बैठे।
अत: मुहर्रम के दिनों में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला में शहीदों का ग़म मनाया जाता है। इस दौरान मर्सिया पढ़ा जाता है और तबर्रुक बांटा जाता है। मुरीद अपने घरों से खाने पकवाकर लाते हैं और नियाज़ के बाद इसे बटंवाते हैं। इस दौरान शिया लोग शोक मनाते है।
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