कश्मीर को खूबसूरती के साथ आर्ट भी विरासत मिली है। कश्मीर में ख़ासतौर से हाथ से तैयार आर्ट वर्क पूरी दुनिया में बेमिसाल माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है कश्मीरी की एक नायाब कला ‘ख़तमबंद’ आर्ट। ख़तमबंद यानी लकड़ी की छत। फ़ारसी शब्द ख़तम बंद का मतलब है ‘पूरा चक्कर लगाना’। ये कश्मीर की traditional architecture की legacy है। शानदार दस्तकारी और बेइंतहा ख़ूबसूरत तस्वीरों से सजी छतें, यहां की इमारतों की ख़ूबी रही है, चाहे वो महल हों, मंदिर हो, मस्जिद हो या फिर यहां के घर। खतमबंद सजावटी छतें हैं जो लकड़ी के टुकड़ों को जियोमेट्रिक पैटर्न में एक-दूसरे से जोड़कर बनाई जाती हैं।
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कौन हैं ख़तमबंद आर्टिस्ट अली मोहम्मद गिरू
अली मोहम्मद गिरू को इस नायाब आर्ट में महारथ हासिल हैं। उनका घर में ही ख़तमबंद का कारखाना है। अली एक हुनरमंद कारीगर हैं। वो ख़तमबंद के काम को बड़े ही नायाब अंदाज़ में करते आ रहे हैं।
अली मोहम्मद DNN24 को बताया कि “ये उनका खानदानी काम है। उन्होंने दसवीं क्लास तक पढ़ाई कर रखी है। उनके घर में ही इसका कारखाना चलता था तो वो भी इस काम में लग गये। वो छह भाई है जिसमें से चार भाई ये काम कर रहे हैं। दसवीं के बाद वो इसी काम में लगे हैं।
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वो बताते हैं कि कश्मीर में सैकड़ों हुनर हैं। कश्मीर बहुत ही खूबसूरत है यहां जंगल, वादियां, झील है और बहुत बड़े बड़े हुनर है जैसे पश्मीना, कानी शॉल, पेपर मैशी, वुड कार्विंग, ख़तमबंद है। उनका मानना है कि ख़ुदा के करम से सारे काम अच्छे चल रहें हैं।
कैसे हुई ख़तमबंद आर्ट की शुरूआत
ख़तमबंद लकड़ी का काम सदियों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि छत के लिए इस ख़ास डिज़ाइन को मुगल काल में 1541 में मिर्ज़ा हैदर तुगलक कश्मीर में लेकर आए थे। इस काम में बिना किसी गोंद या कील का इस्तेमाल किये लकड़ी को ज्योमैट्रिकल शेप में सेट किया जाता है।
अली बताते हैं कि हमने ख़तमबंद को रजिस्टर्ड करवाया है। इसमें क्यू आर कोड लगा हुआ है जो ये बताता है कि इस काम को कहां बनाया जाता है और कौन बनाता है। इससे खरीददार का भरोसा बढ़ता है। वुड कार्विंग, कानी शॉल, पेपर मैशी और पश्मीना भी जीआई टैग के तहत आता है। इसके अलावा भी कई आर्ट है जिनको जीआई टैग मिला हुआ है। इस आर्ट में हर तरह की लकड़ी से काम हो सकता है लेकिन इसमे बुदहुल लकड़ी इस्तेमाल करते हैं क्योंकि ये नरम होती है।
‘ख़तमबंद’ आर्ट में किस लकड़ी का किया जाता है इस्तेमाल
अली कहते हैं “हमने अलग अलग जगह जाकर काम किया है जैसे हाउस बोर्ट, रेस्टोरेंट, मकानों में किया। अगर हम कश्मीर से बाहर जाते है तो हम देवदार लकड़ी को इस्तेमाल करते है। कश्मीर की देवदार लकड़ी बेहद ख़ास है। ये एक तरह से सोने के समान है।”
इस आर्ट में देवदार और अखरोट की लकड़ी का इस्तेमाल मुख़्तलिफ़ डिज़ाइन बनाने में होता है। हाथ से बने डिज़ाइन दिल जीत लेने वाले होते हैं। लकड़ी की छत सर्दियों में गरमाहट को बरकरार रखती है और गर्मियों में ठंडक देती है।
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इस लकड़ी से सैंकड़ों डिज़ाइन बनाए जाते हैं। डिज़ाइन के अलग-अलग नाम होते है। इन्हें स्केल से नाप कर तैयार किया जाता है। अगर थोड़ा भी ऊपर नीचे होता है तो अच्छी तरह से जुड़ नहीं पाता। इसलिए काफी ध्यान से बनाया जाता है। अली मोहम्मद गिरू कहते हैं कि, लकड़ी के साथ काम करना और मुश्किल पैटर्न बनाना उनका सिर्फ़ एक पेशा नहीं है बल्कि जिंदगी जीने का एक तरीका भी है।
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