मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र: उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले की सकलडीहा तहसील में खेतों में दिहाड़ी करने वाले सलाहुद्दीन और उनकी पत्नी असगरी बानो के बेटे इरफ़ान ने पिछले सप्ताह भर से देश के हर अखबार-चैनल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। खुद सलाहुद्दीन बीए पास हैं और इरफ़ान उनकी इकलौती संतान है।
इरफ़ान ने यू पी संस्कृत बोर्ड की इंटरमीडिएट परीक्षा में टॉप किया है। इस परीक्षा में कुल तेरह हज़ार सात सौ अड़तीस बच्चों ने हिस्सा लिया था। सत्रह साल का इरफान शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां हासिल कर संस्कृत अध्यापक बनने का सपना देखता है। सारे मुल्क से पत्रकार उसके घर पहुँच रहे हैं जिसे देख कर उसके माता-पिता अपने बच्चे की इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर फूले नहीं समाते।
अभी पांच बरस पहले कानपुर में रहने वाली युवा डॉ. माही तलत सिद्दीक़ी को भी ऐसी ही ख्याति हासिल हुई थी जब उन्होंने ‘रामायण’ का उर्दू में अनुवाद कर दिखाया था। हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर चुकीं माही को उनके एक परिचित ने ‘रामायण’ पढ़ने को दी। कुछ ही पन्ने पढ़ने पर माही की उसमें इतनी दिलचस्पी पैदा हो गयी की उन्होंने उसे उर्दू में अनूदित करने का मन बना लिया।
![डॉ. माही तलत सिद्दीक़ी](https://dnn24.com/wp-content/uploads/2023/05/Untitled-design-2-1024x683.jpg)
एक अखबार को दिए इंटरव्यू में माही तलत सिद्दीक़ी ने कहा, “दुनिया के तमाम मजहबों के धार्मिक ग्रंथों की तरह ‘रामायण’ में भी शान्ति और भाईचारे का सन्देश मिलता है। इस महाकाव्य की भाषा और शैली बेहद खूबसूरत है। इसे पढ़ने और फिर उर्दू में इसका अनुवाद करने के बाद मुझे बेहद सुकून का अहसास हुआ।”
तीन बरस पहले यानी 2020 में अलवर में किराने की दुकान चलाने वाले प्रदीप यादव के बेटे शुभम ने सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ कश्मीर में इस्लामिक स्टडीज़ में मास्टर्स कोर्स के लिए हुई प्रवेश परीक्षा दी और टॉप कर दिखाया। इस कोर्स के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी गैर-कश्मीरी और गैर-मुस्लिम ने प्रवेश परीक्षा टॉप की हो।
![मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र](https://dnn24.com/wp-content/uploads/2023/05/Untitled-design-3-1024x683.jpg)
दिल्ली यूनीवर्सिटी से दर्शनशास्त्र के ग्रेजुएट 21 साल के शुभम का कहना था, “इस्लाम को एक रेडिकल धर्म की तरह दिखाया जाता रहा है और इस बारे में बहुत सी भ्रांतियां रही हैं। आज समाज में विभाजन बढ़ रहा है और यह वाकई महत्वपूर्ण है कि एक दूसरे के मजहब को समझा जाए।”
हैरत होती है कि इस समय में जब समाज से रोशनी के लगातार गायब होते जाने का सिलसिला जारी है, रोशनी को खोजना कितना आसान है। वह हमारे कितने नज़दीक के ऐसे ठिकानों पर मौजूद और महफूज़ है, चकाचौंध की वजह से जहां हमारी निगाह तक नहीं पहुँच पाती।
शुभम, माही और इरफ़ान जैसे जुगनू हमारे समाज में उस रोशनी की ठोस उपस्थिति की तसदीक करते हैं।