भारत में पारसी समुदाय की घटती संख्या को देखते हुए Parzor Foundation और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) ने मिलकर एक ऑनलाइन कोर्स की शुरुआत की है। ये कोर्स 10 महीने का है, जिसमें पारसी संस्कृति और धरोहर के बारे में पढ़ाया जाएगा। ये 20 क्रेडिट का सर्टिफिकेट प्रोग्राम है, जिसमे अलग-अलग ट्रैक से अलग-अलग पाठ्यक्रम शामिल हैं। आपको बता दें कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ (TISS) में 20 क्रेडिट का सर्टिफ़िकेट प्रोग्राम, निरंतर सतत शिक्षा कार्यक्रम (सीईपी) के तहत मिलता है। इस प्रोग्राम में कई कोर्स शामिल होते हैं। जिनमें से हर कोर्स 2 क्रेडिट का होता है।इसमें स्टूडेंट्स को दर्शनशास्त्र, इतिहास, और संस्कृति पर अनिवार्य फ़ाउंडेशन कोर्स पूरा करना होता है।
डॉ शेरनाज़ कामा दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से रिटायर्ड हैं। शेरनाज़ कामा parzor फाउंडेशन की मानद निदेशक हैं। पारसी संस्कृति के पुनरूद्धार का विचार डॉ शेरनाज़ कामा का था। ये सब 1999 में शुरू हुआ जब यूनेस्को ने शेरनाज़ कामा को पारसी जोरोस्ट्रियन संस्कृति पर एक परियोजना तैयार करने को कहा। परियोजना का उद्देश्य खत्म होती पारसी संस्कृति का दस्तावेज़ीकरण और रिकॉर्डिंग करना था। उस वक्त उन्हें नहीं पता था कि आगे चलकर एक कोर्स में तब्दील हो जाएगा। इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य पारसी इतिहास, भाषा, साहित्य और परंपराओं के बारे में सीखना है।
कोर्स के लिए नियुक्त किए गए टीचर
पारसी समुदाय ने भारत की प्रगति में काफी अहम योगदान दिया है। गुजरात में व्यापारी के रूप में शुरुआत करने वाले पारसी, बाद में मुंबई में सफल व्यवसायी बने। उन्होंने भारत के औद्योगीकरण, आधुनिक चिकित्सा और सामाजिक सुधारों में अहम भूमिका निभाई। पारसी रंगमंच भारत के सांस्कृतिक इतिहास का एक बड़ा हिस्सा था और इसने बॉलीवुड के विकास में योगदान दिया। एक छोटे समुदाय के बावजूद, पारसी अपनी परोपकारिता और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए जाने जाते हैं।
इस कोर्स को पढ़ाने के लिए अलग-अलग सब्जेक्ट के टीचर को नियुक्त किया गया हैं।
– डॉ. जेनी रोज़ पारसी पारिस्थितिकी और परंपराओं के बारे में पढ़ाती हैं।
– प्रो. अल्मुट हिंट्ज़ अवेस्तन भाषा पढ़ाते हैं।
– प्रो. कूमी वेवैना पारसी साहित्य और फिल्मों को कवर करती हैं।
– डॉ. करमन दारूवाला पारसी-गुजराती और फ़ारसी साहित्य के बारे में बात करते हैं।
– डॉ. मेहर मिस्त्री भारत के पश्चिमी तट पर पारसी बस्तियों के बारे में पढ़ाते हैं।
– प्रो. शिवराजू ने पारसी जनसांख्यिकी पर चर्चा की।
– डॉ. अभिमन्यु आचार्य पारसी थिएटर के इतिहास की खोज करते हैं।
इन विशेषज्ञों का लक्ष्य पारसी संस्कृति की प्राचीन जड़ों से लेकर उसके आधुनिक प्रभावों तक व्यापक समझ प्रदान करना है। ये पाठ्यक्रम पारज़ोर फाउंडेशन के एक बड़े प्रयास का हिस्सा है, जो पारसी संस्कृति को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए 1999 से काम कर रहा है।
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