एक ऐसी आइकॉनिक लाइब्रेरी जो नवाबों की शान-ओ-शौकत को बरकरार रखे हुए है। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले की रज़ा लाइब्रेरी न सिर्फ पूरे हिंदुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में अपने कलेक्शन को लेकर मशहूर है। दूर दराज से लोग यहां आते हैं। यहां भारतीय इस्लामी सांस्कृतिक विरासत का एक भंडार है, अलग अलग भाषाओं जैसे संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पश्तो में पुस्तकों के अलावा इस्लामी धर्म ग्रंथ कुरान ए पाक के पहले अनुवाद की पांडुलिपि भी यहां मौजूद है।
लाइब्रेरी के स्ट्रक्चर में क्या है ख़ास
शायद ही किसी लाइब्रेरी की इतनी खूबसूरत बिल्डिंग आपको कहीं देखने को मिले। पुस्तकालय भवन की अनूठी वास्तुकला तत्कालीन रामपुर रियासत की प्रकृति और राजनीति के बारे में एक लंबी कहानी कहती है। इमारत का इंटीरियर भी यूरोपीय वास्तुकला से प्रेरित है। इमारत के वास्तुकार फ्रांसीसी वास्तुकार डब्ल्यू.सी. राइट, ने हामिद अली खान के निर्देश पर संरचना का निर्माण किया था। अगर लाइब्रेरी की मीनार की बात करें तो मीनार का पहला भाग एक मस्जिद के आकार में बनाया गया है, इसके ठीक ऊपरी हिस्सा एक चर्च जैसा दिखाई देता है, मीनार का तीसरा हिस्सा एक सिख गुरूद्वारे के वास्तुशिल्प डिजाइन को दर्शाता है और सबसे ऊपरी हिस्सा एक हिंदू मंदिर के आकार में बनाया गया है, जो गंगा जमुनी तहजीब की बेहतरीन मिसाल है।
17,000 हजार से ज्यादा मौजूद है पांडुलिपियां
दशकों से, पुस्तकालय देश में दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों के सबसे बड़े संग्रहों में से एक बन गया है. लाइब्रेरी में 17,000 हजार से ज्यादा पांडुलिपियों का बड़े स्तर पर कलेक्शन है. डॉ. अबू साद इस्लामी बताते है कि “रामपुर रज़ा लाइब्रेरी अपने कलेक्शन के पूरी दुनिया में मशहूर है. कुरान ए मजीद के 500 से ज्यादा नुस्खे,7 सेंचुरी का कुरान मजिद मौजूद है जिसे हजरत अली ने लिखा, उर्दू भाषा में लिखी रामायण, मुगल पेंटिग का 500 से ज्यादा कलेक्शन और 3000 से ज्यादा कैलीग्राफी के नमूने मौजूद है।”

पुराने जमाने जो चीजे हाथ से लिखी गई उनका बहुत बड़ा कलेक्शन यहां मौजूद है। इंडो इस्लामिक आर्ट कल्चर की चीजे, मिडिवल इंडियन हिस्ट्री की ओरिजनल सोर्सिस भी यहां मौजूद है। 10 हजार ऐसी किताबे है जो 100 साल पुरानी है, इसके अलावा गालिब के दीवान का पहला एडिशन यहां मौजूद है। टेक्मोलोजी के बढ़ते स्तर को देखते हुए यहां मौजूद किताबों का डिजिटलाइजेशन हो रहा है जिससे लोग घर बैठे किताबे पढ़ सकेंगे।
अरबी, फारसी, उर्दू, हिंदी और अन्य भाषाओं में कई दुर्लभ और मूल्यवान ग्रंथ हैं। संग्रह में इतिहास, दर्शन, विज्ञान, साहित्य और धर्म सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर कार्य शामिल हैं। रज़ा पुस्तकालय में कई दुर्लभ कलाकृतियाँ भी हैं, जिनमें लघु चित्र, सिक्के और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की अन्य वस्तुएँ शामिल हैं। पुस्तकालय में एक संरक्षण प्रयोगशाला है जो इन कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिए काम करती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रहें।
लाइब्रेरी बनाने में नवाबों का अहम योगदान
रामपुर रियासत के सभी नवाबों ने रज़ा लाइब्रेरी के विस्तार में अहम योगदान दिया था। जबसे रामपुर जिला बना तब से ही इसकी तारीख शुरू होती है. लाइब्रेरी का संग्रह 1774 में नवाब फैज़ुल्लाह खान द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन यह इमारत बहुत बाद में बनी। पुस्तकालय में शुरूआती दौर में रामपुर के नवाबों का व्यक्तिगत पुस्तक संग्रह था. रामपुर के नवाब कला के संरक्षक थे और पुस्तकों और पांडुलिपियों के उत्साही संग्रहकर्ता थे।
DNN24 से बात करते हुए लाइब्रेरी एंड इंफोर्मेशन ऑफिसर डॉ. अबू साद इस्लामी बताया कि “सन 1840 में नवाब सईद खान का जमाना था। इन्होंने किताबों को महफूस रखने के लिए अलमारीयां बनवाई। और दूर दराज से कैलिग्राफर को लेकर आए और यहां कैलिग्राफी की। लाइब्रेरी का गोल्डन पीरियड तब आता है जब नवाब कल्बी अली खान का जमाना आया तब उन्होंने किताबों को इकट्ठा करवाया, जो किताबें इधर उधर हो गई थी।

1985 में सरकार ने किया लाइब्ररी को सेंट्रल लाइब्रेरी घोषित
इसके बाद 1890 से 1930 हामिद अली खान जमाना आया. तब इन्होंने एक अलग लाइब्रेरी के लिए बिल्डिंग बनवाई और पहली बार यह लाइब्ररी पब्लिक के लिए खोली गई। फिर रजा अली खान ने 1980 से लेकर 1966 तक शासन किया, उन्होंने 1947 में आजादी के समय पूरा जिला और लाइब्रेरी को सरकार को दे दिया। और 1985 में सरकार ने लाइब्ररी को एक सेंट्रल लाइब्रेरी घोषित किया।
रामपुर के नवाब विशेष रूप से उर्दू कविता और संगीत के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध थे। नवाब यूसुफ अली खान ने मिर्ज़ा ग़ालिब से कविता सीखी, जिन्हें उनके दरबार में नियुक्त किया गया था। नवाब संगीत वाद्ययंत्रों के शौकीन संग्राहक थे, और उस्ताद अलाउद्दीन खान और उस्ताद फैयाज खान सहित कई प्रसिद्ध संगीतकार और गायक रामपुर दरबार से जुड़े थे। शास्त्रीय संगीत के रामपुर-सहसवान घराने का नाम रियासत के नाम पर रखा गया है और यह भारत में संगीत के प्रति उत्साही लोगों के बीच लोकप्रिय है।
लाइब्रेरी के खुलने का समय और छुट्टी का दिन क्यों खा़स
इस तथ्य के बावजूद कि रामपुर मुख्य रूप से मुस्लिम राज्य था, नवाबों ने गैर-मुस्लिमों के लिए हिंदू मंदिरों और अन्य पूजा स्थलों के विकास को प्रोत्साहित किया। उन्होंने अंतर्धार्मिक विवाहों का भी समर्थन किया और अपने राज्य में विभिन्न समुदायों के बीच की खाई को पाटने के प्रयासों के लिए जाने जाते थे। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी आज भारत की समधर्मी विरासत के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक है और दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करना जारी रखे हुए है।
डॉ. अबू साद बताते है कि लाइब्रेरी का एक बोर्ड है। बोर्ड के चेयरमेन ही गवर्नर होते है, बोर्ड के जरिए ही इसका बजट पास होता है और मिनिस्ट्री बजट अलोट करती है। देखा जाए यह सेंट्रल गवर्नमेंट लाइब्रेरी है तो सरकारी छुट्टी सिर्फ रविवार को दी जाती है लेकिन इस लाइब्ररी में शुक्रवार को छुट्टी दी जाती है। ताकी मुसलमान जुमे की नमाज अदा कर सकें। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक लाइब्रेरी खुलती है। 2024 में इस लाइब्रेरी को 250 साल पूरे होने जा रहे है। इसलिए तैयारियां जोरो पर है। सरकार ने इसके लिए फंड भी रिलीज कर दिया है।
ये भी पढ़ें: मोहम्मद आशिक और मर्लिन: एक अनोखी कहानी जिसने बदल दिया शिक्षा का परिपेक्ष्य
आप हमें Facebook, Instagram, Twitter पर फ़ॉलो कर सकते हैं और हमारा YouTube चैनल भी सबस्क्राइब कर सकते हैं।