असलम हुसैन का मानना है कि त्योहार किसी एक धर्म का नहीं होता, बल्कि ये पूरे समाज की खुशियों का ज़रिया है। ओल्ड फरीदाबाद के तालाब रोड पर रहने वाले असलम और उनका परिवार दशकों से मिट्टी के दीये बनाकर दिवाली की रौनक बढ़ा रहे हैं। असलम हुसैन ने आवाज़ द वॉयस को बताया कि “त्योहार किसी एक धर्म का नहीं होता, ये पूरे समाज में खुशियों का हिस्सा होता है। हमें गर्व है कि हम हिंदू भाइयों की दीवाली की रौनक बढ़ाने में एक छोटी सी भूमिका निभा रहे हैं।”
असलम ने बताया कि दीयों की कीमत बाजार में 2 रुपए से लेकर 50 रुपए तक है। दिवाली के लिए दीये बनाने का काम दो महीने पहले से शुरू हो जाता है। पहले मिट्टी के दीये हाथ से चाक पर बनाए जाते थे, लेकिन अब मोटर वाले चाक ने इस काम को और आसान बना दिया है। असलम के बनाए दीयों की ख़ास बात ये है कि उनके दीये सिर्फ रोशनी ही नहीं, बल्कि भाईचारे का संदेश भी फैलाते हैं।
असलम की यह कहानी सिर्फ दीये बनाने तक सीमित नहीं है, यह समाज में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे, सौहार्द, प्रेम और एकता की एक बड़ी मिसाल पेश करती है। उनके जैसे कई मुस्लिम परिवार अपने हुनर से हिंदू त्योहारों की रौनक में चार चांद लगा रहे हैं। ऐसे उदाहरण हमें एक-दूसरे की परंपराओं का सम्मान करना सिखाते हैं और समाज में सहयोग व भाईचारे को मज़बूत करते हैं।
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