आब-ओ-हवा में जो महक घोल दे, उसे इत्र कहते हैं। श्रीनगर के ज़फर मोहिउद्दीन, जिन्हें आज ‘ज़फर भाई अत्तर वाला’ के नाम से जाना जाता है, पिछले 51 सालों से इत्र की खुशबुओं को दुनिया में फैला रहे हैं। लेकिन इस सफर की शुरुआत उनके हाथ की एक चोट से हुई।
कैसे बनी ‘ज़फर भाई अत्तर वाला’ की पहचान
ज़फर मोहिउद्दीन बताते हैं कि इत्र का यह सफर उनके लिए बिलकुल नया था। एक बार हाथ में लगी चोट के इलाज के दौरान डॉक्टर ने उनसे उनके काम के बारे में पूछा। ज़फर ने बताया कि वो पहले एक स्टूडियो में काम करते थे, लेकिन अब बेरोज़गार थे। डॉक्टर ने उन्हें दो विकल्प दिए—बैंगल्स का काम या इत्र का। बैंगल्स का काम ज़फर को पसंद नहीं था, और इत्र की जानकारी भी नहीं थी। डॉक्टर ने उन्हें इत्र की पाँच बोतलों के नाम लिखकर लाने को कहा, और इन पाँच बोतलों ने उनके इत्र के सफर की शुरुआत की।

सौ से ज्यादा इत्र की खुशबुओं का खजाना
आज ज़फर के पास इत्र की सौ से भी ज्यादा वैरायटीज़ हैं। वह बताते हैं कि इत्र दो प्रकार के होते हैं—सिंथेटिक और ऑरिजिनल। ऑरिजिनल गुलाब और ऊद का इत्र उनके पास उपलब्ध है, जिसकी कीमत 10 एमएल के लिए 5 हज़ार रुपये है। सिंथेटिक इत्र, जिसकी कीमत कम होती है, इसलिए सिंथेटिक गुलाब का इत्र 10ml 1500 रूपये का है। वह सिंथेटिक इत्र का कम इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा एक ख़ास तरह के ऑयल का इस्तेमाल करते है जो सीधा फैकट्री से बनकर आता है।
इत्र से जुड़ा उनका अनुभव
वह अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं कि आज उनके पास इत्र की जानकारी है, वह दूसरे लोगों को सीखा सकते हैं, प्रोडक्ट बना सकते हैं और खुद बेच भी सकते हैं। महज़ पांच बोतलों से शुरू करने वाले इत्र की दुकान में आज सौ से भी ज्यादा तरह के इत्र मिलते है।

आज वह 100 इत्र से 300 अलग अलग इत्र बना सकते हैं। ज़फर कहते हैं कि कोई भी नया इत्र बनाने के लिए बहुत प्रैक्टिस और मेहनत करनी पड़ती हैं। ज़फर मोहिउद्दीन के लिए इत्र की दुनिया उनकी ज़िन्दगी है। वह हर रोज़ कुछ नया बनाने की कोशिश करते हैं, और उनकी मेहनत का नतीजा है कि सफेद ऊद, गुलाब, लिली, और लेमन जैसी महकें उनके ग्राहकों को मोहित कर रही हैं
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