20-May-2025
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बतलू राम (Batlu Ram): छत्तीसगढ़ आदिवासी कला और सांस्कृतिक विरासत को संजोने वाले Bamboo Artist

बतलू राम ने बताया कि हमारे पूर्वज खेतों की सुरक्षा के लिए रात में खेतों में जाते थे और रास्ते में बांसुरी बजाते थे। बांसुरी की आवाज़ सुनकर जानवर भी भाग जाते थे।

छत्तीसगढ़ के बतलू राम (Batlu Ram) जिनका नाम सूबे में बांस की कला के क्षेत्र में एक अलग पहचान रखता है। पिछले 40 सालों से राम (Batlu Ram) बांस से ख़ूबसूरत डेकोरेटिव प्रोडक्ट्स तैयार कर रहे हैं। वो हर एक प्रोडक्ट पूरी तरह हाथ से तैयार करते हैं। इसमें महीनों की मेहनत और सालों का अनुभव झलकता है। ये बात आप जानते हैं कि छत्तीसगढ़ एक ट्राइबल स्टेट है और आदिवासी कला यहां की ख़ासियत है। इसमें सबसे अहम है ‘Bamboo Art’ जो सदियों से छत्तीसगढ़ की मिट्टी में पनप रही है।

बतलू राम (Batlu Ram) और कला में पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ाव

बतलू राम (Batlu Ram) छत्तीसगढ़ के एक गोंड जनजाति से आते हैं। वो कई कलाकारों को अपने साथ जोड़कर काम कर रहे हैं। बतलू राम (Batlu Ram) की कला सिर्फ़ एक शिल्प नहीं, बल्कि परंपरा और सबर का सबूत है। ये सिर्फ़ सजावट नहीं, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी चलती एक आदिवासी विरासत है। उनकी ये हस्तकला छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को ज़िंदा रखे हुए है।

वो अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाते है जैसे बांसुरी, बेल वॉल हैंगिंग, लैंप सेट्स, पेन होल्डर्स, सीलिंग पेंडेंट्स और लकड़ी के तीर-धनुष जैसे ख़ूबसूरत आइटम शामिल हैं। बतलू राम (Batlu Ram) का कहना है कि उन्होंने ये कला अपने पूर्वजों से सीखी है। पहले के समय में उनके पूर्वज हल्के और साधारण डिज़ाइन बनाते थे, लेकिन बतलू राम ने बांस कला को मॉडर्नाइज़ किया। उनका मक़सद है कि वो इस कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाए। उन्होंने अब तक 40 से 50 युवाओं को इस कला में ट्रेनिंग भी दी है।

मेहनत और समर्पण का सफ़र

बतलू राम ने DNN24 को बताते हैं कि बांसुरी बनाने का काम बहुत मेहनत वाला है। इसमें बांस को काटना, छेद करना, छीलना और नक़्क़ाशी करना शामिल है। इसके बाद इसमें वॉशर लगाकर तैयार किया जाता है। पूरा प्रोसेस करीब 6 घंटे का होता है। ये काम देखने में कठिन लगता है, लेकिन सीखने के बाद सब आसान हो जाता है।बतलू राम के बनाए प्रोडक्ट सिर्फ सजावट के लिए नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की परंपरा और आदिवासी संस्कृति का भी प्रतीक हैं।

उनके गांव में देवी-देवताओं के त्योहारों के दौरान बांसुरी बजाई जाती है। उन्होंने बताया कि जब हमारे पूर्वज जंगलों में खेती करते थे तो उसमें खेतों की सुरक्षा के लिए लोग रात में खेतों में जाते थे और रास्ते में बांसुरी बजाते थे। जिसकी आवाज़ सुनकर जानवर भी भाग जाते थे। ये परंपरा बतलू राम (Batlu Ram) ने न केवल संभाली है, बल्कि इसे आधुनिक दुनिया में भी पहचान दिलाई है।

आधुनिक समय में कला का महत्व

आज के दौर में बांस कला की मांग बढ़ रही है। बतलू राम (Batlu Ram) कहते हैं कि युवा पीढ़ी में भी इस कला को लेकर रुचि बढ़ रही है। उन्होंने कई युवाओं को ट्रेन किया है। उन्होंने खुद को ट्राइब्स इंडिया और इंटरनेशनल मार्केट से जुड़ने की कोशिश की है। बांस कला को न सिर्फ़ छत्तीसगढ़ में, बल्कि पूरे देश में पहचान दिलाने के लिए वो कड़ी मेहनत कर रहे हैं। बतलू राम मानते हैं कि कला में वक्त के साथ साथ बदलाव करते रहना उनकी कला को और ख़ास बनाता है। उनका मानना है कि कला को अगर आज के समय के मुताबिक ढाल दिया जाए, तो उसकी मांग बढ़ जाती है।

बतलू राम (Batlu Ram) की कहानी सिर्फ कला की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और समर्पण की कहानी है। बतलू राम की बांस कला उनके सबर, मेहनत और परंपरा (Legacy) के प्रति समर्पण को दिखाती है। उनका सपना है कि ये आर्ट कभी ख़त्म न हो और आने वाली पीढ़ियां इसे आगे बढ़ाती रहें। छत्तीसगढ़ की बांस कला और बतलू राम का योगदान न सिर्फ लोकल, बल्कि वर्ल्ड लेवल पर सराहनीय है।

ये भी पढ़ें: ‘कला का कोई धर्म नहीं’: सय्यद निसार का Wood Inlay Art से सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश

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