कुछ कहानियां दर्द से नहीं, हौसले से लिखी जाती हैं। Sumi Das की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। एक ट्रांसजेंडर महिला, जिसने न सिर्फ़ समाज के बनाए हर बंधन को तोड़ा, बल्कि सैकड़ों जिंदगियों को नई राह दी। वेस्ट बंगाल के कूचबिहार ज़िले की गलियों में जन्मी Sumi Das का बचपन आम नहीं था। मिडिल क्सास फैमली में पैदाइश के साथ ही उन्होंने जाति, धर्म और लिंग के आधार पर ताने झेले। जब वो पहली-दूसरी क्लास में थीं, तभी उनकी मां का देहांत हो गया। पिता काम में व्यस्त रहते, जिससे परिवार में भावनात्मक सहारा नहीं मिल पाया।
स्कूल में जब सुमी बोलतीं, तो उनकी आवाज़ को लेकर बच्चे और टीचर तक हंसी उड़ाते। एक ट्रांसजेंडर बच्चे के लिए स्कूल एक डर की जगह बन गया। यही वजह है कि LGBTQIA+ समुदाय के बच्चे अक्सर शिक्षा से कट जाते हैं क्योंकि वो स्कूलों में बुलिंग और तिरस्कार का शिकार होते हैं।
Sumi Das ने 14 साल की उम्र में घर छोड़ा
परिवार और समाज की बेरुखी ने सुमी को इतनी बार तोड़ा कि 14 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया। जेब में बस एक-दो हज़ार रुपये थे, और सामने भविष्य का अंधकार। कोलकाता के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन का एक कोना उनका घर बन गया। पेट भरने और ज़िंदा रहने के लिए उन्होंने सेक्स वर्कर तक बनीं। वो बताती हैं कि समाज उन्हें ‘हिजड़ा’, ‘छक्का’ और ‘होमोसेक्सुअल’ जैसे शब्दों से पुकारता था। ये पहचान उनके लिए सिर्फ़ शब्द नहीं, तिरस्कार का प्रतीक थे।

दर्द से ताक़त बनने की यात्रा
Sumi Das ने एक NGO के साथ HIV/AIDS से जुड़े काम में कुछ वक़्त बिताया, लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आया कि ट्रांसजेंडर और HIV दोनों को जोड़कर समाज और ज़्यादा कलंकित या बदनाम करता है। Sumi Das कहती हैं, “जब समाज पहले ही हमें अछूत समझता है, तो कंडोम बांटने और HIV पर काम करने से वो सोच और मज़बूत हो जाती है।”
इस बीच एक टीचर ने उनका हौसला बढ़ाया। धीरे-धीरे उन्होंने पढ़ाई का सपना फिर से ज़िंदा किया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ओपन यूनिवर्सिटी और फिर इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन पूरा किया। उन्होंने ठान लिया कि अगर वो नहीं पढ़ पाईं, तो दूसरों को पढ़ाने का ज़िम्मा उठाएंगी क्योंकि शिक्षा ही एकमात्र रोशनी है, जो अंधेरे को दूर कर सकती है।
MoitriSanjog Gurukul की शुरुआत
साल 2009 में Sumi Das ने कूच बिहार में Moitri Sanjog Gurukul की नींव रखी। Moitri Sanjog का मतलब होता है ‘जोड़ना’ और यही उनका उद्देश्य था। सुमी कहती हैं ‘गुरूकुल की शुरुआत सिर्फ़ 5 लोगों के साथ हुई कुछ साधारण सी बातचीत से, जो एक आंदोलन बन गई।’ उन्हें NGO क्या होता है, रजिस्ट्रेशन कैसे होता है, कुछ नहीं पता था। लेकिन एक चीज़ साफ़ थी, वो एक ऐसी जगह बनाना चाहती थीं, जहां हर कोई खुद को सुरक्षित महसूस करे, ख़ासकर ट्रांसजेंडर और LGBTQIA+ समुदाय के बच्चे।

2011 में संस्था का रजिस्ट्रेशन हुआ और उन्होंने कॉलेज-यूनिवर्सिटी में जाकर जेंडर इक्वालिटी पर बातचीत शुरू की। शुरुआत में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा, पर उनके काम ने धीरे-धीरे लोगों का भरोसा जीत लिया।
बचपन से जेंडर इक्वालिटी की शिक्षा देना ज़रूरी
Sumi Das का सबसे करीबी प्रोजेक्ट है Moitrisanjog Gurukul, एक ऐसी जगह जहां हर समुदाय के बच्चों को फ्री एजुकेशन दी जाती है। यहां वो बच्चे आते हैं जिनके माता-पिता प्रवासी मज़दूर हैं, या जो परिवार के प्यार से वंचित हैं। गुरुकुल में सिर्फ़ पढ़ाई नहीं होती, यहां डांस, आर्ट, स्किल्स और सेल्फ एक्सप्रेशन को बढ़ावा दिया जाता है। सुमी कहती हैं, ‘लोग कहते हैं कि बचपन दोबारा जीना अच्छा होता है, लेकिन हमारे समुदाय के लोग ऐसा कभी नहीं कह सकते क्योंकि वो समय सबसे ज़्यादा हिंसा, डर और तिरस्कार से भरा था।’
वो बताती हैं कि बचपन में उनके ही रिश्तेदार ने उनके साथ यौन शोषण किया, स्कूल में बुरी तरह बुली किया गया और ये सिर्फ़ उनकी नहीं, हर ट्रांसजेंडर साथी की कहानी है। इसलिए वो चाहती हैं कि बच्चों को शुरुआत से ही जेंडर इक्वालिटी की शिक्षा दी जाए।
रोज़गार का नया रास्ता आत्मनिर्भरता की ओर
सुमी ने देखा कि उनके समुदाय के लोग बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। उन्होंने ब्यूटी पार्लर ट्रेनिंग, हैंडिक्राफ्ट वर्कशॉप और पेपर प्लेट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट जैसी पहल शुरू की। आज उनकी सोसाइटी की कंपनी में 64 से ज़्यादा लोग काम कर रहे हैं। तीन साल पहले जब उन्होंने लाइवलीहुड प्रोजेक्ट शुरू किया, तब लोग कहते थे- ‘ये लोग पैसे लेकर भाग जाएंगे।’ समाज का ये रवैया बहुत तोड़ने वाला था, लेकिन अब वही लोग उनके काम की तारीफ़ करते हैं।

शुरुआत में सवाल, आज भरोसा
जब उन्होंने MoitriSanjog Gurukul की शुरुआत की, तो समाज ने उसे ‘हिजड़ों का स्कूल’ कहकर मज़ाक उड़ाया। माता-पिता को डर था कि उनके बच्चों को इंजेक्शन देकर “हिजड़ा” बना दिया जाएगा। लेकिन सुमी ने हर सवाल का जवाब शांति से दिया “अगर कोई लड़का रेप करता है, तो सारे लड़के रेपिस्ट नहीं हो जाते वैसे ही हमारे समुदाय में कोई ग़लत हो सकता है, लेकिन आप सभी को एक ही नज़र से नहीं देख सकते।” आज वही स्कूल 200 से ज़्यादा बच्चों का भविष्य संवार रहा है। सुमी के लिए यह सबसे बड़ी उपलब्धि है।
एक स्टूडेंट की कहानी जिसने सुमी को झकझोर दिया
सुमी एक बच्चे की कहानी शेयर करती हैं जिसका पिता मां को तब छोड़कर चला गया जो वो गर्भवती थी। बच्चे की मां का दिमागी स्थिति ठीक नहीं थी। मां और बच्चा दादी के पास रह रहे थे। सुमी का दिल पिघल गया और उन्होंने तुरंत उस बच्चे का एडमिशन गुरुकुल में कराया। वो कहती हैं, “हमारा समुदाय भी तो ऐसा ही है बिना मां-बाप के प्यार के बड़ा होना। हम जानते हैं अकेलापन क्या होता है।”

आगे की राह: समाज से दिल से जुड़ना होगा
आज सुमी कूचबिहार डिस्ट्रिक्ट ट्रांसजेंडर सेल की मेंबर हैं। उन्होंने COVID-19 महामारी के दौरान अपने समुदाय के लिए राशन, बैंक अकाउंट और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। अब वो मेंटल हेल्थ, जेंडर सेंसिटाइजेशन, और LGBTQIA+ अधिकारों पर काम कर रही हैं। युवाओं से सुमी की अपील है “मैं आज की पीढ़ी से बस एक बात कहना चाहती हूं हमें सिर्फ़ बाहर से मत देखो, दिल से समझो। हमारी भी इच्छाएं हैं, सपने हैं। अगर मैं बदल सकती हूं, तो कोई भी बदल सकता है।”
सुमी दास की कहानी उस रोशनी की तरह है, जो अंधेरे से लड़ना सिखाती है। उन्होंने अपने दर्द को ताकत बनाया, और अब दूसरों को सपने देखने की आज़ादी दे रही हैं। Moitri Sanjog Gurukul सिर्फ़ एक संस्था नहीं, बल्कि सम्मान, समानता और स्नेह की नींव है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर समाज की ओर रास्ता खोल रही है।
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