‘मंज़िल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है
पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।’
ये लाइन्स बिल्कुल फिट बैठती है बिहार के पूर्णिया ज़िले के सत्यम सुंदरम पर। एक साधारण परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले इस नौजवान ने MBA की डिग्री लेने के बाद कॉरपोरेट दुनिया को छोड़कर बांस (Bamboo) को अपना साथी बनाया। आज के वक्त में वो सिर्फ़ बिहार या भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अपने हैंडमेड बांस उत्पादों के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी कहानी सिर्फ़ एक बिज़नेस की नहीं, बल्कि संघर्ष, जुनून और बदलाव की कहानी है।
MBA से बांस तक का अनोखा सफ़र
सत्यम सुंदरम की पैदाइश और पालन-पोषण पूर्णिया ज़िले के श्रीनगर नगर हट्टा में हुआ। बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे थे। उन्होंने कोलकाता से MBA की पढ़ाई पूरी की और सपनों में एक अच्छी कॉरपोरेट नौकरी थी। लेकिन जैसे ही जॉब की तलाश शुरू हुई, उम्मीदें धूमिल होती गईं।
कई जगह कोशिश करने के बाद भी मनचाहा मौक़ा नहीं मिला। यही वो पल था जब उन्होंने ठाना कि वे नौकरी के पीछे भागने के बजाय खुद कुछ अलग करेंगे। ये फ़ैसला आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। सत्यम बताते हैं, ‘नौकरी न मिलने का ग़म ज़रूर था, लेकिन उसी ने मुझे अपनी राह चुनने की हिम्मत दी। मैंने सोचा कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाए जिससे न सिर्फ़ मैं खुद आगे बढ़ूं, बल्कि दूसरों को भी रोज़गार मिले।’
हुनर सीखने मणिपुर और असम की यात्रा
इस सोच के साथ सत्यम ने मणिपुर और असम का रुख़ किया, जहां बांस शिल्प और आर्किटेक्चर की गहरी परंपरा है। वहां उन्होंने बांस से जुड़ी कला, डिज़ाइन और प्रोडक्ट निर्माण की बारीकियां सीखीं। बांस की दुनिया में उतरते ही उन्होंने महसूस किया कि ये सिर्फ़ एक पौधा नहीं, बल्कि ‘ग्रीन गोल्ड’ है। ये तेज़ी से बढ़ता है, सस्ता है, पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता और प्लास्टिक का बेहतरीन ऑप्शन है। यहीं से जन्म हुआ उनके स्टार्टअप “बैंबू आर्किटेक्चर” का।

200 से ज़्यादा प्रोडेक्ट, दुनिया तक पहुंच
शुरुआत छोटे पैमाने पर हुई। पहले कुछ बोतलें, कप और डेकोर आइटम बनाए। लेकिन धीरे-धीरे प्रोडक्ट्स की लिस्ट बढ़ती गई और आज 200 से भी ज़्यादा बांस आधारित प्रोडक्ट वो तैयार कर रहे हैं। इनमें बांस की बोतलें, कप, प्लेट, गिफ्ट आइटम्स, सजावटी सामान और घर के इस्तेमाल की कई चीज़ें शामिल हैं। ख़ास बात ये है कि कस्टमर की ज़रूरत के हिसाब से वे डिज़ाइन भी तैयार करते हैं।
आज उनके प्रोडक्ट्स की मांग सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रही। भारत के कई राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी लोग उनके प्रोडक्ट्स पसंद कर रहे हैं।
कोविड-19 का दौर सत्यम की सोच को और मज़बूत कर गया। उन्होंने महसूस किया कि प्लास्टिक का बढ़ता इस्तेमाल पर्यावरण और इंसानों दोनों के लिए ख़तरा है। इसी दौरान उन्होंने ठाना कि वे ऐसे प्रोडक्ट बनाएंगे जो पर्यावरण के अनुकूल और स्वास्थ्य के लिए बेहतर हों।
सत्यम कहते हैं, ‘कोविड ने हमें सिखाया कि प्रकृति के साथ चलना ज़रूरी है। मैंने सोचा कि शरीर और पर्यावरण के लिए सबसे अच्छा ऑप्शन बांस ही हो सकता है। इसी सोच ने मुझे नई दिशा दी।
सड़क से शुरू, उद्योग तक का सफ़र
सत्यम ने कारोबार की शुरुआत बेहद छोटे स्तर पर की। वे बताते हैं कि शुरू में सिर्फ़ दो लोगों के सहयोग से सड़क किनारे अपने उत्पाद बेचना शुरू किया। लेकिन मेहनत, लगन और ईमानदारी ने धीरे-धीरे उनका काम बढ़ा दिया।
आज उनका कारोबार एक छोटे उद्योग का रूप ले चुका है और दर्जनों लोगों को रोज़गार दे रहा है। वे युवाओं को ट्रेनिंग भी देते हैं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
परिवार और समाज का बदलता नज़रिया
शुरुआत में समाज ने उनकी राह आसान नहीं बनाई। उनकी मां बताती हैं, ‘लोग ताने मारते थे कि बेटे को MBA कराया और वो बांस का काम कर रहा है।’ लेकिन धीरे-धीरे वही लोग सत्यम की तारीफ़ करने लगे। आज वे गर्व से कहती हैं, ‘मेरे बेटे ने साबित कर दिया कि मेहनत और हिम्मत से कोई भी काम छोटा नहीं होता।’
सत्यम खुद भी मानते हैं कि परिवार का साथ और सरकार की योजनाओं ने उनके सपनों को हक़ीक़त बनाने में बड़ी भूमिका निभाई।
कामगारों की ज़िंदगी में बदलाव
सत्यम के साथ काम करने वाले लोकल कारीगर भी इस पहल से खुश हैं। उनके सहयोगी मुन्ना कुमार कहते हैं, ‘पहले रोज़गार के लिए भटकना पड़ता था। अब अच्छी आमदनी हो रही है और परिवार महफूज़ है।’ इसी तरह कुलदीप कुमार बताते हैं कि बांस उद्योग ने उनकी ज़िंदगी बदल दी। वे सिर्फ़ रोज़गार ही नहीं कमा रहे, बल्कि एक सम्मानजनक ज़िदगी जी रहे हैं।
बांस: प्लास्टिक का विकल्प और हरियाली का संदेश
आज दुनिया प्लास्टिक के ख़तरे से जूझ रही है। ऐसे में सत्यम के बांस उत्पाद न सिर्फ़ एक विकल्प बने, बल्कि पर्यावरण को बचाने का संदेश भी दे रहे हैं। वे कहते हैं, ‘बांस को ग्रीन गोल्ड कहा जाता है। ये कभी खत्म नहीं होता और हर मौसम में उपलब्ध रहता है। ये सिर्फ़ उत्पाद नहीं, बल्कि पर्यावरण और समाज की सुरक्षा का ज़रिया है।
प्रेरणा की मिसाल
सत्यम सुंदरम की कहानी ये साबित करती है कि अच्छी डिग्री और बड़ी नौकरी ही सफलता का पैमाना नहीं है। असली कामयाबी उस सोच में है जो समाज, पर्यावरण और देश के लिए बदलाव लाए। MBA की डिग्री लेकर कॉरपोरेट की बजाय बांस को चुनना आसान नहीं था। लेकिन आज उनकी मेहनत ने साबित कर दिया कि अगर जुनून हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं। पूर्णिया से निकलकर सत्यम ने देश और विदेश में अपनी पहचान बनाई है। वे न सिर्फ़ खुद कामयाब हुए, बल्कि कई युवाओं और कारीगरों की जिंदगी भी रोशन कर दी।
सत्यम सुंदरम की यात्रा सिर्फ़ एक बिज़नेस केस स्टडी नहीं, बल्कि हिम्मत, सोच और जुनून की मिसाल है। उन्होंने दिखा दिया कि एक साधारण विचार भी अगर सही दिशा और मेहनत से जोड़ा जाए, तो समाज और पर्यावरण दोनों के लिए बड़ा बदलाव ला सकता है। आज वे पूर्णिया ही नहीं, बल्कि पूरे बिहार और देश के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।
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