30-Sep-2024
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Farrukh Nagar की अनदेखी विरासत: गौस अली शाह की बावड़ी और रानी की याद में बनवाया गया शीश महल

इस बावड़ी को बेहद नायाब और शाही अंदाज़ में तैयार किया गया है। इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल किया गया है।

गुरूग्राम में एक ऐसी जगह मौजूद है, जो अपने आप में इतिहास को समेटे हुए है। गुरुग्राम को पहले गुड़गांव के नाम से जाना जाता था। ये एक आधुनिक शहर (Modern City) है। गुड़गांव अपने बेहतरीन Road Networks, Malls , ऊंची इमारतें और साइबर सिटी (cyber city) के लिए जाना जाता है। हम जब भी गुरुग्राम के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले ज़हन में मॉल से लेकर रेस्टोरेंट अट्रैक्ट करते हैं। गुरुग्राम शहर से करीब 22 किलोमीटर दूरी पर फर्रुख़नगर है। गौस अली शाह की बावड़ी के ठीक ऊपर बना है झज्जर दरवाज़ा । इस गेट यानि झज्जर दरवाज़ा से सड़क झज्जर शहर की ओर जाती है। सड़क के नज़दीक ही गेट के ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। मेहराबदार गेट से नीचे सीढियां, एक शानदार अष्टकोण octagonal के साथ 300 साल पुरानी बावड़ी में खुलती है। 

गौस अली शाह की ऐतिहासिक बावड़ी(फोटो: DNN24)

इसकी स्थापना 1732 में फर्रुख़नगर के पहले नवाब और मुगल सम्राट फर्रुखसियर के गवर्नर फौजदार ख़ान ने की थी। इस मुगल शासक ने अपने शासन के दौरान कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया था। इस किले को बड़े ही नायाब अंदाज़ में बनवाया गया है। बावली या बावड़ी उन सीढ़ीदार कुओं , तालाबों या कुंडों को कहते हैं जिन के जल तक सीढ़ियों के सहारे आसानी से पहुंचा जा सकता है। इस बावड़ी को नायाब अंदाज़ में बड़े ही शान-ओ- शौकत से बनाया गया है। इसमें लाल बलुआ पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल किया गया है।

बरामदे से नीचे जाने के लिए दोनों ओर सीढ़ियां हैं। सीढ़ियों के ठीक बीचों-बीच में एक कुआं भी है। जो काफ़ी गहरा है और ये एक ख़ूबसूरत तुर्की हम्माम जैसा नज़र आता है। इस किले में आठ मेहराबदार बरामदे हैं। बरामदे में ठंडी हवा दिल को बाग़-बाग़ करती है। जब बरामदे से बाहर की ओर देखा तो, ये नज़ारा बहुत ही ख़ूबसूरत नज़र आता है। 

बरामदे से एक गेट बावड़ी के ऊपर जाने के लिए है। जब सीढ़ियों से ऊपर की ओर जाते हैं तब ये नज़ारा देखने लायक था। ऐसा लगता है कि आप किसी पहाड़ी की चोटी पर आ गये हों। इस जगह को बड़े ही नुमायां अंदाज़ में बनवाया गया है। शिखर पर छोटे बड़े आकार के मुख़्तलिफ़ ताक़ नज़र आते हैं। जो पुराने ज़माने की याद दिलाते है और ये किला मुल्क के बावक़ार किलो में से एक है।

फर्रुख़नगर के निवासी प्रेम राज सैनी ने DNN24 से बात करते हुए बताया कि, इस किले का इतिहास काफ़ी पुराना है। इस किले के बारे में बड़े बुज़ुर्ग बताते है। इसमें शीश महल से रानियां सुरंग के ज़रिए नहाने के लिए आती थी। इस वक़्त सुरंग को बंद कर दिया गया है। मुगल शासक ने उस वक़्त में ऐसी चीज़ बनाई जो आज भी क़ायम दायम है जो पुराने ज़माने की याद दिलाता है। आज भी बिना स्तंभ ( pillar) के खड़ा हुआ है। यहां शूटिंग भी होती है। पर्यटक भी दूर दराज़ इलाके से देखने आते हैं। 

फर्रुख़नगर के निवासी प्रेम राज सैनी (फोटो: DNN24)

फर्रुख़नगर के निवासी प्रेम राज सैनी ने DNN24 से बात करते हुए बताया कि, इस किले का इतिहास काफ़ी पुराना है। इस किले के बारे में बड़े बुज़ुर्ग बताते है। इसमें शीश महल से रानियां सुरंग के ज़रिए नहाने के लिए आती थी। इस वक़्त सुरंग को बंद कर दिया गया है। मुगल शासक ने उस वक़्त में ऐसी चीज़ बनाई जो आज भी क़ायम दायम है जो पुराने ज़माने की याद दिलाता है। आज भी बिना स्तंभ ( pillar) के खड़ा हुआ है। यहां शूटिंग भी होती है। पर्यटक भी दूर दराज़ इलाके से देखने आते हैं। 

ऐतिहासिक दिल्ली दरवाज़ा (फोटो: DNN24)

शीश महल: स्वतंत्रता संग्राम और इतिहास का प्रतीक

शीश महल गुरुग्राम में घूमने के लिए सबसे अच्छी ऐतिहासिक जगहों में से एक है। इस महल को फौजदार ख़ान ने 18वीं सदी में बनवाया था। ये महल फौजदार ख़ान का रिहायशी महल था। इस महल का दीवान-ए-आम बलुआ पत्थर से बना है। ये एक आयताकार आकार ( Rectangular structure )है। इस महल के बरामदे पर बारीक नक्क़ाशी का काम देखने को मिलता है। महल की छत में लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। इस महल के अंदर कई खूबसूरत शीशों का भी इस्तेमाल किया गया है, इसी वजह से इसका नाम शीश महल है। 

रानी के लिए बनवाया गया शीश महल (फोटो: DNN24)

महल परिसर में फर्रुख़नगर के शहीदों के लिए एक स्मारक भी मौजूद है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए 1857 के विद्रोह में हिस्सा लिया था। आज इस शीश महल को शहर के सबसे पसंदीदा जगहों में से एक माना जाता है। 

शीश महल में कई कमरे मौजूद हैं इस महल को मुगल शासक ने अपनी रानी के लिए बनवाया था इसके नीचे एक ख़ुफ़िया सुरंग भी है जो किले के बाहर कुछ दूर एक बाउली में खुलती है।

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