कैफ़ भोपाली… एक ऐसा नाम जो अपनी शायरी की रोशनी से एक ज़माने तक जगमगाता रहा। एक ऐसा फ़नकार, जिसकी आवाज़ में दर्द भी था और मोहब्बत भी, उम्मीद भी थी और मायूसी भी। वो सिर्फ़ शायर ही नहीं थे, बल्कि एक कहन, एक दास्तान, एक पूरी दुनिया थे अपने आप में।
वो बचपन, वो भोपाल की गलियां
कैफ़ भोपाली का असली नाम मोहम्मद सिद्दीक़ था। उनकी पैदाइश 1928 में भोपाल में हुई। भोपाल, जो अपनी नवाबियत, अपनी तहज़ीब और अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति के लिए जाना जाता था। कैफ़ ने आंखें खोलीं तो उनके आस-पास शायरी का माहौल था। उनके वालिद भी शेर-ओ-शायरी से वाबस्ता थे। कहते हैं कि बचपन से ही कैफ़ की तबीयत में एक अजीब सी संजीदगी और एक गहरी सोच थी। वो अक्सर ख़ामोश रहते, सोचते रहते, जैसे दुनिया की सच्चाइयों को अपने अंदर समेट रहे हों।
उन्हीं बचपन के दिनों की एक बात याद आती है। एक बार कैफ़ अपने दोस्त के साथ एक मुशायरे में गए थे। उनकी उम्र बहुत कम थी, शायद 10-12 साल के रहे होंगे। जब एक बड़े शायर ने अपना कलाम पढ़ा और खूब दाद पाई, तो कैफ़ को कुछ ऐसा महसूस हुआ कि वो भी कुछ कहें। हिचकते-हिचकते उन्होंने एक ग़ज़ल पढ़ी। लोगों ने पहले तो बच्चे को देखकर हैरानी जताई, लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने शेर पढ़े, मुशायरे में सन्नाटा छा गया। वो पहली बार था जब नन्हें कैफ़ ने अपनी शायरी का जादू बिखेरा था। शायद उसी दिन से उनके अंदर का शायर जाग उठा और उसने तय कर लिया कि ये ही उसकी मंज़िल है।
संघर्ष का सफ़र और शायरी का जुनून
कैफ़ की ज़िंदगी इतनी आसान नहीं थी। उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। गरीबी देखी, संघर्ष देखा, लेकिन उनके दिल में शायरी की आग हमेशा जलती रही। उन्होंने कई तरह के काम किए, छोटी-मोटी नौकरियां कीं, लेकिन कलम से उनका रिश्ता कभी नहीं टूटा। उनका मानना था कि शायरी सिर्फ़ शौक नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है। एक शायर का काम सिर्फ़ अपने जज़्बात को मसरूफ करना नहीं, बल्कि समाज के दर्द को, उसकी आवाज़ को अपनी शायरी में ढालना भी है।
आग का क्या है पल दो पल में लगती है
कैफ़ भोपाली
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है
इसी दौरान उनकी मुलाकात उर्दू अदब की कई बड़ी हस्तियों से हुई। भोपाल में उस वक्त बड़े-बड़े शायरों और अदीबों का जमघट लगा रहता था। कैफ़ ने उनसे सीखा, उनसे तहकीक ली और अपनी शायरी को और भी निखारा। उनकी शायरी में क्लासिकी अदब की झलक भी मिलती है और तरक्की पसंद तहरीक का असर भी। उन्होंने अपनी शायरी को सिर्फ़ महबूब की ज़ुल्फ़ों तक महदूद नहीं रखा, बल्कि उसमें ज़िंदगी के हर पहलू को समेटा।
कैफ़ की शायरी का अंदाज़-ए-बयां
कैफ़ भोपाली की शायरी की सबसे बड़ी ख़ूबी उनका सादा और दिल को छू लेने वाला अंदाज़ था। वो मुश्किल अलफ़ाज़ का इस्तेमाल नहीं करते थे। उनकी ज़बान इतनी आम थी कि हर कोई उसे समझ सकता था, लेकिन उनके ख्य़ालात इतने गहरे थे कि वो सीधे रूह में उतर जाते थे। उनकी ग़ज़लों में एक अजीब सी कशिश थी, एक ऐसा जादू जो सुनने वाले को अपनी गिरफ़्त में ले लेता था।
उनकी शायरी में हमें मोहब्बत भी मिलती है और हसरत भी। उम्मीद भी मिलती है और मायूसी भी। वो इंसानी रिश्तों की पेचीदगियों को बहुत खूबसूरती से बयान करते थे। उनकी शायरी में भोपाल की मिट्टी की सौंधी खुशबू थी, उसकी तहज़ीब की झलक थी। उन्होंने अपनी शायरी में आम लोगों के दुख-दर्द को आवाज़ दी, उनकी आरज़ूओं को बयान किया। उनकी एक मशहूर ग़ज़ल का ये शेर देखिए:
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिले
कैफ़ भोपाली
हम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
तुम से न मिल के ख़ुश हैं वो दावा किधर गया
दो रोज़ में गुलाब सा चेहरा उतर गया
उनकी शायरी में तन्हाई का दर्द भी था और बिछड़ने का ग़म भी। वो अपनी ग़ज़लों में सिर्फ़ अपने दिल की बात नहीं कहते थे, बल्कि हर उस दिल की बात कहते थे जो मोहब्बत में ज़ख्मी हुआ हो।
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है
कैफ़ भोपाली
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है
फ़िल्मी दुनिया से वाबस्तगी और शोहरत
कैफ़ भोपाली ने सिर्फ़ मुशायरों में ही अपनी शायरी का जलवा नहीं बिखेरा, बल्कि उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में भी अपना सिक्का जमाया। उन्होंने कई फ़िल्मों के लिए गीत लिखे, जो आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं। उनकी गीतकारी में भी वही सादगी, वही गहराई और वही दिलकश अंदाज़ था जो उनकी ग़ज़लों में था।
फ़िल्मी दुनिया में आकर उनकी शोहरत में चार चांद लग गए। लोग उनकी शायरी को और भी ज़्यादा जानने लगे, पहचानने लगे। उन्होंने कई यादगार नग़में दिए, जो आज भी क्लासिक माने जाते हैं। उनके गीतों में वो तासीर थी कि वो सीधे दिल में उतर जाते थे। उन्होंने फ़िल्मी गीतों को भी एक अदबी मक़ाम दिया।
तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूं मैं हज़ारों से
कैफ़ भोपाली
हसीनों से रक़ीबों से ग़मों से ग़म-गुसारों से
ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं
उम्मीदों से भरोसों से दिलासों से सहारों से
ये फ़िल्मी गीत जितना सीधा और सरल है, उतना ही गहरा और रूहानी है। ये गाना महबूब के हर पल साथ होने के एहसास को बयां करता है, इसमें प्यार की पाकीज़गी है, एक बेपनाह जुड़ाव है।
कैफ़ की फ़लसफ़ा-ए-हयात
कैफ़ भोपाली सिर्फ़ एक शायर नहीं थे, बल्कि एक फ़लसफ़ी भी थे। उनकी शायरी में ज़िंदगी का फ़लसफ़ा झलकता था। वो ज़िंदगी के हर पहलू पर गहरी नज़र रखते थे। उन्होंने ज़िंदगी की सच्चाइयों को बहुत करीब से देखा था और उन्हें अपनी शायरी में ढाला था।
कौन आएगा यहां कोई न आया होगा
कैफ़ भोपाली
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा
उनका मानना था कि ज़िंदगी एक मुसाफ़िरखाना है, जहां हम आते हैं और चले जाते हैं। असली चीज़ तो नेकियां हैं, अच्छे काम हैं, जो हमेशा बाक़ी रहते हैं। उन्होंने अपनी शायरी के ज़रिए लोगों को मोहब्बत का पैग़ाम दिया, भाईचारे का पैग़ाम दिया। वो चाहते थे कि दुनिया में अमन और शांति हो, कोई किसी से नफ़रत न करें।
उनकी शायरी में हमें एक उम्मीद भी मिलती है। वो कभी मायूस नहीं होते थे, चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न आ जाएं। उनका मानना था कि रात कितनी भी अंधेरी क्यों न हो, सुबह ज़रूर होती है। इसी उम्मीद के सहारे उन्होंने अपनी ज़िंदगी का सफ़र तय किया और दूसरों को भी जीने की प्रेरणा दी।
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
कैफ़ भोपाली
दूरियां मजबूरियां तन्हाइयां
कैफ़ भोपाली का इंतकाल 1990 में हुआ। वो अपने पीछे शायरी का एक अनमोल ख़ज़ाना छोड़ गए। उन्होंने उर्दू अदब को एक नई दिशा दी। उनकी शायरी आज भी उतनी ही गहरी है जितनी पहले थी। उनकी ग़ज़लें आज भी मुशायरों की रौनक बढ़ाती हैं, उनके गीत आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं।
उन्होंने उर्दू शायरी को एक आम आदमी तक पहुंचाया। उन्होंने मुश्किल अल्फ़ाज़ को छोड़कर सादी ज़बान में गहरी बातें कहीं। उनका योगदान सिर्फ़ शायरी तक ही महदूद नहीं था, बल्कि उन्होंने उर्दू ज़बान और अदब की ख़िदमत भी की। उन्होंने उर्दू की तहज़ीब को ज़िंदा रखा और उसे आगे बढ़ाया।
आज, जब हम कैफ़ भोपाली को याद करते हैं, तो हमें सिर्फ़ एक शायर याद नहीं आता, बल्कि एक ऐसा शख़्स याद आता है जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी शायरी के नाम कर दी। एक ऐसा फ़नकार जिसने अपनी रूह की गहराइयों से अलफ़ाज़ निकालकर लोगों के दिलों को छुआ। उनकी शायरी एक रोशन मीनार है, जो हमेशा हमें रास्ता दिखाती रहेगी। कैफ़ भोपाली आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी शायरी हमेशा ज़िंदा रहेगी। वो हमेशा हमें मोहब्बत, भाईचारे और उम्मीद का पैग़ाम देती रहेगी। उनकी शायरी की खुशबू हमेशा उर्दू अदब के चमन को महकाती रहेगी। और जब तक उर्दू शायरी ज़िंदा है, कैफ़ भोपाली का नाम भी ज़िंदा रहेगा, एक भूला बिसरा नग़्मा जो हमेशा दिलों में गूंजता रहेगा।
न आए पर न आए वो उन्हें क्या क्या ख़बर भेजी
कैफ़ भोपाली
लिफ़ाफ़ों से ख़तों से दुख भरे पर्चों से तारों से
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