अपने देश में चाय के शौकीन तो हर नुक्कड़ और गलियों में मिल जाते हैं। सुबह-सुबह चाय के बिना दिन की शुरुआत अधूरी लगती है। टी लवर्स हमेशा नई-नई चाय का स्वाद चखना चाहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी कश्मीर की पारंपरिक नून चाय या पिंक टी का स्वाद चख़ा है? अगर नहीं, तो आपको इसे ज़रूर आज़माना चाहिए। कश्मीर की रहने वाली डॉ. साइमा पॉल ने इसी नून चाय को एक नया रूप दिया है।
डॉ. साइमा पॉल और उनका इनोवेशन
डॉ. साइमा होम साइंस की एसोसिएट प्रोफ़ेसर और टी ब्रांड “Noonley” की संस्थापक हैं। उन्होंने नून चाय को एक नई पहचान दी है। कश्मीर में नून चाय का सदियों पुराना इतिहास है। ये चाय परंपरागत रूप से समावर (पारंपरिक कश्मीरी केतली) में बनाई और परोसी जाती थी। लेकिन वक्त की बचत के लिए अब इसे टी बैग्स के रूप में पेश किया जा रहा है।
डॉ. साइमा ने नून चाय को टी बैग्स में तब्दील करने की बेहतरीन कोशिश की है। ये इनोवेशन उन लोगों के लिए ख़ास है जो नून चाय को आसानी से बनाना और ले जाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि नून टी बनाने में काफी वक्त लगता है, और इसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल करना मुश्किल हो सकता है। इसलिए उन्होंने इसे आसान और आधुनिक रूप में तैयार किया।
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नून टी की ख़ासियत
नून चाय हरी चाय की पत्तियों, दूध, खाने का सोडा और नमक से बनाई जाती है। इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि शक्कर की जगह इसमें नमक डाला जाता है, जो इसे अन्य चायों से अलग बनाता है। दूध मिलाने पर इसका रंग हल्का गुलाबी हो जाता है। इसके अलावा, नून चाय को पारंपरिक रूप से कश्मीरी ब्रेड या कुलचा के साथ परोसा जाता है, जो इसके स्वाद को और बढ़ा देता है। इस चाय को बनाने की प्रक्रिया भी एक कला मानी जाती है, क्योंकि सही गुलाबी रंग और स्वाद पाने के लिए सही अनुपात और समय का ध्यान रखना पड़ता है।
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कैसे शुरू हुआ ये सफ़र?
डॉ. साइमा ने इस प्रोडक्ट को पहले अपने परिवार और दोस्तों के बीच टेस्ट करवाया। इसके बाद उन्होंने इसे बाजार में उतारा। आज उनकी नून चाय कश्मीर से बाहर के लोग भी खरीद रहे हैं। उनका मानना था कि अगर लिपटन चाय के टी बैग्स हो सकते हैं, तो कश्मीर की नून टी के क्यों नहीं? यही सोच उन्हें इस अनोखे इनोवेशन की ओर ले गई। उनकी ये कोशिश न सिर्फ कश्मीर की परंपरा को संजो रही है, बल्कि इसे ग्लोबल मंच पर पहचान दिलाने का काम कर रही है। नून चाय अब “पिंक टी” के नाम से दुनियाभर में पहचानी जाती है। ये पूरी तरह नैचुरल और किसी भी तरह के केमिकल से फ्री है। डॉ. साइमा पॉल का ये इनोवेशन वाकई तारीफ के काबिल है। उन्होंने न सिर्फ वक्त की बचत का समाधान दिया, बल्कि कश्मीर की इस परंपरागत चाय को आधुनिक युग में एक नई पहचान दी है।
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