21-May-2025
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कश्मीर के दानिश मंज़ूर की ताइक्वांडो में कामयाबी बनी मिसाल

ख़्वाब को हक़ीक़त में बदलकर जूनियर नेशनल ताइक्वांडो के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले खिलाड़ी बने। दानिश मंज़ूर को फिट इंडिया मूवमेंट का ब्रैंड एंबेसडर भी चुना गया।

दानिश मंज़ूर ने ताइक्वांडो के ख़्वाब को हक़ीक़त में बदल दिया। बारामूला, जम्मू-कश्मीर के रहने वाले दानिश ने ताइक्वांडो में अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत की। महज़ 13 साल की उम्र में उन्होंने ताइक्वांडो की दुनिया में क़दम रखा, और कुछ ही समय बाद वो जूनियर नेशनल ताइक्वांडो के लिए क्वालीफाई करने वाले पहले खिलाड़ी बने। दानिश मंज़ूर को हाल ही में फिट इंडिया मूवमेंट का ब्रैंड एंबेसडर भी चुना गया है, जो उनकी क़ाबिलियत का एक और सबूत है।

दानिश ने अपनी शुरुआती तालीम अल मुस्तफ़ा पब्लिक स्कूल से की, और फिर पोस्ट मैट्रिक की पढ़ाई Govt. Boys Higher Secondary School से पूरी की। इसके बाद, उन्होंने कश्मीर यूनिवर्सिटी से बीएससी, बायो इंफॉर्मेटिक्स की डिग्री हासिल की।

ताइक्वांडो का सफ़र एक दिलचस्प वाक्ये से शुरू हुआ। दानिश एक दिन क्रिकेट खेल रहे थे, जब बॉल पास में प्रैक्टिस कर रहे मार्शल आर्ट्स के ग्रुप के पास चली गई। उन्हें बचपन से ही एक्शन मूवीज़ का शौक था, और जब उन्होंने सामने मार्शल आर्ट्स की प्रैक्टिस होते देखी, तो वो तुरंत ही इस खेल की ओर आकर्षित हो गए। उनके पहले कोच साजिद अशरफ़ भट्ट थे, जिन्हें जम्मू-कश्मीर में “ब्रूस ली” के नाम से जाना जाता था। दानिश ने बताया कि साजिद की ट्रेनिंग और उनके ब्रूस ली जैसे स्टाइल ने उन पर गहरा प्रभाव डाला।

दानिश का ताइक्वांडो का सफ़र आसान नहीं था। शुरुआत में उनके पास खेल से जुड़ी सुरक्षा सामग्री, जैसे ताइक्वांडो पैड या हेड गार्ड, कुछ भी नहीं था। वो बिना किसी प्रोफेशनल गियर के, हाथों में चप्पल पहनकर ट्रेनिंग करते थे। इसके बावजूद, उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की।

मार्शल आर्ट्स एक कॉमन टर्मिनोलॉजी है, जो अलग-अलग लड़ाई के खेलों को दर्शाता है, जैसे कि कराटे, कुंग फू, और ताइक्वांडो। दानिश के बताया कि, ये सभी खेल मार्शल आर्ट्स के ही फॉर्म हैं, जिनकी उत्पत्ति चीन, जापान, और कोरिया जैसे एशियाई देशों में हुई है। ताइक्वांडो उनमें से एक प्रमुख फॉर्म है, जो अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खेला जाता है। एक एथलीट के लिए फिटनेस बनाए रखना सबसे ज़रूरी है। दानिश ने अपनी फिटनेस दिनचर्या के बारे में बताया कि वो रोज़ सुबह दौड़ लगाते हैं और शाम को ताइक्वांडो की ट्रेनिंग करते हैं। इसके अलावा, उनकी डाइट में ड्राई फ्रूट्स भी शामिल हैं, जो उनकी सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। उनका मानना है कि ताइक्वांडो जैसे खेल में शारीरिक और मानसिक फिटनेस का होना बेहद ज़रूरी है।

दानिश मंज़ूर ने अपने करियर में कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार हासिल किए हैं। 2011 में उन्होंने नेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। 2016 में ऑल इंडिया ओपन सीनियर नेशनल फेडरेशन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल, और 2018 में भारत राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। इसके अलावा, 2021 में उन्होंने टोकी ताइक्वांडो ओपन नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल हासिल किया।

उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक हैदराबाद में 2019 में हुई ताइक्वांडो चैंपियनशिप में दूसरे इंडिया ओपन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक रैंकिंग में भारत का प्रतिनिधित्व करना है।। ये इस खेल में उनकी महारत और क़ाबिलियत का सबूत है।
दानिश मंज़ूर की कहानी से यह साबित होता है कि किसी भी खेल में सफलता पाने के लिए कड़ी मेहनत, लगन और जुनून की ज़रूरत होती है। ताइक्वांडो में उनकी कामयाबी न सिर्फ़ उनके व्यक्तिगत कोशिशों का नतीजा हैं, बल्कि वो युवा खिलाड़ियों के लिए एक मिसाल भी हैं, जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। 

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