26-Jul-2024
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मौलाना इसहाक़ सम्भली: 11 साल की उम्र में अंग्रेज़ों की हुकूमत के खिलाफ़ लड़े

संभल के स्वतंत्रता सेनानी और लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर मौलाना इसहाक़ सम्भली का जन्म 6 अक्टूबर 1921 को मुजफ्फरनगर के थानाभवन कस्बे में हुआ था. वह एक भारतीय राजनेता, स्वतंत्रता कार्यकर्ता, पत्रकार और उत्तर प्रदेश के अमरोहा संसदीय क्षेत्र से सांसद थे. सम्भली के वालिद मोहम्मद अहमद हसन, दारुल उलूम देवबंद मे “हदीस” के उस्ताद यानि टीचर थे.

सम्भली ने अपनी शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की. सन 1948 में उन्होंने ‘अरबी’ मे ऐम.ए. किया. जून 1953 में नजमा बेगम से उनका विवाह हुआ था. उनकी 3 बेटियाँ सलमा उर्फ बबली, आमना बी, ऐश बी और 2 बेटे मोहम्मद सुलेमान सम्भली और मोहम्मद इमरान सम्भली, आज उनकी विरासत को संभाले हुए है.

मौलाना इसहाक़ सम्भली का राजनीतिक जीवन

मौलाना इसहाक़ सम्भली आज़ादी के बड़े दीवाने थे. वह बचपन से ही अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलनों में हिस्सा लेते रहे हैं. भारत के प्रतिरोध आंदोलन के दौरान उन्हें दो बार कैद किया गया था. वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए थे, और चौथे लोकसभा और पांचवें लोकसभा चुनावों के दौरान दो बार संसद सदस्य के रूप में कार्य किया. 1936 में मौलाना साहब को सबसे कम उम्र मे प्रदेश काँग्रेस के सदस्य बना दिया गया.

1930 में 11 साल की उम्र में संभल थाने के सामने उन्होंने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ पहली तकरीरी पेश की. 6 मार्च 1941 को पूर्व सांसद मौलाना इसहाक़ सम्भली को गोंडा के जेल में बंद कर दिया गया. कुछ वक़्त के बाद जब वह रीहा हुए तो 22 दिसम्बर 1942 मे रायबरेली मे भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हे फिर से गिरफ़्तार किया गया.

क्रांतिकारी मोहम्मद

मौलाना साहब को “क्रांतिकारी मोहम्मद” के नाम से भी जाना जाने लगा. देश आज़ाद हुआ तो वो भी सियासत से जुड़ गए. देश की आज़ादी मे उनका अहम योगदान रहा. करीब 56 देशों की यात्रा कर, उन्होंने सियासत को बारीकी से समझा. मौलाना इसहाक़ सम्भली एक ईमानदार इंसान थे. उन्होंने अंग्रेजों से वह मुकाबला किया जो आज तक संभल के इतिहास में अमर है.

सम्भली शुरू में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, किसान मजदूर प्रजा पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे, और 1937 में कांग्रेस के महासचिव और 1945 में कांग्रेस कमेटी देवबंद के रूप में कार्य किया. उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान दो बार कैद किया गया था. वह 1968 से 1971 तक अमरोहा के पार्लियामेंटरी सीट से संसद रहे. 7 जनवरी 2000 आज़ादी के इस दीवाने ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

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