दिल्ली स्थित जमात-ए-इस्लामी हिंद के हेडक्वाटर में इन दिनों एक अलग ही चहल-पहल है। तीन दिवसीय अल-नूर साहित्य महोत्सव ने साहित्य, संस्कृति और ग्रुप थिंकिंग के नये रंग दिखाए। देशभर से आए हज़ारों वर्कर्स, स्टूडेंट्स और लिटरेचर लवर इस आयोजन का हिस्सा बनकर इस्लामी सभ्यता और उसकी विरासत को नए नज़रिए से समझ रहे हैं। महोत्सव के दौरान छात्रों की ओर से लगाई गई प्रदर्शनी ख़ास बनी हुई है। यहां मुस्लिम संस्कृति, जमात-ए-इस्लामी हिंद की महान शख़्सियतों की तस्वीरें और उनके प्रेरणादायक विचार किताबों के रूप में पेश किए गए हैं।
प्रदर्शनी में फिलिस्तीन में हो रहे ज़ुल्म, जेल में बंद मुस्लिम युवाओं की कहानियां और सीएए से जुड़ी घटनाओं को भी दिखाया गया है। ये प्रदर्शन न केवल इस्लामी इतिहास की झलक पेश करता है, बल्कि मौजूदा समय की चुनौतियों पर भी सोचने को मजबूर करता है।

दूसरे दिन की एक खास पैनल चर्चा “उद्यमिता के क्षेत्र से जुड़ी कहानियां” पर केंद्रित थी। अनीस अहमद ने व्यापार में शरीयत के महत्व को समझाते हुए कहा, “ईमानदारी और सब्र बिजनेस को बुलंदियों तक ले जा सकते हैं।” उन्होंने युवाओं को छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करने और मज़बूत इरादा बनाए रखने की सलाह दी।
अब्दुल खालिक ने व्यापार के शुरुआती चरणों में सबर की महत्ता पर जोर दिया, जबकि डॉ. मोहिद्दीन गाज़ी ने कुरान को एक साहित्यिक चमत्कार बताते हुए उसकी शैली और संरचना को अल्लाह की नेमत करार दिया। उन्होंने कहा, “कुरान न सिर्फ धार्मिक मार्गदर्शन है, बल्कि एक साहित्यिक और कुदरती चमत्कार भी है।
मरियम जमीला हॉल में “इस्लामी सभ्यता का सांस्कृतिक ताना-बाना” विषय पर चर्चा ने महोत्सव को एक नया आयाम दिया। वक्ताओं ने इस्लामी सभ्यता की कला, साहित्य, और विज्ञान में अमूल्य योगदान को रेखांकित किया।
ताज महल, लाल किला, और मक्का की मस्जिद ए हरम जैसी संरचनाएं इस्लामी सभ्यता के शानदार अतीत की गवाही देती हैं। स्पीकर्स ने इस बात पर जोर दिया कि इस्लामी संस्कृति ने न केवल वास्तुकला, बल्कि सामाजिक संरचनाओं और वैज्ञानिक सोच में भी दुनिया को अमूल्य योगदान दिया है।

महोत्सव के दूसरे दिन का समापन एक शानदार मुशायरे से हुआ। सरफराज़ नज़मी की नात शरीफ ने समां बांध दिया। उसके बाद पेश की गई शायरियों ने न केवल दिलों को छुआ, बल्कि इस्लामी सभ्यता की गहराइयों को उजागर किया। साहित्य और संस्कृति के साथ-साथ यहां के स्वादिष्ट व्यंजन भी लोगों को अपनी ओर खींच रहे हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए पकवानों ने इस महोत्सव को और भी रंगीन बना दिया है।
अल-नूर साहित्य महोत्सव ने साहित्य, संस्कृति, और सामूहिक सोच के संगम को एक नई दिशा दी है। ये आयोजन न केवल इतिहास और सभ्यता को याद करने का मौका देता है, बल्कि मौजूदा समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरणा भी देता है। अल-नूर साहित्य महोत्सव सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि विचारों, रिश्तों और क्रिएटिव एक्सप्रेशन का ऐसा जोड़ है, जो जिंदगी को को नए निगाहों से देखने की ताकत देता है।
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