सैय्यदा नौशाद महमूद ने रिटायर होने के बाद लेखन को अपना मकसद बनाया। उनके पहली पुस्तक ‘मुलाजमत से सुबुकदोष हो चुके: अब आईंदा क्या’ रिटायर होने के बाद प्रकाशित हुई थी। इसके बाद सैय्यदा ने 13 साल में 14 किताबें लिखीं। रिटायरमेंट से पहले वह मराठी के लेखक राधाकृष्ण नार्वेकर की किताब पढ़ रही थी जो उन्हें अधिक प्रभावित कर गई थी। इस पर उन्होंने किताब का ऊर्दू में अनुवाद किया और रिटायरमेंट के बाद उसका प्रकाशन किया। इन लेखनीय कार्यों के जरिए सैय्यदा ने अपने सपनों को पूरा किया और एक सफल लेखक बन गईं।
सैय्यदा नौशाद महमूद बताती हैं, “40वर्ष तक नौकरी करने के बाद भी मैं चाहती थी कि अगर मुझे अवसर मिले तो मैं शिक्षण के पेशे से जुड़ी रहूं। परन्तु यह संभव नहीं था। खाली बैठ नहीं सकती थी इसलिए कोई ऐसा काम चाहिए था जो मुझे भी पसंद हो और समाज को भी उससे लाभ हो।”
सैय्यदा कहती हैं, “रिटायरमेंट से पहले मैं ने कुछ नहीं लिखा लेकिन अब जैसे ही समय मिलता है लिखने बैठ जाती हूं।”
सैय्यदा नौशाद महमूद को लिखने का ऐसे जुनून है कि कभी-कभी तो वह पांच से छह घण्टे तक लगातार लिखती रहती हैं। यह तो हकीकत है कि अगर हम अपनी पसंद का कार्य कर रहे हों तो हम बहुत अच्छा महसूस करते हैं। परन्तु मेहनत बहुत लगती है।
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