सैयद हैदर रज़ा का नाम उन मशहूर हस्तियों में शुमार होता है जिन्होने भारतीय चित्रकला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। उन्होने एब्सट्रेक्ट आर्ट के ज़रिए दुनियाभर में अपना एक मुकाम बनाया। बिंदु, त्रिकोण जैसे भारतीय दर्शन को उन्होंने न सिर्फ शानदार अभिव्यक्ति दी बल्कि इंडियन मॉडर्न आर्ट को अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर सम्मानजनक जगह दिलाई।
सैयद हैदर रज़ा चित्रकला के क्षेत्र में अपनी खुद की गढ़ी यूनिक लैंग्वेज और अपने अलग स्टाइल के लिए जाने जाते हैं। अपनी बिंदु शैली के लिए मशहूर सैयद हैदर रज़ा ने इस शैली को पंचतत्व से जोड़ा और चटख रंगों का इस्तेमाल किया। वो बिंदु को अस्तित्व और रचना का केंद्र मानते थे। बिंदु से शुरुआत कर, उन्होंने अपनी विषयगत कृतियों में नए एक्सपेरिमेंट किए, जो त्रिभुज के इर्द-गिर्द थे।
सैयद हैदर रज़ा की पहली सोलो एग्जीबिशन साल 1946 में बॉम्बे आर्ट सोसाइटी में लगाई गई थी। जिसे काफी पसंद किया गया। बॉम्बे आर्ट सोसाइटी ने उन्हें सिल्वर मेडल से सम्मानित किया।
साल 1950 से 1953 के बीच उन्होंने ‘इकोल नेशनल सुपेरिया डेब्लू आर्ट्स’ से आधुनिक कला शैली और तकनीक का अध्ययन किया, कला के नए आयाम सीखे। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पूरे यूरोप की यात्रा की। उन्हें फ्रांस सरकार की फेलोशिप भी मिली। उन्होंने भारतीय अध्यात्म पर भी काम किया.‘कुंडलिनी नाग’ और ‘महाभारत’ जैसे विषयों पर चित्र बनाए। रज़ा तक़रीबन साठ साल तक पेरिस में रहे। फिर भी अपने देश से उनका नाता नहीं छूटा। वो आख़िर तक भारतीय नागरिक रहे देश की नागरिकता नहीं छोड़ी।
सैयद हैदर रज़ा देश के उन गिने चुने चित्रकारों में से एक थे, जिनकी पेंटिंग लंदन या न्यूयॉर्क के अंतर्राष्ट्रीय नीलामीघरों में करोड़ों में बिकती थीं। 23 जुलाई, 1916 को उन्होंने इस दुनिया से विदाई ली। सैयद हैदर रज़ा की आख़िरी ख़्वाहिश के मुताबिक़ उनका अंतिम संस्कार मध्य प्रदेश के मंडला में किया गया।
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