तौफ़ीक ज़कारिया केरल के कोचीन शहर के एक इंडियन मुस्लिम हैं, लेकिन इनके पास एक ख़ास फन हैं। तौफ़ीक अरबी, सामरी, सीरियाई, संस्कृत और हिब्रू और अर्मेनिया भाषाओं में कैलीग्राफी करते हैं। उन्हें हिब्रू कैलीग्राफी में महारत हासिल है। ज़कारिया कोचीन के यहूदियों के इतिहास पर शोध भी कर रहे हैं।
ज़कारिया को नई भाषाओं के सीखने और कैलीग्राफी की प्रैक्टिस करने का जुनून था, जो उनके स्कूल के दिनों से ही शुरू हो गया था। वो यहूदी संस्कृति के बारे में सीखने के प्रति अपने समर्पण के कारण 12वीं क्लास के एग्ज़ाम में फेल भी हो गए थे। बाद में उन्होंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया। लेकिन इस दौरान भी कैलीग्राफी और रिसर्च को लेकर उनका प्यार कभी कम नहीं हुआ।
पिछले कुछ सालों में केरल के ज़्यादातर यहूदी इज़रायल चले गए। उसके बाद ज़कारिया को उनसे जुड़ी वस्तुओं और कलाकृतियों को जानने में रुचि बढ़ी। जिसके बाद वो इतिहास को सर्च करने का काम करने लगे। जब तमिलनाडु के रामनाथपुरम 1225 ईस्वी पुराने हिब्रू शिलालेखों वाला एक प्राचीन मकबरा खोजा गया, तो ज़करिया को शिलालेखों को समझने के लिए बुलाया गया था।
यहूदी संस्कृति में ज़कारिया की रुचि ने उन्हें “मालाबार के यहूदी” नामक एक ब्लॉग और फेसबुक पेज शुरू करने के लिए इंस्पायर किया। उनके इस काम ने इज़राइल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन का ध्यान आकर्षित किया, जो 18वीं सदी के एक अद्वितीय हिब्रू कुरान के बारे में ज़कारिया की पोस्ट देखने के बाद उनसे मिलना चाहते थे। ज़कारिया ने कोचिन में यहूदी समुदाय की एक सम्मानित सदस्य सारा कोहेन के साथ भी घनिष्ठ मित्रता बनाई। जिन्होंने उन्हें अपने पोते की तरह माना और कम्युनिटी से उनका इंट्रोडक्शन कराया। ज़कारिया को यूक्रेन यूनाइटेड स्टेट में भी अरबी कैलीग्राफी और यहूदी प्रेयर को साथ में मिलाकर बनाने का काम दिया गया था।
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