कश्मीर की ख़ूबसूरत वादियां हर किसी को अपने आगोश में ले लेती हैं, जो भी कश्मीर आता है, दिवाना हो जाता है। अगर कश्मीर की कारीगरी की बात करें तो वो बेमिसाल है। घाटी में कला और शिल्प को जिंदा रखने के लिए कारीगर दिन-रात काम करते हैं। कश्मीर में टेक्सटाइल ट्रेडिशन का इतिहास काफ़ी पुराना है, कानी शॉल हो, पश्मीना शॉल हो या अमलीकर सुई का काम, आज भी हाथ से बुने हुए टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स कश्मीरी कुशल बुनकर (skilled weavers) की ख़ासियत हैं। इसी वजह से कश्मीरी हस्तशिल्प आइटम की डिमांड ज़्यादा रहती है।
पश्मीना शॉल, जिसे पश्मियां भी कहते हैं, जो पश्मीना बकरी के ऊन से बनाई जाती है। कश्मीर में पश्मीना शॉल का काम सदियों से होता आ रहा है। इस चरखा को कश्मीर में स्थानीय तौर पर “येंडर” कहा जाता है। और ये कश्मीरी ट्रेडिशन का एक अहम हिस्सा माना जाता है। येंडर की मदद से पश्मीना रेशे से धागे बनाए जाते हैं। लेकिन, अब आधुनिक चरखा (Modern charkha) से धागे को तैयार किया जाता है।

गुलाम हसन मलिक मॉर्डन चरखे से रेशे को धागे में तब्दील करते है। इस दस्तकारी से 5 साल से ज़्यादा से जुड़े हुए हैं। गुलाम ने बताया कि, ये ऐसी दस्तकारी है कि अपने हाथों से कमाए और खाए। गुलाम हसन सिंगपोरा में एक सेंटर चलाते है। इस वक़्त 15 से 20 लड़कियों को सिखाते हैं। इस दस्तकारी को सीखने के लिए सरकार की तरफ़ 1000 रुपये महीने मिलते है। हैंडलूम में कई स्कीम चल रही है जिससे दस्तकारी को सीखने के साथ पैसे भी मिलते है।
चरखे ने बढ़ाई कश्मीरी कारीगरों की आमदनी
पहले चरखे को हाथ से चलाने में काफ़ी मेहनत लगती थी लेकिन मॉर्डन चरखा के आने से काफ़ी राहत मिल गई है। मॉर्डन चरखा (टेबल-टॉप) को पैरों की मदद से चलाने में ज़्यादा थकान महसूस नहीं होती है। हथकरघा यानि हैंडलूम के ज़रिए से पश्मीना शॉल की बुनाई की जाती है। चरखे को एक मेज़ पर रखा जाता है ताकि कारीगरों को कताई करने के लिए ज़मीन पर न बैठना पड़े।
ऐसा माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में, हज़रत मीर सैयद अली हमदानी, जो एक सम्मानित ईरानी व्यक्ति थे और जिन्हें “शाह हमदान” के नाम से भी जाना जाता था। कश्मीर में पश्मीना शिल्प की शुरुआत की थी। Modern Table-Top चरखा से काम में सहूलियत मिली और प्रोडक्शन में भी इज़ाफ़ा हुआ है। महिला कारीगरों के लिए भी महफ़ूज़ है, जो पहले परंपरागत (traditional) चरखे का इस्तेमाल करते वक्त पीठ दर्द की शिकायत करती थीं। इस तकनीक (Technology) के आने से रोज़गार में भी इज़ाफ़ा हुआ है और पश्मीना कारीगरों की ज़िदंगी को बेहतर बनाने की नायाब कोशिश की गयी है।
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