प्रोफ़ेसर शेख़ मकबूल इस्लाम को जितनी श्रीमद्भागवत गीता में महारथ हासिल है, उतनी ही कुरान और बाइबिल में भी है। मकबूल इस्लाम की जुबान बांग्ला है लेकिन उन्हे हिंदी, ओड़िया, असमिया और अंग्रेजी भाषा भी अच्छे से आती है। कोलकाता के हावड़ा ज़िले के सब्सिट गांव में साल 1967 में उनकी पैदाइश हुई। उन्होंने आवाज़ द वॉयस को बताया कि, “पिता शेख़ सज्जाद अली सूफ़ी थे, तो घर में सूफी संत और विद्वानों का आना-जाना लगा रहता था। गांव में सूफी तो थे ही, वैष्णव लोग भी काफी तादाद में थे। जब मैं साढ़े चार साल का हुआ, तो मेरे ऊपर धीरे-धीरे सबका प्रभाव पड़ने लगा।”
मकबूल इस्लाम ने ‘बांग्ला-ओड़िया लोक साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन’ पर पीएचडी की है। और कलकत्ता की एशियाटिक सोसाइटी में ‘सीनियर रिसर्च फेलो’ भी रह चुके हैं। वो अब तक करीब 65 किताबे लिखे चुके हैं। इन किताबों में ‘गीता-कुरान का तुलनात्मक अध्ययन, लोक संस्कृति तत्व चिंता तथा शोध विषयक, ‘लोक संगीत विज्ञान जैसी कई किताबें शामिल हैं।
प्रोफ़ेसर मकबूल का मानना है कि ‘भाईचारा बनाने के लिए संस्कार का होना बेहद ज़रूरी है। उसे ठीक से समझना होगा, वरना हम लड़ते-झगड़ते रहेंगे।’’ शेख़ मकबूल इस्लाम इन दिनों ‘दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में श्री जगन्नाथ और वैष्णव धर्म के प्रसार पर नए सिरे से रिर्सच कर रहे हैं।
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