05-Sep-2025
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Teachers’ Day Special: पेंशन का हर रुपया शिक्षा के नाम-Chandrashekhar Kumar की प्रेरणादायक कहानी

शुरुआत आसान नहीं थी। पहले दिन सिर्फ़ 10 बच्चे आए। बहुत से अभिभावक बेटियों को पढ़ाने के खिलाफ थे।

शाम के 4 बजते ही मुज़फ़्फ़रपुर की एक गली में हलचल शुरू हो जाती है। मज़दूर परिवारों के छोटे-छोटे बच्चे अपने हाथों में कॉपी और पेन लिए दौड़ते-भागते एक कमरे की ओर आते हैं। उनके चेहरों पर पढ़ाई का जोश और आंखों में सपनों की चमक होती हैं। ये कोई महंगा स्कूल नहीं, बल्कि “सावित्रीबाई फुले शिक्षण केंद्र” है। यहां बच्चों से फीस नहीं ली जाती, यहां उन्हें सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला दिया जाता है। इस केंद्र के पीछे हैं –Chandrashekhar Kumar, जो अपनी पेंशन का हर रुपया इन बच्चों की शिक्षा पर खर्च करते हैं।

आराम नहीं, सेवा की राह चुनी

रिटायरमेंट के बाद जहां लोग चैन और परिवार के साथ वक़्त बिताने की सोचते हैं, वहीं Chandrashekhar Kumar ने कुछ और ठाना। चंद्रशेखर कुमार, Tirhut Divisional Commissioner’s office से ब्रांच ऑफिसर रिटायर्ड हुए। उन्होंने आराम करने के बजाय एक ऐसा काम शुरू किया, जो आज सैकड़ों गरीब बच्चों के ज़िंदगी में रोशनी भर रहा है।

साल 2022 में उन्होंने अपने रिटायर्ड दोस्त और बैंकर महेश्वर प्रसाद सिंह के साथ मिलकर ‘सावित्रीबाई फुले शिक्षण केंद्र’ (Savitribai Phule Education Centre) की स्थापना की। भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की पुण्यतिथि पर इसकी शुरुआत हुई। आज ये केंद्र मजदूर वर्ग के बच्चों की उम्मीद बन चुका है।

कैसे आया यह विचार?

Chandrashekhar Kumar बताते हैं, कि नौकरी के दौरान उन्होंने कई यूनिवर्सिटीस में महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। लेकिन मन में हमेशा एक सवाल उठता था कि अगर हम इन महान लोगों के विचारों और उनकी शिक्षा को समाज के सबसे ज़रूरतमंद बच्चों तक नहीं पहुंचा पाएं, तो सिर्फ़ उनकी जयंती मनाने का क्या मतलब? इसी सोच ने उनकी ज़िंदगी की दिशा बदल दी। 10 मार्च 2022 को उन्होंने ठान लिया कि वो गरीब और मजदूर वर्ग के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा देंगे।

मुश्किल शुरुआत

शुरुआत आसान नहीं थी। पहले दिन सिर्फ़ 10 बच्चे आए। बहुत से अभिभावक बेटियों को पढ़ाने के खिलाफ थे। लेकिन Chandrashekhar Kumar और उनकी टीम घर-घर गए, समझाया कि शिक्षा से बच्चों का भविष्य बदल सकता है। धीरे-धीरे भरोसा बना और बच्चों की संख्या बढ़ने लगी।

एक महीने में ही 35 बच्चे जुड़ गए। आज तक 250 से ज्यादा बच्चे यहां पढ़ चुके हैं। फिलहाल करीब 50 बच्चे रोज़ आते हैं और ख़ास बात ये है कि इनमें ज़्यादातर लड़कियां हैं।
Chandrashekhar Kumar कहते हैं कि, “अक्सर बेटियों की पढ़ाई को उतनी अहमियत नहीं देते। हमने इस सोच को बदला और लड़कियों को शिक्षा से जोड़ा।” उनकी ये पहल बताती है कि बदलाव सोच से शुरू होता है।”

पेंशन से चलता है पूरा खर्च

‘सावित्रीबाई फुले शिक्षण केंद्र’ पूरी तरह गैर-लाभकारी (non profitable) है। बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाती। न ही उन पर किसी तरह का दबाव डाला जाता है। शाम को 4:30 बजे से 7 बजे तक चलने वाली इन क्लासिस में बच्चों को कॉपी, किताबें, पेन जैसी सारी सामग्री बिल्कुल मुफ़्त दी जाती है।

केंद्र का ज़्यादातर खर्च Chandrashekhar Kumar अपनी पेंशन से उठाते हैं। एक टीचर को वो अपनी पेंशन से 2000 रुपये सैलेरी भी देते हैं। वहीं दूसरे टीचर की सैलरी आरपीएस निदेशक राकेश कुमार साहू देते हैं। चार और शिक्षक यहां पढ़ाते हैं, जिनमें एक उनके रिटायर्ड दोस्त भी शामिल हैं। ख़ास बात ये है कि ये सभी शिक्षक बच्चों को सिर्फ़ सेवा भाव से पढ़ाते हैं।

बच्चों की मुस्कान ही असली इनाम

आज इस केंद्र में पढ़ने वाले बच्चे सिर्फ़ किताबों की दुनिया तक सीमित नहीं हैं। यहां उन्हें आत्मविश्वास, डिसीप्लेन और सपनों को पंख लगाने की प्रेरणा भी मिलती है। कई बच्चे पहली बार कॉपी और पेन छूकर खुश हो उठते हैं। यही मुस्कान चंद्रशेखर और उनकी टीम के लिए सबसे बड़ा इनाम है।

Chandrashekhar Kumar की ये पहल साबित करती है कि समाज की असली सेवा केवल बड़े दान से नहीं, बल्कि छोटी-छोटी कोशिशों से भी की जा सकती है। उन्होंने जो ज़िम्मेदारी उठाई है, वह सिर्फ़ शिक्षा नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की नींव है।

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